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यात्रा वृत्तान्त
रोम में महाकवियों का सम्मान (हे मेघ उज्जयिनी छोडने पर तुझे) गम्भीरा नदी का जल प्रसन्नचित मन के सदृश निर्मल दिखेगा। खिली कुमुदिनी रूपी नयनों से तुझे वह चपल मछली रूपी कटाक्षों से आमंत्रण देगी। अतएव, जब तू उसके स्वच्छ सलिल हृदय के भीतर अपनी प्रतिबिम्ब रूप आत्मा का प्रवेश कर देगा तब तुझे वहां कुछ देर तक अवश्य रुकना पडेग़ा। यह सम्भव ही नहीं कि तू उसके कटाक्षों को सफल किये बिना वहां से चल दे। इतना कठोर बनना, इतना धैर्य धरना - तुझसे हो ही न सकेगा। तू देखेगा कि उसने नीलाभ साडी पहनी है। लहरों द्वारा उछाला हुआ उसका वसन तट रूपी कटि से खिसककर, बेत की डाल पर रूक गया है - जैसे उसने उसे हाथ से रोक लिया हो। भला ऐसी विलासवती के नीले नीर का पान किए बिना तुझ जैसा रसिक कैसे आगे जायेगा। रोम तो न जाने कितने बार गया हूं, यूरौप या अमेरिका जाते समय रास्ते में ही पडता है और रोम में इतना इतिहास भरा पडा है, वरन कलोसेओ के निकट ही 'फोरम' में, संभवतया इतिहास का घनत्व, (प्रतिवर्ग इंच ऐतिहासिक घटनाओं की संख्या) विश्व में अधिकतम होगा। हर बार कुछ नया देखने और घूमने मिल जाता है, लगभग हर बार में कलोसेओ तथा फोरम के आसपास घूम ही आता हूं। एक बार मैं फोरम के उस स्थल का फोटो ले रहा था जहां सीजर पर कैसियस तथा ब्रूटस आदि ने छुरों से हमला किया था। तब दो अमरीकन महिलाएं, उम्र 40 और 45 के बीच, फिर भी उन्होंने अपना शरीर और स्वास्थ्य अच्छा बनाकर रखा था, मेरे पास आईं और बोलीं कि क्या मैं उनके फोटो, उनके ही कैमरे से ले दूंगा। मैंने कहा ब खुशी। तब वे दोनों एक स्थान पर खडी हो गई।मैंने पूछा कि फोरम के किस शिल्प को वे पार्श्वभूमि में रखना चाहेंगी। उन्होंने बडा मजेदार जवाब दिया, ''किसी अन्य खण्डहर को आप हमारी पार्श्वभूमि में रख सकते हैं। जवाब सुनकर मुझे हँसी आ गई, वे महिलाएं स्वयम् अपने आपको एक खण्डहर मान रही थीं। फोटो के बाद धन्यवाद देती हुई वे महिलाएं चली गई। मैं एक विशाल चाप वाले द्वार के पास गया। यह बुलन्द विशाल द्वार (द आर्च ऑव कांस्टेंटाइन) 315 ईस्वी सन् में पॉन्ते मिलवियो के युध्द में सम्राट कांस्टेंटाइन ने राजा मैक्सैंटियस पर विजय प्राप्त करने की खुशी में बनवाई थी। इस को 'संश्लिष्ट कला' की शैली में निर्मित स्थापत्य कला का नमूना कहते हैं। समझने पर पता चलता है कि जब राजा लोग चोरी करते हैं तब वह संश्लिष्ट कला का नमूना बन जाता है। फोरम में कदम कदम पर कोई न कोई ऐतिहासिक निर्मिति है और आज सभी खण्डहर अवस्था में हैं। लगभग यही हाल 315 ई सन् में रहा होगा, हाँ खण्डहर कम होंगे, या, कुछ तो नई रचनाएं होंगी। इस द्वार को पास ही में निर्मित अन्य राजाओं के विजय स्मारकों में से चुराए गए पत्थर, स्तम्भ तथा सजावट आदि से बनाया गया है। उन स्मारकों में बडे बडे सम्राट यथा त्राजन, एड्रयिन, मार्कस ओरेलियस आदि हैं। इसके पश्चात मैं आधुनिक कला संग्रहालय देखने गया, आधे घंटे में, लगभग 1650 वर्षों की यात्रा! इटली की राजधानी रोम में विला बोरगेजे संभ्रांत और धनी लोगों