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हिन्दी साहित्य में 'बेस्ट टेलेंट नहीं आ रहा है- पंकज बिष्ट
नई दिल्ली, 8 जनवरी (आईएएनएस)। साहित्य और पत्रकारिता में खेमेबाजी के कुछ फायदे तो हुए हैं परंतु इसका नुकसान बड़े स्तर पर उठाना पड़ा है। पंकज बिष्ट ने हिंदी साहित्य संसार को कुछ अच्छी कहानियां दी हैं। इसकेअलावा 'समयांतर' नामक मासिक पत्रिका के माध्यम से वह जनपक्षीय पत्रकारिता में भी सक्रिय हैं। समयांतर ने पिछले कुछ वर्षों में उन सवालों पर पाठकों से संवाद स्थापित करने की कोशिश की है, जो व्यावसायिक पत्रकारिता के लिए अक्सर अप्रासंगिक मान लिए जाते हैं। पंकज बिष्ट ने कई सामयिक विषयों पर आईएएनएस से लंबी बातचीत में अपनी बेबाक राय रखी:
प्रश्न :- साहित्य में गुटबाजी का क्या मतलब है?
उत्तर : साहित्य में गुटबंदी के दो तरीके के हो सकते हैं। पहला तो विचारधारात्मक लोग या एक तरह के आंदोलनात्मक गतिविधियों से जुड़े लोग एक साथ उठते-बैठते हैं। दूसरा, अपने को आगे बढ़ाने के लिए, अपने करियर को बढ़ाने के लिए गुट के इस्तेमाल में लोग विश्वास करते हैं। इसके कई अच्छे और बुरे उदाहरण हो सकते हैं। नई कहानी आंदोलन, कमलेश्वर द्वारा चलाये गए समांतर कहानी आंदोलन को आप देख सकते हैं। महीप सिंह ने भी एक आंदोलन चलाया था। इनका काफी अच्छा असर पड़ा है। दूसरी तरफ अकविता का आंदोलन भी चला। इसका दूसरा नकारात्मक पक्ष यह है कि एक विचारधारा के लोग आपस में साथ बैठने वाले को जाने-अनजाने बढ़ावा देने में लग जाते हैं। आप लेखकों के इस तरह के संस्थान और संगठन के माध्यम से ऐसी बाते होते हुए आसानी से देख सकते हैं।
प्रश्न :-करियर बनाने और बिगाड़ने दोनों ही स्थितियों में गुटबाजी प्रभावकारी दिखाई देती है?
उत्तर : देखिए, होता क्या है कि जब गुटबंदी होती है तो आप अपने साथियों को बढ़ाते हैं और दूसरे का हक मारते हैं। यह दौर मीडिया पर कंट्रोल का है। संस्थाओं पर कंट्रोल का है। आप संस्थानों के माध्यम से उन्हें पुरस्कृत करेंगें। सुविधाएं दिलायेंगे। मीडिया के सारे माध्यमों से भी यह होगा। नतीजा यह होगा कि अच्छे लेखक, पत्रकार पिछड़ते जायेंगे।
प्रश्न :- आप पर राजेन्द्र यादव सहित अन्य बहुत सारे लोग 'पहाड़वाद' का आरोप लगाते हैं?आपकी प्रतिक्रिया जानना चाहूंगा?
उत्तर : इस दौर में जब नैतिकता जैसी कोई चीज ही नहीं रही है और जब कोई न्यूनतम नैतिकता बरत रहा हो तो उस आदमी के लिए ऐसी बात कही ही जा सकती है। राजेंद यादव जो उभय-नैतिकतावादी हैं। उभय-नैतिक का मतलब अनैतिक होता है। ऐसे लोग कभी इधर और कभी उधर हो सकते हैं। आप नैतिकता के साथ बहुत देर नहीं हो सकते हैं। आपको अपने को, अपनी पत्रकारिता को और अपनी मित्रता को बढाना है तो नैतिकता को ताख पर रखना होगा। मेरे साथ ऐसा नहीं है। मैं जिस सिध्दांत में विश्वास करता हूं, उसके प्रति ईमानदारी बरतने की कोशिश करता हूं। मेरा मेत्र और अमित्र को लेकर कोई आग्रह नहीं है। यही कारण है राजेंद्र यादव मेरे बारे में ऐसा कहते हैं। वह व्यक्तिगत तौर भी मुझसे ऐसा कहते हैं। जहां तक पहाड़ का प्रश् है, मेरा कोई मित्र पहाड़ का नहीं है। मेरे मित्र रामशरण जोशी हैं, जो राजस्थान के हैं। इब्बार रबी, असगर वजाहत मेरे मित्र हैं लेकिन इनमें से कोई भी पहाड़ के नहीं हैं। मैंने पहाड़ के लिए आखिर किया ही क्या है? वास्तविकता में हुआ क्या है कि पूरा समाज जातीयता, क्षेत्रीयता आदि में बंटा हुआ है। यही वजह है कि निरपेक्ष होकर भी आगे बढ़ा जा सकता है, इस मूल्य में किसी की आस्था नहीं बची है।
प्रश्न :- हिंदी साहित्य का विकास अन्य भारतीय भाषाओं की तरह नहीं हो रहा है? क्या कारण है?
