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जिंदगी की रोशनी दिखाता दुष्यंत का जीवंत संग्रहालय संदीप पौराणिक भोपाल, 11 मार्च (आईएएनएस)। किसी ने कहा हैं कि साहित्य कभी मरता नहीं है, वह तो औरों को जिंदा रखता है और जिंदा रहने का जज्बा पैदा करता है। दुष्यंत कुमार की रचनाएं भी यही काम कर रही हैं और इसे आगे बढ़ाया है दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय ने। इस संग्रहालय में सिर्फ दुष्यंत कुमार ही नहीं देश के बडे बड़े रचनाकारों की यादों को संजोया गया है। भोपाल की छोटी सी इमारत में चलने वाले इस संग्रहालय को मौजूदा सामग्री ने बड़ा बना दिया है। रवीन्द्र नाथ टैगोर, हरिवंश राय बच्चन, राही मासूम रजा, हरिशंकर परसाई, फणीश्वरनाथ रेणु, भीष्म साहनी जैसे देश के चुनिंदा रचनाकारों की पांडुलिपियों में दर्ज शब्द उस दौर की याद दिला जाते हैं जिस दौर में उन्होंने अपनी कल्पना व सोच को कागज पर उतारा होगा। इतना ही नहीं विष्णु प्रभाकर और शिवमंगल सिंह सुमन की कलम बहुत कुछ कह जाती हैं, वहीं शरद जोशी की नजर अर्थात चश्मा इस संग्रहालय को और अहम बना देती हैं। इस संग्रहालय में रखा काका हाथरसी का टाइपराइटर और गुलशेर खां शानी के टाइपराइटर व घड़ी की टिक-टिक भले न सुनाई देती है मगर इतना अहसास जरूर करा देती है कि उसने भी वक्त के साथ काफी तेज चाल चली है। इस संग्रहालय में सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, मैथिली शरण गुप्त, हरिवंश राय बच्चन, सोहन लाल द्विवेदी सहित साहित्य जगत के बीस दिग्गजों के हाथों के छापे भी हैं जिसमें दिख रही रेखाएं उनके जीवन का खुलासा कर देने वाली हैं। इस संग्रहालय के निदेशक राजुरकर राज बताते हैं कि 1997 में इसकी स्थापना हुई थी और तभी से इसके विस्तार का सिलसिला जारी है। रचनाकारों की रचनाएं जिस रूप में मिलीं उसी रूप में सहेजी गई हैं, इसीलिए कई पर्चियों और छोटे कागज के टुकड़ों पर रचनाएं लिखी हुई हैं। यहां 16वीं, 19वीं तथा 20वीं शताब्दी की भी अनेक पांडुलिपियां हैं। दुष्यंत कुमार संग्रहालय में विद्रोही रचनाकार दुष्यंत कुमार की कलम, चश्मा, घड़ी, हवाई यात्रा का टिकट, हुक्का का निचला हिस्सा और कोट रखा है जो उनके जीवन का दर्शन करा जाता हैं तथा बताता हैं कि दुष्यंत कुमार मनमौजी थे। रिवाल्वर भी थी दुष्यंत कुमार के पास दुष्यंत कुमार अपनी बात कहने और लिखने के मामले में जितने आक्रामक थे, स्वभाव से उतने ही मनमौजी। संग्रहालय में रखी उनसे जुड़ी सामग्री यह बताने के लिए काफी है। आधुनिक डिजाइन का कोट, हुक्का की प्लेट और घड़ी तो उनके स्वभाव को खुद ब खुद बयां कर जाती हैं। व्यवस्था पर शब्दों की गोलियां चलाने वाले इस नायक को रिवाल्वर रखने का शौक था इसीलिए उन्होंने वर्ष 1969 में रिवाल्वर का लाइसेंस भी बनवाया था जो संग्रहालय में मौजूद है। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस |
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