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मेरी
प्रिय पुस्तक
दो साल पहले ही की तो बात है, जब मैं सात साल की थी, मम्मी के साथ एक पुस्तक मेले में गई थी वहाँ रशियन किताबों की सेल लगी थी। तभी मम्मी ने उत्साह में भर कर मुझे आवाज दी थी कि, ''मुमू, यह मेरे बचपन की प्रिय किताब है। मुझे बडी पसन्द थी, हम इसे खरीदते हैं, तुम्हें भी बहुत पसन्द आएगी।'' तब मुझे पता नहीं था कि इस मध्यम आकार की, मोटे कवर की किताब जिस पर एक गोल मटोल सा चश्मे वाले बच्चे का कार्टून बना है, में क्या होगा? मम्मी जो मोटी मोटी किताबें पढती हैं, क्या ऐसी किताब भी कभी पढती होंगी? ओह उनके बचपन में! दरअसल तब तक मैं ने पढने में रुचि लेना भी शुरु नहीं किया था, कुछेक कॉमिक्स के अलावा। कम से कम एक उपन्यास जैसी अनेकों अध्यायों वाली किताब के प्रति मुझे ज्यादा आकर्षण न था। घर आकर मम्मी के बहुत कहने के बाद मैं ने उसे पलटना शुरु किया तो उसके अध्यायों के शीर्षकों ने मुझे आकर्षित किया जो कि बहुत मजेदार थे जैसे कि, जब पापा ने सांप मारा ', जब पापा ने डॉक्टर को काटा, पापा को लडक़ियां तंग करती थीं वगैरह वगैरह। फिर मैं ने किताब का पहला पेज पढा जो लेखक अलेक्सान्द्र रास्किन ने किताब के बारे में लिखा था, उसमें लिखा था कि लेखक ने यह किताब इसलिये लिखी थी कि उनकी बेटी साशा अकसर बीमार हो जाती थी। एक बार उसके कान में बहुत दर्द था और वह जरा भी नहीं सो पा रही थी तब लेखक ने अपनी बेटी को कई किताबें पढ क़र सुना डालीं, जितनी कहानियां याद थी सुना दीं, फिर जब कुछ न बचा तो अपने बचपन की कहानियां सुनाने लगे कि कैसे एक बार उन्होंने अपनी नई सुन्दर गेंद मोटर के नीचे फेंक दी थी। उनकी बेटी साशा को ये बचपन की कहानियां खूब पसन्द आईं। उस बच्ची को आश्चर्य हुआ कि पापा भी कभी छोटे बच्चे थे, और दंगा और शैतानियां करते थे। फिर वह अकसर बहाने बना कर पापा से कहती, ''पापा, पापा! मेरा कान दुख रहा है! तुम मुझे तब की कहानी सुनाओ जब तुम बच्चे थे।'' हर बार उसे वे एक नई कहानी सुनाते। वे सारी की सारी कहानियां इस किताब में हैं। लेखक के शब्दों में - '' मैं ने अपने साथ हुई सभी मजदार बातों को याद करने की कोशिश की, क्योंकि मैं एक बीमार बच्ची को हंसाना चाहता था। इसके अलावा मैं अपनी बिटिया को यह समझाना चाहता था कि लालची या शेखीखोर या नकचढा बनना अच्छी बात नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं हमेशा ऐसा था। कभी कभी मैं कोई कहानी न सोच पाता था तो मैं अपनी जानपहचान के पापाओं की कहानियां ले लेता। आखिर हर पिता कभी न कभी छोटा बच्चा था ही। इसलिये इन कहानियों में से कोई भी कहानी गढी हुई नहीं है, ये सब छोटे बच्चों के साथ हुई घटनाएं हैं। अब साशा बडी हो गई है, बडी - बडी क़िताबें खुद पढ सकती है। लेकिन मैं ने सोचा दूसरे बच्चे शायद यह जानना चाहें कि एक पापा जब बच्चा था, तब उसके साथ क्या क्या हुआ था।'' पहला पेज पढते ही मुझे रूचि जागी कि, अरे वाह, पापा जब बच्चे थे तो पढनी ही चाहिये, इसमें एक पापा के बचपन की सारी बदमाशी और बुध्दूपन की करतूतें लिखीं हैं। मेरी प्रिय कहानी है जब पापा ने सांप मारा, इसमें पापा स्कूल पिकनिक पर जाते हैं, तब एक लडक़ी के सांप सांप चिल्लाने पर वे