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अधूरी तस्वीरें-2
''अविनाश अंजना मेरी वाईफ से तुम मिल चुके हो। नीला से भी, ये सुधा है मेरी बहन, जे जे आर्टस में फाईन आर्टस की लैक्चरर है, वैसे बॉम्बे रहती है, पर अभी मेरे साथ वेकेशन्स बिताने आई है। मयंक मेरा बेटा, आई आई टी बॉम्बे से इलेक्ट्रानिक्स में इंजीनियरिंग कर रहा है। ये मयंक का दोस्त केतन है। ये सभी लस्ट वीक से यहीं थे कल जा रहे हैं।और ये हैं मेजर अविनाश मेरे कलीग और दोस्त लेफ्टीनेंट कर्नल चौहान के भतीजे। ये भी हमारे साथ छुट्टियां बिताएंगे।'' औपचारिक अभिवादन के बाद हल्के फुल्के ड्रिन्क्स, सूप के साथ औपचारिक बात चीत होने लगी। ''
सुधा तुम तो रुकोगी ना!
'' उसने पहली बार सुधा को गौर से देखा। ताम्बई रंग, स्निग्ध त्वचा, बडी बडी क़ाजल से लदी आँखे, भरे होंठ और थोडी चौडी नाक चेहरे पर बहुत परिपक्व सधा हुआ भाव। भरे सानुपातिक जिस्म पर बातिक प्रिन्ट का भूरा कुर्ता और जीन्स, घने काले लम्बे बालों को आकर्षक मगर बेतरतीब जूडे में लपेटा हुआ। एकाएक आप पर छा जाने वाला प्रभावशाली दृढ व्यक्तित्व। बात करने के ढंग और शब्दों के चयन से लगता है कि बुध्दिजीवी और कलाकार बात कर रहा है। फिर नजर घूमी तो नीला पर जा टिकी चम्पई रंग, बुआ की सी ही बडी-बडी लम्बी आँखे पर नाक और होंठ मां जैसे सुघढ। पतली दुबली सी लम्बी काया। ''
क्या देख रहे हैं आप,
पापा देखो ना आपके
मेहमान खाना तो खा ही नहीं रहे।'' सुबह वह देर से उठ सका।
उठते ही खिडक़ी
में आया तो देखा नीचे मयंक और उसका दोस्त जिप्सी में सामान रख रहे थे।
'' मेरा मन नहीं कर रहा कॉलेज जाने का पर आज मेरा प्रेक्टिकल पीरीयड है, बाहर बुआ एक पेन्टिंग बना रही है, देखते रहियेगा बोर नहीं होंगे। शाम को मैं आऊंगी तब घूमने चलेंगे।'' वह हंस पडा। चाय पीकर वह बाहर आ गया। सुधा सचमुच एक पेन्टिंग में व्यस्त थी। वह पीछे जाकर खडा हो गया। ''
ओहआप।'' दोनों हंस दिये। हंसती हुई सुधा अच्छी लगती है। हंसी के चेहरे पर से गंभीरता के मुखौटे को खिसका जाती है। उसने पेन्टिंग को ध्यान से देखा, उसे वह नीला की पोर्ट्रेट लगी। चेहरा अभी अधूरा था, बडी आँखें, चेहरे पर बिखरे सुनहरे बालों का गुच्छा, लैस वाला गुलाबी टॉपबाकि पीछे बैकग्राउण्ड अधूरा थातस्वीर अधूरी होने की वजह से उदास सी लग रही थी। सुधा ने बालों से लकडी क़ा मछली के सिर वाला कांटा निकाला, जो कि उसकी रुचि के अनुसार कलात्मक था और बाल कमर तक फैल गये और पहाडी बयार में उडने लगे। वह गौर से देखे बिना न रह सका सुधा ने उसकी नजर को उपेक्षित कर दिया और ब्रेकफास्ट यहीं लाने के लिये कह कर चली गई। ब्रेकफास्ट बाहर लॉन में लग गया और परिवार के बचे हुए सदस्य वहीं आ गये। ब्रिगेडियर सिन्हा ने कश्मीर मसले पर बात छेड दी तो वह चर्चा देर तक चलती रही। सुधा ज्यादा रुचि नहीं ले रही थी। वह उठ कर लाईब्रेरी में चली गई तो ब्रिगेडियर साहब मुद्दे पर आ गये। '' तो अविनाश तुम्हारा सुधा को लेकर क्या ख्याल है? वह अचकचा गया। क्या कहे? ''
देखो बेटा,
मुझे तुम्हारा अतीत
मालूम है,
सुधा को भी मैं ने बताया
है। अब तुम दोनों को ही विवाह को लेकर निर्णय ले लेना चाहिये। यह समझ लो
यह आखिरी गाडी हैउसके बाद या तो सफर टाल दो,
या इसी में चढ ज़ाओ।'' लंच के बाद वह अपने कमरे में आने के बाद देर तक इस विषय पर सोच सोच कर उलझता रहा। सुधा आर्मी के माहौल में रही है, अच्छी लडक़ी है। क्या हाँ कह दे? ''
हाय! क्या सोच रहे थे?
बुआ के बारे में?'' शलवार कुर्ते में नीला बडी बडी लगी। दोनों ने कॉफी पी ली तो नीला ने उसे खींच कर उठा दिया- ''
जाईये जल्दी चैन्ज करिये
ना। हम घूमने चलेंगे।'' उसने नीला को साथ ले ही लिया। सुधा ने भी पैरवी की क्योंकि दोनों ही टाल रहे थे एकान्त का साथ। एक उमर के बाद कितना मुश्किल हो जाता है किसी को अपनाना, प्रेम करना और जिन्दगी भर निभाने का प्रण लेना, महज कुछ शारीरिक जरूरतों और सहारे के लिये। वह भी शायद यही सोच रही होगीअपनी अपनी आजादियों की लत लग गई है हमें। और उम्र में तो वह मुझसे भी दो साल बडी ही है। उम्र कोई मायने नहीं रखती, क्या उसके कई अच्छे दोस्त उससे बडे नही? पर फिर भीनहीं कर सकेगा अभी वह हाँ। ''
हाय अविनाश जी,
चलें!''
नीला ने आकर हाथ पकड
लिया,
एक उष्ण और उत्साह से भरा
स्पर्श। सुधा आ गई। साडी में भी वही कलात्मक स्पर्श। ''कौन
ड्राईव करेगा?'' नीला ही बोलती रही सारे रास्ते दोनों खामोश थे अपने अपने दायरों मे। एक मंदिर की सीढियों के पास जाकर सुधा ने गाडी रोक दी। उपर चढते हुए उसने कहा मैं अभी आई। ''
क्या तुम्हारी बुआ जी बडी
धार्मिक हैं? '' वह अब नीला के बारे में सोच रहा था, कितनी जीवन्त है यह लडक़ी। कितनी निश्छल। - आगे |
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