मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

 

रामायण की प्रासंगिकता  

मेरी बेटी गीतान्जलि मुम्बई के  संजय राष्ट्रीय आरक्षित वन  में सांपों पर यूनेस्को के तत्त्वाधान में शोध कर रही थीएक युवा दलित  विजय अवसरे ने गीतांजलि सांपों के बिलों को खोजना, साँपों को पकडना और रखना फिर छोडना सिखायामैं भी इस लडक़ी की सांप पकडने की योग्यता देखने के लिये गया थातब एक दिन विजय अवसरे ने मुझसे सीधा ही प्रश्न किया, '' क्या राम ने शूद्र शम्बूक का तपस्या करने के कारण वध किया था?'' मैं ने उसे गौर से देखाएक तो मुझे उत्तर देने के लिये समय चाहिये था और दूसरे, मैं ने देखा कि उसके चेहरे पर हल्का सा आक्रामक भाव तो था, किन्तु सत्य जानने की शुध्द जिज्ञासा भी थीऔर शायद गीतांजलि के कारण मुझे उस पर विश्वास सा भी था

मैं ने तुलसी की रामचरित मानस तो गंभीरता पूर्वक पढी थी, किन्तु वाल्मीकि रामायण मैं ने टुकडों में ही पढी थी, क्योंकि मैं ने नौंवी से ग्यारहवीं तक की कक्षा में संस्कृत पढी थी जिसमें रामायण के कुछ अंश पढाये गये थेरामायण के इस अंश को नहीं पढा था, और इस विवाद पर मुझे गम्भीरतापूर्वक सोचने का अवसर भी नहीं मिला थामैं ने उत्तर दिया, '' राम जैसा पुरुषोत्तम ऐसा कार्य कभी नहीं कर सकता थातपस्या करना तो बहुत ही उत्तम तथा पुण्य कार्य हैऔर यदि कोई शूद्र तपस्या कर रहा था तो वह प्रशंसनीय कार्य था, वध्य नहींफिर राम जिन्होंने निषादराज से मित्रता की और निभाई, तथा शबरी के जूठे बेर खाये( उस समय मुझे नहीं मालूम था कि वाल्मीकि की शबरी ने राम की, तुलसी की शबरी के बराबर ही पूजा की थी और कन्दमूल फल खाये थे, किन्तु जूठे बेर नहीं खिलाए थे) वे कैसे निरपराध शूद्र का वध कर सकते हैं? और फिर राम ने तो केवल राक्षसों के वध की प्रतिज्ञा ली थीइसलिये यह प्रसंग रामायण में किसी पोंगा पंडित ने जोडा है'' विजय अवसरे ने कोई प्रतिवाद नहीं कियाकिन्तु मुझे यह सन्देह बना रहा कि शायद विजय मेरी बात से असहमत न सही, किन्तु पूरी तरह सहमत भी नहीं लगा; ऐसा सहमत कि वह अपने मित्रों से यह बात विश्वासपूर्वक कह सके इसीलिये तब से मेरे मन में शम्बूक वध का यह द्वन्द्व बैठ गया था

इस संदर्भ में शबरी की कथा भी प्रासंगिक हैशबरी भील जैसी वन्य जाति की महिला थी, शबरी का अर्थ ही होता है वन्यपम्पा सरोवर के निकट सतंग ॠषि के आश्रम में वह रहती थीरामायण के अरण्य काण्ड के 74 वें सर्ग के छठवें श्लोक में स्प्ष्ट लिखा है _

'' तौ दृष्टवा तु तदा सिध्दा समुत्थाय कृतान्जलि।
पदी जग्राह रामस्य लक्ष्मणस्य च धीमत:।।''

' उन दो भाईयों को( अपने आश्रम पर) आया देख, वह सिध्द तपस्विनी हाथ जोड क़र खडी हो गई तथा उसे बुध्दिमान राम तथा लक्ष्मण के चरणों में प्रणाम किया।'' आठवें श्लोक में राम शबरी को तपोधने कह कर सम्बोधन करते हैं। और दसवें श्लोक में वाल्मीकि लिखते हैं :

'' रामेण तापसी पृष्टा सा सिध्दा सिध्दसम्मता।
शशंस शबरी वृध्दा रामाय प्रत्यवस्थिता।।''