के रहने का स्थान है। इसी विला बोरगेजे में वहां की आधुनिक कला गैलरी ''गलैरिया दार्ते मोदर्ना'' है। मैं जब, दिन भर इस आधुनिक कला की गैलरी में घूमने के बाद, शाम को निकला तो मुझे लगा कि ताजी हवा की बहुत ही सख्त जरुरत है। यद्यपि मैं सभी गैलरियों या संग्रहालयों को देखना पसन्द करता हूं किन्तु सारा दिन बिताने के बाद ऐसा लगता है कि कुछ ताजी हवा चाहिए। इसका अपवाद सिर्फ स्टाकहोम में स्थित स्कानसेन संग्रहालय है जो बिल्कुल खुली हवा में बना हुआ है। गलैरिया के सम्मुख सडक़ के पार मैंने देखा कि एक बाग है जो सडक़ से कुछ ऊंचाई पर है और वहां जाने के लिए सीढियों से जाना पडता है। सीढी क़े दोनों तरफ से गलियारे भी अन्दर की तरफ जाते हैं। यह सब आमंत्रित करता हुआ लगा कि मैं जाकर देखूं कि बाग मे क्या है। जब मैं सडक़ पार कर चुका तो मैंने एक छोटे से चौक (पियाजाले) का नामपट्ट देखा, किन्तु मुझे चौराहा या चौक जैसा कुछ नजर नहीं आया। उस नामपट्ट पर लिखाा था 'पियाजाले मिगुएल सर्वांतीज'।रोम में मैंने अक्सर यह देखा कि रोमन लोग चौराहा या चौक जहां न भी हो वहां बना देते हैं और उन्हें आकर्षक नाम दे देते हैं। यद्यपि 'डॉनक्विग्जाट' को काफी लोग जानते हैं किन्तु उसके महान रचयिता, 'मिगुएल सर्वांतीज' क़ो उससे भी कम लोग। जब सडक़ पार कर मैं सीढियों पर चढने के लिए तैयार हुआ तो मैंने बाएं तरफ गली का नाम पढा उसमें लिखा था 'वाल्मीकि पथ' और मैं सहसा विश्वास न कर सका कि यह सम्मान हमारे ॠषि वाल्मीकि के लिए है। मैंने इसे पक्का करने के लिए सीढियों के दाहिनी तरफ की गली का नाम देखा वहां लिखा था 'होमरपथ'। इस 100 मीटर से कम की यात्रा में, मैंने कितनी शताब्दियों और संस्कृतियों की यात्रा की थी। मेरी यह यात्रा उतनी उत्तेजक और साहसिक नहीं थी जितनी कि यूलिसीज क़ी चेरचेओ द्वीप की यात्रा होमर रचित औडैसी में हुई थी, या वाल्मीकि के राम की। आपको याद होगा चेरचेओ (सेरसेओ) द्वीप की अनिंद्य सुन्दरी सरसी में यह ताकत थी कि वह पुरुषों को स्वर्गिक संगीत से आकर्षित कर अपने द्वीप में उन्हें भेड और बकरी बना देती थी। उसके संगीत में इतनी आकर्षण शक्ति होती थी कि चारों ओर समुद्र पर जाते हुए नाविक अपनी होने वाली दुर्गति जानते हुए भी संगीत सुनने पर अपने को उसके पास जाने से रोक नहीं सकते थे। यूलिसीज ने अपनी नाव के मल्लाहों के कान मोम डलवाकर बन्द कर दिए थे और अपने आपको नाव के एक खम्भे से पूरी ताकत से बँधवाकर तब उस द्वीप के पास से उस स्वर्गिक (दोनों ही अर्थों में) संगीत का आनन्द लेने निकला था और उसे आनन्द भी मिला और मर्मांतक पीडा भी क्योंकि एक और वह सरसी के पास पतंगे की तरह जाने का अभूतपूर्व तथा अदम्य आकर्षण अनुभव कर रहा था और दूसरी और खंभे में बँधे होने की विवशता। वैसे सरसी की यह ताकत इतनी विलक्षण नहीं है क्योंकि मैंने देखा है कितने ही आदमी जो शादी के पहले शेर सा दहाडते हैं, शादी के बाद भेड बकरी से बन जाते हैं। अब मैं बजाय सीढियों पर चढने के होमर पथ से चला और उस घुमावदार सडक़ से ऊपर चढता गया। थोडी दूर पर फिर एक चौक (पियाजा) था और उस चौक पर एक