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लूटपाट का पर्यटन शिमला 28 नवंबर, (आईएएनएस)। उत्तर भारत के पर्यटकों के लिए पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से हिमाचल प्रदेश सबसे पसंदीदा जगहों में से एक रहा है। यहां घूमने आने वाले और यहां के स्थानीय बाशिंदों के मन में प्रदेश की ईमानदारी को लेकर गर्व की अनुभूति होती रही है। परंतु हिमाचल में अब अन्य प्रदेशों की तरह ही पर्यटकों की जेबें काटी जाने लगी हैं। पर्यटन के सीजन के दिनों में तो इस लूट के खेल में बेतहाशा वृद्धि हो जाती है। नवंबर-दिसंबर और फरवरी-मार्च का महीना हिमाचल के पर्यटन की दृष्टि से मंदी का होता है। शिमला से आसपास जाने वालों के लिए हिमाचल पर्यटन विभाग की ओर से तीन टूर पैकेजों की व्यवस्था होती है। एक टूर पैकेज में कुफरी की सैर की व्यवस्था है। कुफरी तीन भागों -निचली कुफरी, मध्य कुफरी और ऊंची कुफरी में बंटा है। निचली कुफरी में आबादी रहती है। निचले कुफरी से बीच की कुफरी तक की दूरी लगभग दो किलोमीटर है, जहां हिमाचल टूरिम या निजी वाहन पार्क किया जाता है। यहीं से ऊपरी कुफरी की चढ़ाई शुरू होती है। आना और जाना कुल मिलाकर पांच किलोमीटर का रास्ता है। वाहनों से उतरते ही वहां खच्चरों और घोड़ों कीसवारी के लिए लुभाने को एजेंटों का हमला शुरू हो जाता है। ये दलाल 150, 250 और 500 रूपये के तीन अलग-अलग पैकेज में सेब का बागान, स्लेजिंग कोर्स और देवी मां का मंदिर दिखाने के सच्चे-झूठे प्रलोभन देते हैं। सबसे पहले तो वे यह बताते हैं कि बर्फ गिरने पर यहां स्लेजिंग प्रतियोगिता होती है। यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता है। ऊंची कुफरी पहुंचकर गाइड दूर के सूखे झाड़ दिखाकर कहते हैं-सरमैडम! वो देखो, सेब के बगान। जब पर्यटकों को दूर-दूर तक सेब और उसके पेड़ नहीं दिखाई देता है तब वे उन गाइडों से सेब के लिए पूछने लगते हैं। गाइड कह उठता है-'मौसम खत्म हो गया है अभी, बाद में फिर आना तो सेब दिखेगा। पैसा खर्च करने के बाद भी 'पहाड़ों की रानी' शिमला और आसपास कुछ भी देखने में भी आपको कल्पना के घोड़े ही दौड़ाना पडे तो वादियों और झाड़ियों के इस राय में आपका मिजाज भी पश्चिम बंगाल से आए राजू घोश की तरह खट्टा हो जाना स्वाभाविक है। वे कहते हैं-''मैं चार लोगों के साथ सालों बाद घूमने निकला हूं। इतना पैसा खर्च करने के बाद भी झूठे सब्जबाग ही दिखाये जायें तो मन का चिढ़ना तो स्वभाविक है।'' रास्ता बेहद खतरनाक और खौफजदा है जो कमजोर दिल सवारी को रूलाने के लिए काफी है। फिर भी घोड़ों के साथ जुते नेपाली और भारतीय बच्चे मुस्कराते हुए पर्यटकों के साथ चढ़ते-उतरते हैं। पांच किलोमीटर का यह खौफनाक सफर दिनभर में 3-4 बार होता है। 15-20 किलोमीटर के इस सफर में इन्हें सुस्ताने के लिए यादा समय नहीं होता है। राजा मायूसी के साथ कहता है-'साब! सबकुछ जल्दी-जल्दी पूरा करना होता है, नहीं तो मालिक पीटते हैं। हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी दो जून रोटी पर इन्हें आफत होती है। रोटी की जुगाड़ में लगे इन बच्चों से बचपन तो दूर होता ही है और साथ ही शिक्षा का बुनियादी अधिकार भी। शर्म की बात तो यह है कि इनमें कुछ बच्चे तो 14 वर्श से भी कम उम्र के हैं जिनकी पूरे दिन की दिहाड़ी मात्र 30 रूपये मात्र मिलती है। बड़े लड़कों को 40-50 रूपये तक मिलते हैं। हिसाब लगाकर देखा जाए तो इन बच्चों की कमाई 900 रूपये प्रति महीना है जबकि एक घोड़े से प्रतिदिन की कमाई 600-2000 रूपये तक होती है। यहां लगभग 100 घोड़े हैं और इन्हें खींचनेवाले लगभग 150 लोग हैं। पैसे का लालच इस कदर बढ़ गया है कि पर्यटकों और आमदनी के स्रोत इन घोड़ों के स्वास्थ्य की भी रत्तीभर परवाह नहीं की जाती है। दिल्ली से आयी एक महिला पर्यटक ने 500 रूपये का पैकेज लिया था। उन्हें एक लंगड़े घोड़े पर बिठा दिया गया। डर के मारे उस महिला सवारी के पसीने छूट रहे थे। 'अतिथि देवो भव:' के भारतीय दर्शन को हिमाचल पर्यटन ने ताक पर रख दिया है। पहाड़ों की रानी शिमला की गोद में बसा कुफरी यों तो काफी खूबसूरत है मगर वहां पर्यटकों से लूट उसे बदसूरत बनाती है। 28 नवंबर 2007 इंडो-एशियन न्यूज सर्विस |
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