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बडों की बानगी

बदलते समय के साथ साथ हमारे परिवार के बडे बूढों में काफी बदलाव आया है छोटे परिवारों में उनकी जरूरत को महसूस किया जाने लगा है और वे भी अकेले रहने की बजाय नई पीढी क़े साथ सामंजस्य बैठाने में जादा रूचि लेने लगे हैंइससे छोटे संयुक्त परिवारों की एक नई पीढी सामने आयी है बाबा दादी या नाना नानी को घर के बच्चों से स्वाभाविक प्यार होता है बच्चे और बूढों में काफी समानता होती है कहा भी गया है _ बच्चे बूढे एक समान एक सबसे बडी समानता यह है कि दोनों गृहस्थी के बोझ से मुक्त होते हैं इसलिए खाली समय में वे एक दूसरे के अच्छे दोस्त साबित होते हैं

दीपू की दादी को बचपन में पढने लिखने का मौका नहीं मिल पाया दीपू शाम को स्कूल से लौट कर दादी को पढाने लगा नंदिनी की दादी ने अंग्रेजी बोलना अपनी पोती से सीखा और व्यस्त माता पिता को इसका पता बहुत बाद में जाकर लगा जब वे पूरी तरह पारंगत हो गए

दीपू के दादा जी स्कूल में मंगवाए गए चार्ट और कापियां बाजार से खोज कर झट ला देते और दीपू के माता पिता इस उलझन भरे काम से बचे रहते
दूसरी ओर नीमा की दादी ने दस साल की नीमा को सिलाई कढाई की शिक्षा इतनी कुशलता से दे डाली कि नीमा की मां अपने जन्मदिन पर नीमा के काढे रूमालों का सेट पाकर आश्चर्य चकित हो गयी

घर के बुजुर्ग़ छोटे बच्चों के अच्छे सांस्कृतिक शिक्षक होते हैं
अपनी संस्कृति और धर्म की शिक्षा वे बिना किसी खास मेहनत के दे डालते हैं छोटे बच्चे कहानियों के शौक में अक्सर दादी या नानी के पास जा बैठते हैं बाबा दादी और नाना नानी भी उन्हें राम, कृष्ण, गणेश और ध्रुव की कहानियां मजे से सुनाते हैं जिन्हें बच्चे बडा रस ले कर सुनते हैं ये कहानियां बच्चों के चरित्र निर्माण में बडी अच्छी साबित होती हैं

बहुत से बाबा दादी या नाना नानी बडे अच्छे शिक्षक होते हैं
सुधा के बाबा एक इंटर कालेज में प्रधानाचार्य थे वे अब रिटायर हो चुके हैं और घर पर टयूशन लेते हैं साथ साथ सुधा और उसके भाई सुबोध को पढाना नहीं भूलते सुधा और सुबोध के माता पिता दोनो नौकरी करते हैं दादी जी नौकरानी की मदद से घर का काम बखूबी देख लेती हैं दूसरी ओर सुधा और सुबोध स्कूल में हमेशा प्रथम आते हैंइस घर की खुशियों की एक बडी ज़िम्मेदारी बाबा दादी ने संभाल रखी हैदूसरी काम काजी महिलाएं त्योहारों पर जहां बाजार की मिठाइयों और नमकीन ही अतिथियों को परोस पातीं हैं वहीं सुधा के घर में दादी के हाथ के बने गुलाबजामुन, लड्डू, सेवों और नमकीन की बहार ही कुछ और रहती है हांलांकि सुधा और सुबोध के माता पिता अपने बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते लेकिन उनके समझदार बाबा दादी ने इस कमी को अपने प्यार से पूरी तरह भरा हुआ है

बाबा दादी या नाना नानी युवक युवतियों के भी बडे अच्छे दोस्त साबित होते हैं अनिता की शादी की बात चल रही थी वह अपने मन पसंद लडक़े से विवाह करना चाहती थी यह बात वह अपने माता पिता से नहीं कह पा रही थी आखिर में उसने यह बात अपने नाना नानी से कही और उन्होंने स्थिति को गंभीरत से बेटी दामाद के सामने रखा बात आसानी से बन गयी अनीता अब दो बच्चों की मां है और अपने नाना नानी को एक पल के लिये भी नहीं भूलती जिन्होंने उसके जीवन के एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में साथ निभाया

