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एक पुलिस वाले की मौत 

उस शहर में तीन लोग रहते थे| यों तो दुनिया का कोई शहर ऐसा नहीं है जहां ज्यादा लोग रहते हों क्योंकि रहते तो वे हैं जो 'रहने' की परिभाषा में आते हैं बाकि तो दो टांगों वाले जिनावरों की भीड क़ा रेला होता है जो सुबह से शाम तक सिटी बसों, टेम्पों, तांगों और लोकल ट्रेनों में धक्के खाता है| बेटे की नौकरी और बेटी की शादी की उधेडबुन में ही मानव तन नष्ट करता है मजदूरी कर शाम को ताडी पीना या ऑफिस से आकर लम्बा - लम्बा पादना और अफसरों को गाली देना मगर सामने मिमियाना बस इसी में उम्र तमाम करता है|
उस शहर में तीन लोग रहते थे| यों तो जितना बडा शहर होता है उतने ही रहने वालों की संख्या भी ज्यादा होती है
, दो टांगों वालों का रेवड भी ज्यादा होता है| वो शहर दरअसल छोटा शहर था, जिला मुख्यालय| आबादी पांचेक लाख| रहने वाले तो तीन| एक एक्स, एक वाई और एक जेड़| क्यूं ये नाम ठीक है नवैसे भी रहने वाले 'घणनामी' होते हैं उनके लिए उपयुक्त नाम ढूंढना एक मुश्किल और दुष्कर कार्य होता है| कुछ लोग उन्हें हुकुम, कुछ अन्नदाता, कुछ माई - बाप, कुछ सर, कुछ साब, कुछ हमारे लोकप्रियऔर पता नहीं क्या - क्या कहते हैं| जबकि सच्चे नाम उनके लोमडदास, बिच्छूमल, नागनाथ से ज्यादा अंतरंगता रखते हुए होते हैं|
खैर उस शहर में तीन लोग रहते थे| एक्स, वाई, जेड़| तीनों तीन खेमों में बंटे हुए| एक्स का खेमा लाल, वाई का खेमा 'रंग निरपेक्ष' और जेड़ का खेमा हथौडा| वे तीनों यदा - कदा - सर्वदा अपने रहने का प्रमाण देते रहते थे| 'जिंदाबाद - मुर्दाबाद'  ' तुम संर्घष करो हम तुम्हारे साथ हैं|' 'नहीं सहेंगे, नहीं सहेंगे|' वगैरह वगैरह उनके मुख्य आराध्य थे| वे सबको मानते थे बस नहीं मानते थे तो एक दूसरे को| यों होली - दीवाली - ईद - बकरीद कोई त्यौहार ऐसा नहीं होता था, जब तीनों एक दूसरे के गले नहीं मिलते थे या गलबहियां नहीं होते मगर ज्यों ही अलग हुए नहीं कि एक दूसरे को गालियां देते, मां बहन करते, भौंकार मारते, अवाम को भडक़ाते, नारे लगवाते, बंद करवाते, कानून नहीं बना हुआ हो तो कानून बनवाते और बना हुआ हो तो तुडवाते| एक से बढ क़र एक चटखारेदार लफ्फाजी करते| ऊपर वाले ने तीनों को पर्सनेलिटी एक सी बख्शी थी| सांवला रंग, भद्दी तोंद, किसी बनैले सुअर सी थूथन वाला मुंह, लाल अधमुंदी आंखें| हुंकार मारते तो तोंद में भीषण कंपन होता| 

उन तीनों ने पूरे शहर को गधा बना रखा था| वे इशारा करते और शहर ढेंचू ढेंचूं करता| बस फर्क इतना कि वे जिधर इशारा करते उधर से ही शहर ढेंचू ढेंचूं करता| उनको अजान, प्रार्थना या आरती से कोई खास अपनत्व नहीं था| वे पिछले जनम के गिरगिट थे| जनता भोली, थोडी मूरख, थोडी भली होती है| कुल जमा वोट पडते 50 प्रतिशत, इसमें से 10 प्रतिशत खारिज हो जाते, 20 प्रतिशत फर्जी होते, पांच प्रतिशत दूसरे छुटभैय्यों को मिलते और बचे पन्द्रह में से जिसे 7 5 प्रतिशत वोट मिलते बस वही लोकप्रियजननायकहृदयसम्राटजनता का प्याराआंखों का तारा बन जाता| पूरी आबादी से 7 5 प्रतिशत वोट वाला सभी का नायक बनेगा| इस प्रकार के अद्भुत आनंद की सृष्टि इस शहर के लोकतंत्र में ही संभव थी| 

