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मैं कैसे निकसूं मोहन खेलै फाग!
रसखान के कृष्ण का फाग क्या कोई साधारण फाग होता था?
वह तो गुलाल और अबीर की लालिमा को द्विगुणित करते हुए
जीवन और रसानन्द और उल्लास का अद्भुत सामन्जस्य है।फागुन
की एक लहर उठी है,
जिसमें यह नहीं पता चलता कौन ज्यादा लाल हुआ?
श्रीकृष्ण राधा की गुलाल से लाल हो गये या श्रीकृष्ण के
प्रेम में पग राधा के कपोल रक्ताभ हो उठे।
गोपियों और राधा के साथ कृष्ण होली खेल रहे हैं।
राधा के साथ फाग
खेलने की प्रक्रिया में परस्पर अनुराग बढ रहा है।
दोनों आनन्द की
अठखेलियां कर रहे हैं।
कमल समान सुन्दर
मुख वाली राधा कृष्ण के मुख पर कुंकुम लगाने की घात में है।
गुलाल फेंकने का
अवसर ताक रही है।
चारों और गुलाल ही
गुलाल उड रही है।
उसमें ब्रजबालाओं
की देहयष्टि इस तरह चमक रही है मानो सावन की सांझ में लोहित गगन में चारों
ओर बिजली चमकती हो।
रसखान राधा कृष्ण के होली खेलने पर बलिहारी हैं।
इतना सुन्दर दृश्य
है इस होली का कि क्या कहैं।
फाग खेलती हुई
प्रिया को देखने के सुख को किसकी उपमा दें?
देखते ही बनता है वह दृश्य कि उस पर सब वार देने का मन
चाहता है।
जैसे जैसे छबीली
राधा पिचकारी भर भर हाथ में ले यह कहते हुए कृष्ण को सराबोर करती जाती हैं
कि यह लो एकऔर अब यह दूसरी वैसे वैसे छबीले कृष्ण राधा की इस रसमय छवि को
छक कर नैनों से पी मदमस्त होते हुए वहां से हटे बिना खडे ख़डे हंसते हुए भीग
रहे हैं।
गोपियां एक दूसरे से कृष्ण की बुराई करती हैं कि कृष्ण बडे ही रसिक हैं,
सूने मार्ग में उन्हें एक अनजानी नई नवेली स्त्री मिली।
फाग के बहाने उसे
गुलाल लगाने के चक्कर में मनमानी कर रहे हैं।
उस सुकुमारी की
साडी फ़ट गई है और रंग में भीग चोली खिसक गई है।
उसे गालों पर लाल
गुलाल लगा कर आलिंगित कर रिझा कर अपने आकर्षण के अधीन कर विदा कर दिया है।
गोपियां आपस में चर्चा करती हैं फाग के फगुनाये मौसम में
_ गोकुल का एक
सांवला ग्वाल गोरी सुन्दर ग्वालिनों से होली का हुडदंग कर धूम मचा गया।
फाग और रसिया की एक
बांकी तान गा कर मन हर्षा गया।
अपने सहज स्वभाव से
सारे गांव का मन ललचा गया है।
पिचकारी चला कर
युवतियों को नेह से भिगो गया और मेरे अंग तो भीगने से बच गये पर अपने नैन
नचा कर मेरा मन भिगो गया।
मेरी भोली सास और
कुटिल ननद तक को नचा कर बैर का बदला लेकर मुझे सकुचा गया।
ऐसा है वह सांवला
ग्वाल।
रसखान कहते हैं _
चन्द्रमुखी सी ब्रजवनिता कृष्ण से कहती है,
निशंक होकर आज इस फाग को खेलो तुम्हारे साथ फाग खेल कर
हमारे भाग जाग गये हैं।
गुलाल लेकर मुझे
रंग लो, हाथ
में पिचकारी लेकर मेरा मन रंग डालो, वह सब करो
जिसमें तुम्हारा सुख निहित हो लेकिन तुम्हारे पैर पडती हूं यह घूंघट तो मत
हटाओ, तुम्हें कसम है ये अबीर तो आंख बचा कर
डालो! अन्यथा तुम्हारी सुन्दर छवि देखने से मैं वंचित रह जाऊंगी।
होली के
बौराये हुरियाये माहौल में एक बिरहन राधन् ऐसी भी है जिसे लोक लाज ने रोका
है।
बाकि
सब गोपियां कृष्ण के साथ धूम मचाये हैं।
रसखान के मोहक शब्दों में इस ब्रजबाला की पीडा देखते ही बनती है मर्म को छू
जाती है।
वह
कहती है _
मैं कैसे निकलूं मोहन तुम्हारे साथ फाग खेलने?
मेरी सब सखियां चली गईं और मैं तुम्हारे प्रेम में पगी
रह गयी।
हुआ
यूं कि मैं ने एक रात सपना देखा था कि नन्द नन्दन मिलने आये हैं,
मैं ने सकुचा कर घूंघट कर लिया है और उन्होंने मुझे
अपनी भुजाओं में भर लिया है।
अपने
प्रेम का रस मुझे पिलाया और मेरे प्रेम के रस से छक गये हैं।
लेकिन तभी मेरी बैरिन पलकें खुल गयीं।
मेरा
सपना अधूरा छूट गया,
फिर मैं ने बहुत कोशिश की पर आंख लगी ही नहीं।
फिर
अगले दिन के अगले पहर में पलकें मूंद कर फिर मैं ने उस सपने से परिचय लेने
का प्रयास किया तो उसमें ही आंखे मूंदे मूंदे मेरा पूरा दिन निकल गया और
शाम हो गई और होलिका का डंडा रोप दिया गयातब सास ननद घर के कामकाज सौंप
नाराज होकर चली गई।
देवर
भी नाराज होकर अनबोला ठान बैठा।
एक तो रसखान के कृष्ण अनोखे उस पर रसखान की कविता में खेला गया राधा कृष्ण फाग अनोखा! प्रेम की व्याख्या को लेकर उनका काव्य अनोखा। उनके उकेरे फागुन के रंग जीवन्त हो जाते हैं और मानस पटल पर राधा कृष्ण की प्रेम में पगी फाग लीला साकार हो उठती है।
–
मनीषा कुलश्रेष्ठ
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