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कांच का तालाब क्या कांच का तालाब भी हो सकता है? नहीं न! तो जानिये : मुजफ्फरनगर-जानसठ के लगभग मध्य के सिखैडा गांव से तीन किलोमीटर दूर गांव बिहारी में है कांच का तालाब। हमने सोचा दुर्लभ और अत्यधिक रमणीक होगा यह तालाब परन्तु छोटी-छोटी पगडण्डियों, बरहों (खेतों की सिंचाई करने की छोटी-मोटी नालियां) और ईख के खेतों से निकल कर जब हम पहुंचे तो लगभग 1000 मीटर का एक घास-फूंस-जंगली वनस्पति से अटा हुआ पानी युक्त गङ्ढा सा देखकर माथा पीटने को जी चाहा। पुन: ऐसे ही दूसरे रास्ते से चलकर दूसरे स्थान पर पहंचे तो वहां लगभग 25-30 मीटर का टूटे-फूटे लखोरी (छोटी) ईंटों के चबूतरे को वनखण्ड के रूप में देखकर चौंक जाना पड़ा। क्या है इन दोनों स्थानों का रहस्य? क्या है कांच का तालाब? कैसे बना बिहारीपुर? मीलों तक फैले पाण्डवों के इस विहार स्थल के मध्य में था एक विशाल एवं भव्य तालाब, जिसमें प्रवेश करने के लिए बनी थीं स्वर्ण की सीढ़ियां। तालाब के चारों कोनों पर बने चार कुओं से पानी कम होने पर तालाब को जल से परिपूर्ण किया जाता था। तालाब के समीप ही एक स्थान चौसर (जुआ खेलने का एक खेल) खेलने का बना था। कौरव- पाण्डव यहां आकर कभी शिकार खेलते, कभी तालाब में जल-क्रीड़ा करते तो कभी चौसर खेलते। कहा जाता है कि कौरव-पाण्डव की निर्णायक द्यूत क्रीड़ा (जुआ) यहीं पर सम्पन्न हुई थी और उसमें अपने सर्वस्व सहित पाण्डव द्रौपदी को भी हार गये थे। चूंकि यह उनका विहार स्थल था और यहीं पर पाण्डव अपनी बहू द्रौपदी को हारे थे इसलिए इस स्थान का नाम 'बहुहारी' पड़ा अपभ्रंश एवं विहार स्थल के कारण 'बिहारी' हो गया। स्वर्ण निर्मित सीढ़ियां होने के कारण इसे 'कंचन (स्वर्ण) ताल' कहा जाता था जो कंचन से अपभ्रंश होकर मात्र कंच (न) रह गया। वनखण्ड सा प्रतीत होने वाला आज का छोटा सा चबूतरा कभी कुरुवंशियों का विशाल द्यूतस्थल था जहां चौसर बनी हुई थी । ग्रामीण बताते हैं कि चौसर एवं विशाल तालाब हमने अपनी आंखों से देखा है। यह तालाब अब गङ्ढा मात्र रह गया है। ग्राम के प्रधान सैय्यद शहनाज आलम बताते हैं कि कभी सुन्दरता के कारण इस विशाल कस्बे (अब गांव) को 'अनूप ( अनोखा-सुन्दर) शहर' का खिताब दिया गया था। इसमें 85 विशाल कुएं थे जिन्में से कुछ के अवशे अनेक राजवंशों से होते हुए यह बाराह सादात में आ गया । इस क्षेत्र के सैय्यदों का दिल्ली दरबार में सदैव दबदबा रहा। यहां पर लगभग 500 वर्ष पूर्व निर्मित एक जैन मंदिर भी है। श्री पल्ला सैन्ी पुत्र रघुबीर सैनी आदि ग्रामीण बताते हैं कि जन्माष्टमी के शुभावसर पर भव्य झांकियों से सुसज्जित यहां कृष्ण भगवान की विशाल यात्रा निकाली जाती है जिसमें गांव के मुस्लिमों का तन-मन-धन से पूर्ण सहयोग रहता है।
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हरिशंकर
शर्मा (साभार : पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जलाशय ऐतिहासिक विरासत) इंडो-एशियन न्यूज सर्विस |
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