वे तीनों कभी ये जानने का प्रयास नहीं करते थे कि वोट 50 प्रतिशत ही क्यों पडे? 100 प्रतिशत क्यों नहीं? बाकि प्रचास प्रतिशत का क्या हुआ? वे जानते थे कि बाकि प्रचास प्रतिशत वे लोग हैं जो वोट देने न ही जाएं तो अच्छा वरना सारा गणित गुड ग़ोबर हो सकता है| वैसे भी पच्चास प्रतिशत बेचारे किस्म के बुध्दिजीवी होते हैं जो स्वतन्त्रता की पचास सीढियां चढक़र हांफ चुके हैं| लोकतन्त्र को कुंए में ढकेल खुद किसी खेजडी क़े नीचे सो चुके हैं| पूछने पर खींसें निपोर कर कहेंगे कि '' एक सांपनाथ एक नागनाथ, क्या करें वोट देकर? वाह भाई वाह| 

इसलिए उन तीनों का राज था| शहर चिडी चुप था| उनके गुर्गे - चंपू पूरे शहर में फैले हुए मजाल कि कोई उनकी शान में गुस्ताखी करे| शेष भीड क़भी तबादले के लिए फडफ़डाती तो कभी मुहल्ले में हैंडपंप खुदवाने के लिए खदबदाती| वे सब कुछ करते| विमान द्वारा दिल्ली धोकने से लगतार 'सुलभ शौचालय' का फीता काटने तक| तब दो टांगों वाला रेवड उनकी जय जयकार करता| 

उस शहर में वे तीनों रहते थे| अमनचैन, सुखशांति, शहर के किनारों तक पसरा हुआ आराम| चैन खींचना, पर्स मारना, आत्महत्या, हत्या बलवा, बलात्कार, मादक पदार्थों की तस्करी अब ये सब तो शहर में होगा तो होगा ही मगर इन सबका यह मतलब तो नहीं कि शहर में अमनचैन नहीं है? आप देखिए जब भी शहर में कोई मेला प्रदर्शनी लगती है, पूरा शहर दौडा आता है| भेल - पूरी खाता है| बच्चे आईसक्रीम खाते हैं| कुछ वर्गों की बीवियां पर्स आगे लटकाए घूमती हैं और मर्द, बच्चे गोद में लिए साथ - साथ चलते हैं, तो कुछ वर्गों में मर्द आगे चलते हैं बीवियां पर्स लटकाए बच्चों के साथ पीछे| युवतियां यह जानते हुए भी कि शोहदे फिकरे कसेंगे फिर भी अजीब और विचित्र वेशभूषा में मेलों में आऐंगी| खिचडी हिंगलिश बोलेंगी| स्वयं को ऐश्वर्या या करीना के समक्ष तोलेंगी| आप अमन और शान्ति क्या चाहते हैं? अब छेड - छाड अौर बदतमज़ी तो होगी ही| आप भी सब्र रखो| बुध्दिजीवी ठाली कौम है| क़रती कुछ नहीं और 'थूक बिलौने' सबसे सबसे आगे| सो यह तो मानना पडेग़ा कि शहर में अमन चैन है| वो भी उन तीनों के कारण है क्योंकि उनके चम्पू यही बता रहे हैं| आप वही तो मानेंगे जो कोई बताएगा| अपनी अक्ल का इस्तेमाल करते तो वोट पचास की जगह सौ प्रतिशत नहीं पडते? 

