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बचपन खोने की कहानियां!

 

भुवनेश्वर, (उड़ीसा), 2 मार्च (आईएएनएस)। आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिलांतर्गत वंडागल्लु गांव में नौ वर्षीय श्रमिक बालिका मल्लेशम्मा सुबह पांच बजे उठ जाती है। छह बजे तक वह कपास के खेत में पहुंच जाती है। दोपहर तक वह कपास के फूलों में परागण का काम करती है। एक छोटे से अंतराल के बाद वह फिर से खेत में घास-फूस निकालने और कीटनाशक दवाओं के छिड़काव के लिए पानी लाने का काम करने लगती है।

 

मल्लेशम्मा बताती है, ''कभी-कभी मुझे सर्दी, सिरदर्द और उल्टी के साथ बुखार भी हो जाता है। कीटनाशकों के छिड़काव के तुरंत बाद मुझे चक्कर आने लगता है। इन सब कार्यों के लिए मुझे तीन रुपए प्रति घंटे के हिसाब से मजदूरी मिलती है। मैं हर रोज 11 घंटे काम करती हूं, लेकिन मेरी मजदूरी कर्ज चुकाने में ही कट जाती है। मेरे पापा ने एक कपास खेत ठेकेदार से कुछ रुपए उधार लिए थे।''

 

बिहार के बेगूसराय जिलांतर्गत एक गांव के रहने वाले 14 वर्षीय रूप कुमार विकलांग है। इसके बावजूद वह एक बीड़ी कारखाने में 12 घंटे प्रतिदिन काम करता है। उसके पिता भी यही काम करते हैं, लेकिन पिछले एक साल से वह टीबी से ग्रस्त है और काम नहीं कर पा रहा है। परिवार के दस सदस्यों की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए रूप कुमार अपने भाई-बहनों के साथ कारखाने में लगा रहता है। वह बताता है, ''मैं पढ़ाई करना चाहता था, लेकिन मेरे भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। परिवार के भोजन का प्रबंध करना फिलहाल मेरी पहली प्राथमिकता है।''

 

उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर के निकट एक ईंट की भट्ठी में काम करने वाली 12 वर्षीय रेशमा के साथ काम के दौरान बलात्कार किया गया। वह बोलंगीर जिले से आई थी। उसके पिता की मृत्यु के बाद गांव को छोड़कर यहां आने और ईंट की भट्ठी में काम करने के लिए उस पर दबाव बनाया गया था। वहां मालिक अक्सर उसकी पिटाई भी करता रहता था। आज वह एक स्कूल में पढ़ने जाती है और एक छात्रावास में रहती है। वह अपनी इच्छा बताती हैं, ''मैं कठिन परिश्रम से पढ़ाई करते हुए एक शिक्षिका बनना चाहती हूं।'' 

 

मल्लेशम्मा, रूपकुमार और रेशमा के अलावा कई ऐसे बाल श्रमिक हैं जिन्होंने बाल श्रम पर भुवनेश्वर में आयोजित चौथे राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया। इनमें से प्रत्येक के पास उनके बचपन खोने की अलग-अलग कहानियां थीं। इस सम्मेलन का आयोजन बालश्रम के खिलाफ अभियान (सीएसीएल), लगभग 6,000 गैर सरकारी संस्थाओं का एक नेटवर्क, कई सामाजिक संगठन और लोगों के सहयोग से किया गया था। इसमें लगभग 1,000 बच्चों ने भाग लिया। ये ऐसे बच्चे थे जो या तो अभी भी बालश्रम कर रहे हैं या उन्हें हाल ही में बालश्रम से बचाया गया था।

(साभार 'ग्रासरूट')

 

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस

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