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कहां कबीर कहां हम
आपने अपने वेबसाइट पर निमंत्रण दिया है, कबीर साहब के विषय में लिखने के लियेआपने छोटे छोटे दीयों से कहा है, सूरज के विषय में लिखने के लियेआपने नन्ही नन्ही बूंदों से कहा है, सागर के विषय में लिखने के लियेक्या ये संभव है?

कदापि नहीं
क्योंकि हमारी दृष्टि बहुत तंग हैहमारी बुध्दि बहुत छोटी हैहमारा ज्ञान बहुत सीमित हैपहले हमें उस स्थान को, उस स्तर को प्राप्त करना होगाहमें अपनी बुध्दि को, अपने ज्ञान को उस सीमा तक विकसित करना होगा, जहां पहुँच कर हम कबीर साहब के बारे में कुछ लिख सकेंहमें स्वयं को बहुत ऊंचा उठाना होगा, कबीर साहब को समझने के लिये कबीर साहब के बारे में लिखना तो बहुत दूर की बात हो गईसच तो यह है कि हमारा बौध्दिक और आर्र्त्मिक स्तर इतना गिर चुका है कि हम सही बात की व्याख्या भी गलत करते हैंहम सही को गलत और गलत को सही देखते और समझते हैं

हमारे पूर्वजों ने बडी मेहनत से सत्य को खोजा
उन्होंने दया और सहानुभूतिवश वह सत्य हमें बता दियायानि हमें बिना मेहनत किये वह सत्य मिल गयाकिन्तु हमसे वह सत्य संभाला न गयाहममें इतनी सूझबूझ, इतनी बुध्दि, इतना ज्ञान न था कि हम उस सत्य को रख पाते उसे सम्मान दे पाते, उसे उसका सही स्थान दे पातेहमने अपने आलस्य, अपने झूठे अभिमान के कारण वह सत्य खो दियावह सत्य जो हमारी विरासत थी और हैउसे खो देने से हम आधे धार्मिक और आधे अधार्मिक हो गए नक्शा तो हमारे पास था और है, लेकिन हम उसे ठीक ठीक पढ र समझ नहीं पा रहे हैंफिर जितना भी चलो, मंजिल मिलना कठिन है

भारतीय समाज में भक्तों के दोहों, गीतों और उपदेशों को पढा और सुना जाता है
या यूं कहना गलत न होगा कि भारत में ज्यादातर भक्तों को ही पूजा जाता हैपर क्यों? किस लिए? उनके किस गुण के कारण? ये जानने में हमारी ज्यादा दिलचस्पी नहीं है और बहुत कम लोग ही जानते होंगेउससे भी बहुत कम होंगे जो उन पर चल और अमल कर रहे होंगेइसके बावजूद भी हम उन्हें अक्सर पढते और सुनते हैंउनकी तस्वीरों के आगे धूप और दीप भी जलाते हैंउनके सामने माथा भी रगडते हैंउन्हें नमस्कार भी करते हैंपरन्तु उनके उपदेशों पर चलने की खातिर नहीं, बल्कि सिर्फ इस खुशफहमी में कि ऐसा करने से वे खुश हो जाएंगेखुश होकर, वे भगवान् से हमारी सिफारिश करेंगेउनकी सिफारिश पर भगवान् हमारे लिए स्वर्ग के ध्दार खोल देंगे या हमें मोक्ष दे देंगेइससे बडा मजाक और क्या कर सकते हैं हम अपने आपसे? कबीर साहब ने सही कहा था -
साधो देखो जग बौराना,
सांची कहौं तो मारन धावै,
झूठे जग पतियाना


हम सचमुच पागल हो गए हैं
किसी चीज क़ो पाने के लिए कर्म करना पडता हैकिसी चीज क़ो समझने के लिए, उसका अनुभव करना आवश्यक होता हैकिसी चीज क़े सुख, दुःख और आनंद को जानने के लिए, उसका भोगना अति आवश्यक होता हैपरन्तु हम वो महामानव हैं, जो बिना अनुभव के ज्ञान का दावा तो कर ही रहे हैं, साथ ही साथ ज्ञान का उपदेश भी दे रहे हैंहम वो शूरवीर हैं, जो बातों से स्वर्ग और मोक्ष पाने का दावा कर रहे हैंजबकि हम खुद नहीं जानते कि स्वर्ग या मोक्ष क्या हैं? भारतीय समाज में गिने चुने लोग ही हुए, जिन्होंने सत्य को अनुभव कियाअनुभव करने के बाद उन्होंने घोषणा की -
मन तू जोत सरूप है, अपना मूल पछान