उस शहर में तीन लोग रहते थे और अचानक चौथा रहने आ गया| बस यहीं से जलजला शुरु हुआ| 'रह' तो तीन ही सकते थे| बाकी रेवड में शामिल हो जाओ एक हाऊसिंग बोर्ड का मकान किश्तों पे खरीद लो| 'लूण - तेल-लकडी' क़े हल में गृहस्थी काटो| जवान लडक़ी को घर भेजना, दहेज देना, बेटे की नौकरी की जुगाड क़रवाना, मोहल्ले के गुंडों को रिरियाकर नमस्ते करना और मर जाना बस यही आपके हिस्से में है| सो चौथा रहने आ गया| चौथा कदकाठी से सामान्य मगर पट्ठा मजबूत, तीखे तेवरों, बेधती आंखों और दहाड क़े लिए ख्यातनाम| वो पुलिसवाला था, जिले का बडा अफसर| वर्दी खूब फबती, ऊपर से आई पी एस का तमगा| ये नए छोरे भी अफसर बनते ही अपनी पे आ जाते हैं| अरे भाई सरकारी वर्दी मिली है तो सलाम मारो जो 'रहते' हैं उनकी हाजरी बजाओ बाकि दो टांगों वाले रेवड क़ो जी भर के हांको और लक्ष्मीपूजन में व्यस्त रहो मगर सिरफिरों का आप क्या कर सकते हैं? साले! ईमानदारी, कानून, डयूटी, लॉ एण्ड आर्डर सभी लटका कर घूमते हैं| अरे भाई और भी तो एस पी हैं| बैठे हैं आराम से| पदोन्नति समय पर हो जाती है| जो 'रहते' हैं वो सिफारिश भी तो करते हैं| सेल्यूट बजा दो| मगर नहीं, खब्ती कोई बस में से थोडे ही उतरते हैं? ऐसे ही तो नजर आते हैं|

सो चौथा 'रहने' आया तो तीन 'रहने' वालों को तो 'उंगली' हो गयी| एक्स, वाई, जेड़ और अब 'पी'| मामला जमा नहीं| वैसे हवाएं 'पी' के आने से पहले ही संदेशा ले आई थीं कि आदमी कडक़ है| उसूलों वाला है, दस साल में तेरह ट्रान्सफर झेल चुका है| ऐसा नहीं कि पी के शहर आने की बात पर एक्स, वाई, जेड़ ने अपने अपने स्त्रोत नहीं टटोले? आराम की जिन्दगी में बेकार खलल होगा सो ऊपर तक समझाते रहे कि यह आदमी पार्टी के लिए ठीक नहीं है| कार्यकर्ताओं का मनोबल तोडेग़ा मगर 'ठीकरी घडा फोड ग़यी' और पी इस शहर में आ गया| 

'' चौप्प साले! है तो खाकी वर्दी पहने एक आदमी| तुम साले इतने! मुफ्त का खा खाके मुटिया रहे हो| अगेन्स्ट नहीं कर सकते? हो गई राजनीति| बोरी बिस्तर समेटकर गांव में परचूनी की दुकान खोलनी पडेग़ी|' एक्स ने अपने चंपुओं को गरिआया|
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अभी तेल देखो तेल की धार देखो| नया नया आया है, उतार देंगे सारी हेकडी|'' एक्स का ध्यान रखो| उसका खेमा क्या करता है| बाकि मैं हूं ना|'' वाई ने अपने चंपुओं को पुचकारा|

'' इसकी मां का अपने लोगों पर हाथ डाला ना तो साले की पत्थर रगड दूंगा| जनप्रतिनिधि हूं कोई मजाक नहीं| ऐसे खाकी वर्दी वाले मेरी बांयीं जेब में थोक के भाव रहते हैं और ज्यादा स्याणपट्टी करी तो तुम साले किस दिन के लिए हो धिक् है तुम्हें'' जेड ने अपने चंपुओं को धिक्कारा| 