वृध्द मनुष्य की संगमरमर की मूर्ति थी। मूर्ति से ही वह आदमी मनीषी दिख रहा था और अपने विचारों की गहराई में डूबा हुआ था और उसके दाहिने हाथ मैं एक कलम थी। इस चौराहे का नाम था 'पियाजाले फिरदौसी'। स्पष्ट रूप से यह ईरान के महाकवि फिरदौसी के सम्मान में रखा गया था। फिरदौसी ने शाहनामे में इरान पर सिकंदर के आक्रमण की घटना का जो वर्णन किया है, याद हो आया। इरान के शाह ने, सिकंदर द्वारा इरान पर आक्रमण करने की योजना की गंध पाते ही, एक सबसे तेज ऊंटनी पर एक दूत कैकय देश के राजा पोरस के पास सहायता माँगने के लिए भेजा था। किन्तु जब तक वह दूत कैकय देश पहुंचा, सिकन्दर ने आक्रमण कर इरान को परास्त कर दिया था। वहां से करीब 10 मीटर दूर संगमरमर की एक और मूर्ति थी। ऐसा लगता है कि रोम में मनुष्यों से संगमरमर की मूर्तियों की संख्या अधिक है। जब मैं उस मूर्ति की तरफ चला तो फिर एक दूसरे चौक का नाम पट्ट देखा जिसमें लिखा था, 'अहमद शौकी' जो कि मिश्र का वाल्मीकि माना जाता है। इसी चौक में और दस मीटर दूर एक तीसरी संगमरमर की मूर्ति थी जिसपर लिखा था, 'इनका गार्सिलासो दि ला वेगा', यह पेरु के एक साहित्यकार की मूर्ति थी। इस संगमरमर की मूर्ति के नीचे लिखा था, 'रक्त का संभ्रांत, विद्वदजनों में पंडित, योध्दाओं में शूरवीर'। यह मैंने गौर किया कि मिगुएल सर्वांतीज, ऌनकागार्सिलासो और शेक्सपियर तीनों की मृत्यु तिथि 23 अप्रैल 1616 है। किन्तु उन दिनों स्पेन और इंग्लैंड के कैलैंडर अलग पध्दतियों पर आधारित थे इसलिए 23 अप्रैल दोनों देशों में अलग-अलग तिथि को पडे। उस सोलहवीं शती की हवा में, मिट्टी में वह कौन सा रसायन था जिसने विश्व में इतने महान साहित्यकारों को जन्म दिया, हमारे तुलसीदास, मीराबाई आदि भी इसी काल में रचना कर रहे थे। कुछ ही दूर, इतालवी चीड क़े वृक्ष, जो अन्य चीडों की अपेक्षा अधिक कोमल और संभ्रांत दिखते हैं, डूबते हुए सूरज की सुनहरी किरणों को छान-छान कर बिखेरते हुए खुश नजर आ रहे थे। इस पार्क से कुछ किलोमीटर दूर प्रिंचिपेओ बाग है जोकि सुन्दर सूर्यास्त के लिए प्रसिध्द है। किन्तु इस चौक के बहुत ही पास एक और छोटा चौक था जिसका नाम था पाओलीना बोर्गेजे चौक। नैपोलियन बोनापार्ट की बहन अनिंद्य सुन्दरी पाओलीना का विवाह रोम के शक्तिशाली कार्डिनल बोर्गेजे से हुआ था। इसी चौक से एक किलोमीटर दूर बॉरगेजे ग़ैलरी है। उस गैलरी में सुन्दरी पाओलीना नग्न है तथा एक मखमल के गद्दे पर लेटी हुई है। जी हाँ वह संगमरमर का गद्दा इतनी निपुणता से बनाया गया है कि वह सफेद मखमल का ही लगता है। उसे विश्व प्रसिध्द शिल्पकार कनोवा ने गढा था। ऐसा कहा जाता है कि इस नग्न मूर्ति को देखने के बाद कार्डिनल ने पाओलीना से पूछा था कि उसने मूर्ति के लिए नग्न प्रदर्शन क्यों किया? तब पाओलीना ने बडी सरलता से उत्तर दिया था, ''अरे इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं है, उस समय वहां ठंड नहीं थी''।
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विश्वमोहन तिवारी,
पूर्व
एयर वाईस मार्शल
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