श्री रामचन्द्र जी के इस प्रकार पूछने पर वह सिध्द तपस्विनी वृध्दा शबरी, जो सिध्दों द्वारा सम्मानित थी, उनके सामने खडी होकर बोली'' अर्थात केवल न राम ने उसे तपस्विनी मान कर सम्मान दिया वरन् अन्य सिध्द तपस्वी भी तपस्विनी शबरी को सम्मान देते थेअर्थात उस काल में तपस्या यदि वन्य जातियों के लिये वर्जित नहीं थी, तब अन्य जातियों के लिये वर्जित होने की कोई सम्भावना ही नहीं बनतीतब उसी रामायण में यह कथन कि राम ने शूद्र शम्बूक का तपस्या करने के कारण वध किया, न तो तर्क संगत लगता है और न विवेक संगत

उत्तरकाण्ड की प्रामाणिकता पर इस शंबूक प्रसंग के कारण ही संशय हो उठता हैकिंतु इस निष्कर्ष पर कोई संशय नहीं रह जाता कि वाल्मीकि के राम भीलनी शबरी को तपस्विनी का सम्मान देने वाले राम, शूद्र तपस्वी शम्बूक का सम्मान तो कर सकते थे, किन्तु वध तो क्या निरादर भी नहीं कर सकते थेअवश्य ही यह प्रसंग किसी अन्य के द्वारा जोडा गया है क्योंकि उन दिनों किसी भी ग्रंथ की प्रतियां किसी भी व्यक्ति के हाथों द्वारा लिख कर ही बनाई जातीं थीं जिसमें त्रुटियों की स्वाभाविकता के साथ साथ अस्वाभाविक प्रक्षेप जोडने की संभावना बराबर बनी रहती थी ( यह एक शोध का विषय तो बनता ही है कि रामायण की हस्तलिखित प्रतियों की ऐतिहासिक कालक्रम में खोज कर इस संभावना की पडताल की जाये)

अब दूसरा प्रश्न यह उठता है कि कोई भी पंडित यह प्रक्षेप क्यों जोडेग़ापहली बात तो यह निश्चित है कि इस प्रसंग को जोडने का अर्थ शूद्रों को ऊपर न उठने देना है, उन्हें दलितावस्था में ही रखना हैअर्थात शूद्रों के ऊपर उठने की प्रक्रिया इसके पूर्व रही होगी, वरना उसमें अवरोध डालने का प्रश्न ही नहीं उठतावैदिक युग में ऐसे ऊपर उठने के अनेक प्रमाण हैंसत्यकाम जाबालि न केवल शूद्र माँ का पुत्र था, वरन् उसके पिता की भी कोई निश्चित पहचान न थीवही सत्यकाम उपनिषदों का अत्यन्त सम्मानित दृष्टा बनाइसी तरह एक ब्राह्मण की रखैल का पुत्र ऐतरेय भी न केवल ॠषि बना, वरन् ॠग्वेद का एक उपनिषद उनके नाम से ऐतरेय उपनिषद जाना जाता है नारद् मुनि ने पहले ही घोषित किया है कि राम वेदों के ज्ञाता हैं, अर्थात वे जानते हैं कि शूद्र भी वेदाध्ययन तथा तप आदि कर सकते हैं वैसे भी भरत ने ( युध्द काण्ड 127 वें सर्ग के 47 वें श्लोक में) सुग्रीव जो वानर हैं, को अपना पांचवां भाई माना है

त्रेता युग में भी जातियां पूरी तरह रूढ नहीं हो पाईं थींविश्वामित्र का राजर्षि से ब्रह्मर्षि बनना इस खुलेपन का एक दृष्टांत हैवशिष्ठ द्वारा विश्वामित्र के ब्रह्मर्षि बनने का प्रारंभिक विरोध जाति पर आधारित न होकर, उनके क्रोधी स्वभाव के कारण किया गया विरोध थास्वयं शबरी का उदाहरण भी यही सिध्द करता है कि तपस्या अथवा ब्रह्मज्ञान के लिये जाति का कोई बंधन नहीं अनेक धर्म ग्रन्थों में स्पष्ट लिखा है कि जन्मना जायतेशूद्र: संस्कारात् द्विज उच्यते: अर्थात जन्म से सभी मनुष्य शूद्र हैंजब मनुष्य ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से यज्ञोपवीत कर, गुरुकुल जाकर शिक्षा लेता है तब वह द्विज कहलाता हैअर्थात ज्ञान प्राप्त करने पर दूसरा जन्म लेने वालाऔर शूद्र वही बनता था जो किन्ही भी कारणों से विद्यार्जन नहीं करता थाकुछ अहंकारी अज्ञानी सवर्ण अपनी श्रेष्ठता सिध्द करने के लिये इस सूत्र को आधा ही उध्दृत करते हैं और यह सिध्द करना चाहते हैं कि शूद्र तो जन्म से शूद्र पैदा होता हैऐसे अज्ञानियों से बच कर ही रहना चाहिये

- आगे पढें

Top
 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com