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एक इमारत सोने की मुम्बई से कनाडा वापस आते समय मैं दो दिन के लिये पूनम के परिवार के साथ शारजाह में रहा। पूनम मेरी अच्छी दोस्त हैं। उनके पति प्रवीन फारमास्युटिकल बिजनेस में हैं। एक दिन मेरी खातिर दावत करते हुए प्रवीन बोले, ''आज हम दुबई के सफर को चलते हैं।'' जुलाई महीने में दुबई की सख्त गरमी में बाहर की सैर के बजाय किसी इमारत का भीतरी हिस्सा देखना जादा आरामदेह था। मुझे बताया गया कि हम एक नायाब इमारत देखने जा रहे है। मैने कहा, ''आप जहां कहें, जहां भी ले चलें वह ठीक है ।''
हम तैयार हो गये , पूनम और उनकी बेटी इला भी साथ चल दिये।गाडी दुबई की ओर चल पडी। प्रवीन ने एक फोन कर दिया। ऐसा लगा कि किसी जगह सिक्युरिटी क्लिअरेंस का प्रबन्ध हो रहा था। हम एक दरवाजे के सामने आ पहुंचे, सिक्युरिटी क्लिअरंस हुआ। समुद्र के भीतर एक बडे से द्वीप पर भव्य इमारत सामने खडी थी। एक सुन्दर पुल पर से गुजरते हुए हम इमारत के द्वार पर आ खडे हुए। होटल का आकार एक विशालकाय नाव जैसा था। बाहर तीन चार रोल्स रॉयस यूनिफॉर्म वाले शोफर के साथ जमी हुई थीं। हम एक आलीशान होटल में दाखिल हो रहे थे। हमारा गुलाबजल से स्वागत हुआ। मैने नजर उठा कर चारों ओर देखा और मुग्ध सा रह गया। क्या क्या देखूं ? ऐसा लगता था देखने लायक कुछ छूट ना जाय। फूलदार गलीचे बिछे हुए थे। दोनों ओर से आलिशान सीढियां एक मंजिल ऊपर जा रही थी। दीवार भर में ऍक्वेरियम था जहां रंगबिरंगी मछलियां खेल रही थी।बीच में एक फव्वारा था जो हर प्रकार से पानी को एक ओर से दूसरी ओर नचा रहा था। प््रावीन अपनी अगली मेडिकल कॉनफरंस शायद इसी होटल में करनेवाले थे। उन्होंने होटल के टूर का प्रबंध किया था। दो मिनट में विजय जी , बुर्ज अल अरब होटल के सेल्स मैनेजर हमारा स्वागत करने आए। परस्पर परिचय की औपचारिकता के बाद विजय जी की देखरेख में यात्रा शुरू हुई। बडे आदर और बडी चतुरता से विजय जी हमें होटल की खूबियां बताने लगे।कितना बडा है , कितना अच्छा है। पानी के फव्वारे , हर जगह से बाहर के समन्दर का दृश्य और अन्दर का समन्दर जहां रंगबिरंगी मछलियों की खिलावट। हम एक मंजिल उपर चढ ग़ये थे।एक युवक इतनी सफाई और सुघडता से होटल की बात बता रहा था कि मुझसे अनायास एक प्रश्न हो गया , ''विजय जी , आप कौनसे कॉलेज से एम। बी। ए। बने है?'' हलकी सी मुस्कान विजय जी के मुंह पर आ गयी और बोले, ''भाई , मैंने कोई एम।बी।ए। नहीं किया ना किसी बडे स्क़ूल में गया , मैं तो हमेशा प्रैक्टिकल स्कूल का विद्यार्थी रहा हूं।'' ''हां तो फिर यह जमीन पर खडा आकाश को छूता हुआ जहाज का आकार देने में बहुत खर्चा हुआ होगा। यह दरीचे , यह संगमरमर , बडे बडे झूमर , नायाब पेंटिंग्स, अनुपम स्थापत्य, बहुमूल्य कालाकृतियां, यह सोने की पच्चीकारी और हर ओर जगमगाहट ... शायद किसी ने किसी की याद में बनाया होगा।'' ''हां , दुनिया के कोने कोने से जो भी अच्छा है , जो भी सुंदर है , वह सारी चीजें यहां लायी गयी है। इन्सान की सुविधा बढानेवाली हर चीज यहा मौजूद है। यह बनाया है दुबई के राजा जिसे शेख कहते ।दुबई शहर को यह एक अनमोल भेंट है ताकि दुनिया के नक्शे में इस शहर का नाम बना रहे।'' ठीक है , मैंने सोचा , कोई ताजमहल सी मुमताजमहल के प्यार वाली बात यहां नही लगती , फिर भी दौलत इस्तेमाल करने का यह एक अच्छा तरीका हो सकता है।
''विजय
जी
,
ऐसा महसूस होता है की कोई आम जन तो यहां आपके होटल में मेहमान नहीं बन
सकते। यह तो बंदूक का गोला फूटा। मैंने प्रवीन की ओर देखा। शायद 400 दिरहम का चूना पड ज़ायेगा । प्रवीन ने मेरी ओर देखा और मुस्करा कर बोले , ''मालूम नहीं , अभी तक तो बिल नहीं आया , शायद पीछे से आयेगा।''
''विजय
जी
,
तो फिर आप बहुत नसीबवाले आदमी हैं। अनकों रईस और प्रख्यात लोगों से आपकी
मुलाकात होती होगी
?''
हमारा सफर चलता रहा। बॉलरूम्स , कॉन्फरंस रूम्स , हेल्थ क्लब , रेस्तरां , हैलीपैड , सबमरीन से जाने का रास्ता.. एक से एक बढिया नजारे .... एक देखो.. एक भूलो। आखिर में हम मेहमानों के रहने के लिये कमरे कैसे होते है वह देखने के लिये एक सूट के सामने आ खडे हुए।हमें बताया गया की यह रॉयल सूट नहीं है। उससे तीन दर्जे नीचा वाला है। मुझे तो कोई फर्क़ नहीं पडा। मेरे लिये तो यह भी रॉयल ही था। आधुनिक जमाने का कमाल.. एक ही कुर्सी में बैठे सब काम रिमोट कंट्रोल से कर सकते हैं। दरवाजे क़े बाहर खडे व्यक्ति की तस्वीर टीवी के पर्दे पर देखी जा सकती थी और आश्वस्त होने पर रिमोट से दरवाजा खोला जा सकता था। विजय जी ने रिमोट कंट्रोल के और चमत्कार दिखाए। लॅपटॉप कंप्युटर था , उसे भी दिखाया।दूर से एक बटन दबा कर बडा सा पर्दा खोला , और समन्दर के दर्शन फिरसे करा दिये। सफर बहुत अच्छा रहा। विजय भाई को बहुत बहुत शुक्रिया और धन्यवाद अदा कर के बाहर निकले , कुछ फोटो खींचे और मैं कुदरत को देखने लगा।बाहर के समंदर का पानी स्वच्छ नीले रंग का नजर आ रहा था। मैं सोचने लगा , क्या इस भव्य इमारत में रहने की ख्वाहिश रखूंगा? शायद मुझे बाहर के समंदर में तैरती हुई मछलियां ज्यादा पसन्द आयीं, अन्दर के समंदर से.. —
अश्विन
गांधी |
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