बदलते हुए सामाजिक परिवेश के साथ साथ दादा दादी और नाना नानी भी अब काफी बदल गये हैं अब नानी दादी बहू बेटियों के काम में मीन मेख निकालने की बजाय सहयोग करने लग गयी हैं पत्र पत्रिकाओं के पढने और टीवी के देखने से बूढों को अपनी पुरानी मानसिकता बदलने में मदद मिली है आज वे पीढियों का अन्तराल लांघ कर बच्चों के अच्छे दोस्त बन गये हैं जबकि माता पिता व्यस्त होने के कारण बच्चों के इतने करीब अक्सर नहीं आ पाते हैं जादातर बाबा दादी और नाना नानी को अपने नाती पोतों की देखभाल में काफी आनंद आता है क्यों कि अपने बच्चों की देखभाल के समय वे इतने व्यस्त थे कि बच्चों की देखभाल के अपने अरमान को वे पूरा कर ही नहीं पाए

बच्चे भी जादातर बाबा दादी और नाना नानी को अपना बेहतर भावात्मक साथी पाते हैं सुप्रीत अर्धवार्षिक परीक्षा में फेल हो गया पिता के सामने परीक्षाफल ले जाने की उसकी हिम्मत न थी उसने अपना दुख चुपचाप दादा जी को बताया उन्होंने उसे सांत्वना दी और सुप्रीत के पिता से बात कर के कठिन विषयों के लिये एक अध्यापक की व्यवस्था करवा दी उन्होंने खुद उसकी पढाई में रूचि ली और वार्षिक परीक्षा में वह अच्छे नम्बरों से पास हो गयागुडिया नृत्य और तैराकी का प्रशिक्षण लेना चाहती थी लेकिन मां से बात करने में हिचकती थी गुडिया ने अपनी समस्या दादी के सामने रखी उन्होंने न केवल समझदारी से उसकी मां से यह बात मनवा ली बल्कि उसके एडमीशन के रूपयों की भी व्यवस्था कर दी

इस तरह बात करने, समाज में घुलमिल कर रहने और पीढियों को अपस में जोडने का काम बाबा दादी या नानी बडी अच्छी तरह निभाते हैं प्रेम रखने वाले दादा दादी या नाना नानी के साथ रह कर बच्चे भी अपने नाती पोतों के लिये अच्छो बुजुर्ग़ साबित होते हैं आज बहुत से लोग समझते हैं कि बुजुर्ग पुराने जमाने के हैं और बच्चों के पालन पोषण में उनका सहयोग नहीं लेतेइससे बूढों को ठेस पहुचती है बुजुर्गों को भी चाहिये कि वे अपने सोचने के तरीके को पुराना न पडने दें चुस्त बने रहें और अपने बच्चों को विश्वास में लेकर चलें हर वक्त नयी पीढी क़ी नुक्ताचीनी करने के बजाय उनकी अच्छाइयों को बताते हुए उन्हें एक सफल मां बाप बनने के लिये प्रेरित करें

अगर आपके बेटे-बहू यह चाहते हैं कि बच्च दो घंटा शाम को जरूर पढे तो इस समय बच्चे की इच्छा जानकर उसे टीवी के पास बुला कर बेटे बहू को नाराज न करें इससे बच्चा बिगड जायेगा अगर आपसे यह नहीं देखा जाता कि घर के सब लोग आराम से टीवी देख रहे हैं और बच्चा पढ रहा है तो बेहतर यह होगा कि आप बच्चे की सहायता करें और उसे कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही दो घंटा पढा दें आप भी खुश आपका बेटा भी और पोता भी यह भी ध्यान रखें कि अगर माता पिता बच्चों को डांट रहे हों तो बीच में न बोलें और बाद में माता पिता और बच्चों को अलग अलग समझाएं ताकि डांट खाने की स्थितियां पैदा ही न हों

- पूर्णिमा वर्मन
जून 8, 2000

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