हम अमृत की संतान हैं और हम खुद अमृत हैं

हम आनंद से आते हैं, आनंद में रहते हैं और आनंद में ही चले जाते हैं
सृष्टि के कणकण में ईश्वर का बास हैसृष्टि में जो भी है सब हमारा है, उसे त्यागपूर्वक भोगो
क्या अर्थ हैं उपरोक्त वाक्यों के? क्या हम इन्हें समझ पाए? क्या हमने इन्हें समझने की कोशिश की या कोशिश कर रहे हैं? कबीर साहब उन गिने चुने महापुरूषों में से एक थे, जिनमें इसे जानने और समझने का साहस था
जिनमें प्रभुके प्रति प्रेम था, लगन थीइसीलिए उन महावीरों ने कहा -
सुरा सो पहचानिए, जो लडे दीन के हेत,
पुर्जा पुर्जा कट मरे, कभी न छाडे ख़ेत


उन्होंने जीवन के हर अंग, हर ढंग और हर रंग को भोगा और अनुभव किया
जो अनुभव किया, जो जाना और जो पाया,उसे कहा भी और बांटा भीऔर उसतक पहुंचने का तरीका भी बतायावह तरीका है प्रेम और लगन इसीलिए कबीर साहब ने कहा था
पोथी पढ पढ ज़ग मुया, पंडित भयो न कोए,
ढाई आखर प्रेम के जो, पडे सो पंडित होए


लेकिन खेद है कि हममें न तो प्रेम है और न ही लगन
बिना प्रेम और लगन के साहस भी पैदा नहीं होताहमने केवल उन महापुरूषों के शब्दों और वचनों को पकड रखा हैउनके उपदेशों को दोहराते दोहराते,हम कर्महीन हो गएअपनी मूर्खता और अज्ञानता के कारण, हमने मुक्ति को बंधन और स्वर्ग को नर्क बना दियान हमने सत्य को पाया और न असत्य को छोडाहम मानव से दानव बन गएमुझे इकबाल साहब का एक शेर याद आता है -
मस्जिद तो बना दी शब भर में, इमां की हरारत बालों ने,
मन अपना पापी पुराना , बरसों में नमाजी बन न सका


कबीर साहब ने हमें वह दिया, जो भगवान् का भक्त ही दे सकता है
कबीर साहब ने हमारी ॐगली थामकर, हमें चलना सिखायाहमें रास्ता दिखाया और हमें मंजिल के निशान तक बताएअब ये हमारा धर्म है कि हम उनके प्रति और अपने प्रति सच्चे और ईमानदार होंया तो हम कबीर साहब बन जाएं और सत्य को खोजें और सत्य को अनुभव करेंया फिर इतनी मेहनत जरूर करें कि उनके उपदेशों को समझ सकें और उन पर अमल कर सकेंकिसी हालत में भी हम उनके उपदेशों का गलत प्रचार या प्रसार न करेंबल्कि उन्हें सही रूप में स्वीकार करेंअगर हम इतना ही कर सकें तो यही कबीर साहब के बारे में लिखना और कहना होगायही कबीर साहब को हमारी नमस्कार होगीयही कबीर साहब के प्रति हमारा आदर होगायही कबीर साहब के प्रति हमारा सम्मान होगा

अशोक वशिष्ठ
1 जुलाई 2004


कहाँ कबीर कहाँ हम
अमीर खुसरो - जीवन कथा और कविताएं
जो कलि नाम कबीर न होते...’ जिज्ञासाएं और समस्याएं

कबीरः एक समाजसुधारक कवि
कबीर की भक्ति
नानक बाणी
भक्तिकालीन काव्य में होली
भ्रमर गीतः सूरदास
मन वारिधि की महामीन - मीरांबाई
मीरां का भक्ति विभोर काव्य
मैं कैसे निकसूं मोहन खेलै फाग
रसखान के कृष्ण
रामायण की प्रासंगिकता

सीतायाश्चरितं महत

सूर और वात्सल्य रस
विश्व की प्रथम रामलीला
 

  
 

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