उत्तर : हिंदी का क्षेत्र इतना बड़ा क्षेत्र है, जिसमें 50 प्रतिशत लोग आज भी निरक्षर हैं। हिंदी क्षेत्र का मध्य वर्ग पूरा का पूरा अंग्रेजी की तरफ जा रहा है। वह इतना हीनता ग्रस्त है और अपनी पहचान विकसित नहीं कर पा रहा है। छोटी भाषा के लोग अपनी भाषा के कारण पहचाने जाते हैं। गुजराती, बंगाली, मलयाली, मराठी आदि। हिंदी वाले अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं, परंतु कोई पहचान नहीं बन पायी है। इस कारण अपनी परंपरा का जो भी हिस्सा है उससे बचने की कोशिश करते हैं। मुझे लगता है कि हुआ यह कि हिंदी साहित्य को पढ़ना, लिखना कोई अच्छा काम नहीं माना जा रहा है। नतीजा यह हुआ कि हिंदी साहित्य में गिरावट आ रही है। हिंदी पट्टी का 'बेस्ट टेलेंट' इसमें नहीं आ रहा है। हिंदी के कई लोग अंग्रेजी में लिखने लगे हैं। मृणाल पांडे जो हिंदी की लेखिका हैं उन्होंने अंग्रेजी में उपन्यास लिखना शुरु कर दिया है। पंकज मिश्रा वगैरह ने अंग्रेजी में लिखना शुरु कर दिया है।
प्रश्न :-साहित्यकार, पाठकों की कमी का रोना क्यों रोते है? वाकई उनके पास पाठक नहीं हैं क्या?
उत्तर : पाठकों की कमी का मामला यह है कि पाठकों को बनाने की कोशिश ही नहीं की गई है। हिंदी साहित्य के लोग कहते हैं कि हमें कम पढ़ा जा रहा है और दूसरी ओर अखबार वाले कहते हैं कि हम 1 करोड़ अखबार बेच रहे हैं। यह इसलिए हो रहा है कि हिंदी में निरक्षरों की संख्या ज्यादा है। लेकिन एक तरफ शिक्षा का प्रसार भी हुआ है। नए साक्षर हुए लोग अखबार पढ़ रहे हैं। वे साहित्य नहीं पढ़ रहे हैं। परंतु यही वर्ग साहित्य में रूझान दिखायें, इसके लिए उनको परिष्कृत करना पड़ेगा। हिंदी मीडिया सतही होता जा रहा है। अखबार और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में साहित्य के लिए कोई जगह नहीं रह गई है। जिस जमाने में लेखक की कोई पहचान ही नहीं होती है, उस दौर में लेखक का कोई पाठक वर्ग नहीं हो सकता है।
प्रश्न :- आलोचना में नये लोगों की क्या जगह आप देख रहे हैं?
उत्तर
: आलोचना में एक सम्मान रमाशंकर अवस्थी सम्मान है। इस सम्मान के लिए उम्र
सीमा 35
वर्ष रखी गयी थी। आप जानते हैं कि इस सम्मान के लिए
35 वर्ष का कोई आलोचक ही नहीं मिल रहा था तब इस
सम्मान के लिए उम्र सीमा 50 कर दी गयी। अभी इस
सम्मान के लिए उम्र सीमा क्या है, मुझे पता
नहीं। बात घूम-फिरकर यहीं आती है कि बेस्ट टेलेंट हिंदी साहित्य में नहीं आ
रहा है।
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