हीरो बन कर सांप मारने चल देते हैं। और अपनी बेलची से वह उस पतले, रेंगने वाले चिपचिपे जन्तु के अनेक टुकडे क़र देते हैं। जब टीचर बताती है कि उन्होंने सांप की जगह उपयोगी केंचुआ मार डाला है तो सब हंसते हैं और पापा शर्मिन्दा हो जाते हैं। एक बार पापा पांच पैरों वाला स्टूल बना देते हैं। एक बार तो पापा ने हद ही कर दी थी गलती से पानी की जगह वोद्का पी डाली। और पापा को संगीत से चिढ थी, संगीत की शिक्षिका के आते ही वे बिस्तर के नीचे छिप जाते थे। एक बार तो पापा ने रोटी फेंक दी, तब आया ने उन्हें सज़ा दी कि उन्हें रोटी के अलावा खाने में सब चीजें मिलेंगी। जब पापा को बार बार भूख लगती तब उन्हें समझ आया रोटी का महत्व। आया ने उन्हें बताया कि तुम्हारे जितना मेरा भाई रोटी के बिना भूख से मर गया था तो उन्हें बहुत शर्म आई। फिर पापा ने ऐसा कभी नहीं किया। पापा बचपन में अकसर बुरा मान जाया करते थे। बात बात पर। बल्कि छोटी छोटी बातों पर। मैं भी बुरा मान जाती हूँ पर अब ध्यान रखती हूँ कि बेकार की बात पर देर तक बुरा मानने की जरूरत नहीं होती। पापा जब बच्चे थे तब उनकी एक सहेली थी माशा, वे जब भी उसके साथ खेलते लडक़े उन्हें चिढाते साशा का है माशा से प्यार पता नहीं उन लडक़ों का ऐसा ख्याल क्यों था किसी लडक़े का लडक़ी के साथ खेलना बुरी बात है। लेकिन पापा की एक खास बात थी, वे कविताएं लिखते थे और तुरन्त बना लेते थे। भले ही वे बेकार की तुकबन्दियां क्यों न हों, पर उन्हें लिखना पसन्द था। वे बहुत बडे क़वि मायकोव्स्की को फोन किया करते थे, पर जैसे ही उनकी भारीभरकम आवाज ग़ूंजती वे डर कर रिसीवर रख देते थे। पापा निबन्ध भी अच्छे लिखते थे लेकिन एक बार दोस्ती निभाने के चक्कर में एक ही विषय पर दो निबन्ध लिखे एक अपने दोस्त के लिये एक अपने लिये। जिसके लिये दोस्त को शाबासी मिली उन्हें टीचर की डांट। पापा भी हर आम बच्चे की तरह अपने भविष्य में कभी आइसक्रीम वाला, ट्रक वाला, ट्रेन का ड्राईवर, चरवाहा और पायलट बनना चाहते थे। और हर दिन उनका इरादा बदल जाता या कोई दो नौकरी वे एकसाथ करने को तैयार हो जाते जैसे कि दिन में आइसक्रीम बेचूंगा रात में इंजन चला लूंगा। बस ऐसे थे पापा। इस किताब को मैं बार बार पढती हूँ। हर बार मज़ा आता है। मैं अपने पापा से भी पूछती हूँ कि वे अपने बचपन की बातें बतायें तो उनके पास ज्यादा कुछ नहीं होता बताने को, क्योंकि वे एकदम कमाल के इंटैलिजेन्ट बच्चे थे। किताबें उन्हें पलक झपकते ही याद हो जाती थीं। उन्हें घर के उपकरणों मसलन घडी, ट्रान्जिस्टर खोलने में मजा आता था इसके लिये उन्हें दादा से डांट पडा करती थी। एक बार पापा ने स्टेज पर पहली और आखिरी बार ग्रुपडान्स किया था। हम बहुत हंसे थे कि पापा और डान्स! मम्मी के किस्से ज्यादा हैं, क्योंकि वे घर की छोटी, बातूनी और शैतान लडक़ी थीं। पढाई के अलावा सब कुछ अच्छा लगता था उन्हें, खेलना, चित्र बनाना, झूलना, बच्चों को सताना। हम बच्चों की अलग ही दुनिया होती है न जिनमें छोटी छोटी बातें बहुत बडी और जरूरी लगती हैं। ये बडे ज़ब बडे हो जाते हैं समझना बन्द कर देते हैं। आखिर ये क्यों नहीं सोचते कि वे भी तो कभी बच्चे थे!
कनुप्रिया कुलश्रेष्ठ |
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