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लघु
कथा
दीपावली का ज्योर्तिमय पर्व था। घर घर में ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी जी की पूजा की तैयारियां हो रही थीं। मैं भी लक्ष्मी पूजन का थाल सजा रही थी कि दरवाजे पर खटखटाहट हुई। मैं ने पूछा,
'' कौन है? '' मैं ने दरवाजा खोला तो
माधवी सजी धजी खडी थी।
माधवी मेरी
पडोसन
है और हिमाचल प्रदेश की
रहने वाली है।
मध्यम वर्गीय
स्कूल के अध्यापकों की इस कॉलोनी में स्वयं भी संस्कृत की अधापिका तथा
फिजीक्स के वरिष्ठ अध्यापक की पत्नी माधवी शौर्कश्रृगांर,
और सम्पन्नता का दिखावा करने तथा अपने परिवार की
प्रशंसा करने में निपुण है। ''
मेडम,
आप साडे आठ बजे
हमारे घर आईये,
लक्ष्मी पूजा होगी।'' जैसे माधवी अपनी चमक दमक बिखेरती आई थी वैसे ही चली भी गई। सायंकाल साडे आठ बजे हमने सपरिवार लक्ष्मी पूजा सम्पन्न की। बच्चे और पतिदेव बाहर आस पास की सज्जा तथा प्रकाशमाला देखने चले गये। मैं बैठी बैठी माधवी की भव्य पूजा के बारे में सोचती रही कि सच ही हमने तो मिट्टी के लक्ष्मी गणेश की मूर्ति पर मंत्रों के साथ खील बताशे, लड्डू चढा कर टोटका सा ही कर दिया है। पडोसन माधवी के घर हो रही होगी वास्तविकता में भव्य लक्ष्मी पूजा। मन नहीं माना तो उतसुकता में पैरों में चप्पल डाल कर माधवी के घर की ओर मैं अकेले ही चल पडी। मेरे पति और बच्चों को माधवी जैसी शेखी बघारने वाली महिला की लक्ष्मी पूजा में कोई रुचि पहले से ही नहीं थी। उसके दरवाजे पर ही आठ दस पुरुष तथा महिलाएं खडे थे जो लक्ष्मी पूजन देखने आए थे और प्रशंसा करते हुए कह रहे थे कि सच में बडी भव्य पूजा की तैयारियां हैं। मैं ने भी माधवी के घर में प्रवेश किया पूजा की तैयारियां पूरी हो चुकी थीं। उसने उत्साह पूर्वक मेरा स्वागत किया, और पूजा के कमरे में ले गई वहाँ सारा कमरा रेशमी साडियों की सजावट से सजा था। कमरे के बीचों बीच लक्ष्मी-गणेश की भव्य चांदी की काफी बडे आकार कीमूर्तियां चांदी के पाटले पर प्रतिष्ठापित थीं। परिवार की महिलाओं के समस्त आभूषण लक्ष्मी जी की मूर्ति पर चढाए गये थे। घर का सारा कैश गणेश जी के आगे लाल कपडे पर रखा था। इसके अतिरिक्त चांदी की थालियों में 11 प्रकार के फल, 11 प्रकार की मिठाईयां, 11 प्रकार के मेवा सुसज्जित थीं। 16 चांदी के घी के दीपक जल रहे थे। मैं भी प्रभावित हुए बिना न रह सकी। ''
बहुत भव्य! बहुत अच्छा लग
रहा है। सभी को ऐसे ही पूजा करनी चाहिये।'' घर आकर बच्चों के साथ फुलझडी, चकरी, अनार आदि पटाखों का आनन्द लिया। खाना खाया, कुछ देर गपशप की और सोने से पहले रात भर जलने वाले लक्ष्मी जी के दीपक को घी से भरा और हम सोने चले गये। दिन भर के उत्साह और काम से उपजी थकान के कारण जल्दी ही नींद आ गई। अर्धरात्रि में मुझे पडाैसियों का कोलाहल सुनाई दिया मैं ने सोचा अभी तक दीपावली का उमंग और उल्लास पडाैस में छाया हुआ है। किन्तु माधवी के तीव्र क्रन्दन ने मुझे चौंका दिया। '' हाय ये क्या हो गया। हम तो लुट गये बहन जी। हमारा तो सब कुछ चला गया। हम कहीं के न रहे।'' मैं ने दरवाजा खोल कर देखा कि तो बाहर 20 - 25 पुरुष-महिलाएं खडे अपनी अपनी सलाह दे रहे थे। कोई पुलिस में एफ आई आर लिखवाने की कह रहा था, कोई घर घर जाकर तलाशी लेने की बात कह रहा था। ओह! तो माधवी के घर चोरी हुई है, सब चला गया जो कुछ पूजा के कमरे में रखा था! महिलाएं खडी ख़डी आलोचना प्रत्यालोचना कर रहीं थीं कि इतना दिखावा कर रही थी अब भुगते। आज का वक्त ऐसा कहां रह गया है कि ऐसे जोर शोर से पूजा की जाए। एक सभ्रान्त महिला ने कहा कि - '' पुराणों की मान्यता है कि जो व्यक्ति घर पर आए अतिथी सत्कार में, समाज की भलाई में, गरीबों को दान करने में धन का उपयोग करता है, लक्ष्मी को स्वकेन्द्रित न करके व्यष्टि समष्टि की ओर लक्ष्मी को ले जाता है उसी के पास लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है अन्यथा लक्ष्मी तो चंचला है।'' मुझे उनकी इन बातों ने प्रभावित किया मैं ने उन बुजुर्ग महिला का समर्थन किया और कहा '' सच कहा आपने देवी देवता तो मन की पवित्र भावना और सत्कर्म तथा श्रध्दा से प्रसन्न होते हैं। दिखावे से नहीं।'' तब तक पुलिस आ चुकी थी तथा पूछताछ आरंभ हो चुकी थी, माधवी का विलाप जारी था।
दीपावली |
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