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राम-कृष्ण की ऐतिहासिकता का पुख्ता सबूत नहीं नई दिल्ली, 30 दिसम्बर (आईएएनएस)। भारत के हजारों वर्ष पुराने इतिहास को खंगाल कर दर्जनों किताबें लिख चुके प्रख्यात इतिहासकार राम शरण शर्मा का मानना है कि राम और कृष्ण जैसे हिंदू देवताओं की ऐतिहासिकता का पुख्ता प्रमाण नहीं है। वैसे, उनका मानना है आस्था को इतिहास की कसौटी पर कसने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। भारतीय इतिहास कांग्रेस में भाग लेने आए शर्मा ने आईएएनएस से बातचीत करते हुए कहा,''राम और कृष्ण को किंवदंती का हिस्सा माना जा सकता है। मैंने कृष्ण की धरती मथुरा में संग्रहालय में जो कृष्ण प्रतिमाएं और दूसरी साम्रगियां देखीं, वे अधिक पुरानी नहीं हैं। जब मथुरा ही कृष्ण की ऐतिहासिकता का प्रमाण नहीं देता तो और किन साक्ष्यों पर भरोसा किया जा सकता है? '' शर्मा कहते हैं कि रामायण और महाभारत में श्लोकों की संख्या समय-समय पर बढ़ती गई जिससे इनकी मौलिकता संदिग्ध हो गई। उनके मुताबिक महाभारत की समीक्षा का कार्य 1927 से शरू हुआ था जो 1963 में पूरा हुआ और इसकी वजह थी इन ग्रंथों का बिखराव। वह कहते हैं कि शुरू में रामायण में 6000 श्लोक हुआ करते थे जो बाद में बढ़कर 24000 हो गए। ब्राह्मणों ने अपनी सुविधा के मुताबिक रामायण में ऐसे संशोधन किए। यही हाल महाभारत का रहा। वह बताते हैं कि वेदों में इंद्र या वरुण जैसे देवताओं की चर्चा तो है, पर राम कहीं नहीं हैं। वह रामसेतु को भी मानव निर्मित नहीं मानते है। वैसे, उनका मानना है कि अगर ऐसे मसलों से लोगों की भावना आहत होती है तो इन्हें नहीं उठाया जाना चाहिए, वहीं धार्मिक प्रतीकों या स्थलों की आड़ में देश के विकास को बाधित नहीं करना चाहिए। वह थोड़ा मजाकिया, पर दार्शनिक लहजे में कहते हैं,''मेरा नाम राम शरण है और मैं तो खुद राम की शरण में हूं। कई मामलों में आस्था और किंवदंतियां तर्क और इतिहास पर भारी पड़ती हैं। ऐसे विवाद को नेता ही छेड़ते हैं, क्योंकि उन्हें इससे फायदा होता है।'' -आर.एस शर्मा इंडो-एशियन न्यूज सर्विस |
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