शहर की भीड अचकचा गई| दो टांगो वाला रेवड टांगों पर उचक उचक कर झांकने लगा| अखबार में खबर थी कि एस पी ने कानून और व्यवस्था सुधारने का ऐलान किया है| सारे थानेदार मुस्तैद हो गए| सिपाहियों ने बेल्ट कस लिए| यातायाता का हवलदार वक्त पर चौराहे पर खडा होने लगा| शहर में गश्त बढा दी गई| मगर हैरानी कि 'तू डाल - डाल, मैं पात - पात' वाली स्टाइल में अपराधों का ग्राफ बढने लगा| रेवड फ़िर भागने लगा| ऐसा कैसे हो सकता है कि कानून की व्यवस्था किसी रेडलाइट ऐरिया जैसी हो गयी कि छापे मारो पर सुधरती नहीं| यातायात के लिए चौराहे पर मार्किंग की गयी| जेब्रा क्रॉसिंग बनाए गए| वन वे कौन कौनसा मार्ग होगा यह खबर अगले दिन अखबारों में दे दी गई| टैक्सीचालक वर्दी पहनें और दोपहिया चलाने वाले हैलमेट पहनें यह व्यवस्था तय की गई| पच्चीस तारीख से सब कुछ शुरु| 
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चलो तनख्वाह से पहले खर्चा - पाणी निकल आऐगा| एक हवलदार बुदबुदाया|
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अरे ऐसे अफसर आते जाते रहते हैं भैया| व्यवस्थाएं तो ऐसे ही चलती हैं| एक हिनहिनाया|
एक ही सप्ताह में छ: सिपाही निलंबित क्योंकि पेशी पर जाते अपराधी किसी तरह हथकडी सहित या खुलवा कर फरार हो गए| 'हॉक' गश्तीदल के चार सिपाहियों को लाइनहाजिर कर दिया क्योंकि वे रात को पौने दो बजे तरकीब से घर चले गए थे| परेड अब अनिवार्य होगी| पुलिसवालों की तौंद स्वीकार्य नहीं होगी| एस पी जनदरबार लगाएंगे|
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मर गए ये कुछ ज्यादा ही है भई|'' एक बोला|
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चलो कोई तो मर्द आया|'' दूसरे ने टोका|
रेवड फ़िर भागते - भागते रुक गया| टांगों पर उचक उचक कर देखने लगा| पता नहीं क्या हुआ रेवड सरपट भागा| शहर में चोरी - लूटपाट बढ ग़ई| हर रोज 'चोर चोर' सुनाई देने लगा| पता नहीं कुकुरमुत्तों की तरह इतने चोर कैसे उग आए?
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जितने भी हिस्ट्रीशीटर हैं, सबको अन्दर कर दो, कोई खुला नहीं घूमे|'' पी का आदेश और थानों से जीपें उडी सो एच एस अंदर| ढेर सारे चम्पू| व्यवस्थाएं सुधरी मगर कुर्सी चरमरा गयी|
'' स्साला ज्यादा स्याणा है|'' एक्स गुर्राया|
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वर्दी उतरवा दूंगा साले की|'' वाई तिलमिलाया|
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औकात दिखा दूंगा साले की|'' जेड मिनमिनाया|
'' पुलिस थानों में मानवीय व्यवहार होना चाहिए| व्यवस्थाएं इस प्रकार हो कि लोग थाने में आते घबराएं नहीं| थाने न्याय की प्रथम सीढी हो| आम आदमी को राहत मिले| शिकायत मिली तो खैर नहीं|'' नए एस पी के आदेश धडधडाते हुए सडक़ों पर दौडने लगे| चम्पू अंदर है| आका बाहर| कुछ सूझ भी तो नहीं रहा|
'' एक साथ चोरी शुरू कर!'' एक्स, वाई, जेड़ का हुक्म आया| शहर में फिर से चोरियां शुरु| आए रोज अखबारों में कानून व्यव्स्था के बिगडने का नजारा, मलाई मार के|
''पुलिस निकम्मी है|''
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पुलिस नकारा है|''
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अपराधियों से मिली है|''
एक्स, वाई, जेड़ के कथन समाचार पत्रों में कत्थक करने लगे|
हैलो! मैं होममिनिस्टर! भई पी क्या बात है
? मैं यह क्या सुन रहा हू/| इतनी अशान्ति? तुम्हारे जैसे मर्दुए अफसर के रहते? कुछ भी करो मुझे हर कीमत पर अमन और चैन चाहिए|'' रात को नौ नौ बजे तक नया एस पी मीटिंग्स कर कानून व्यवस्था में सुधार के लिए जूझ रहा है| 
अगले दिन जाब्ता कलेक्ट्री के बाहर लगा रहा| टैम्पो वाले वर्दी नहीं पहनना चाहते हैं| धरना - प्रदर्शन तो तय है|
''जो हमको वर्दी पहनाएगामिट्टी में मिल जाएगा|'' एक्स बिना वर्दी के टेम्पो चालकों के शरीर में उतर गया| दोनों तरफ रास्ता जाम| जुलूस शहर के मुख्य मार्गों से होता हुआ कलेक्ट्री पहुंचा| बाकायदा पी का पुतला जला| सभा हुई| हर वक्ता एक्स का इशारा पाते ही 'भौं - भौं','भौं - भौं' करता सामने बैठे श्रोता तुरंत पूंछ हिलाकर कूं - कूं करते हैं| 
दो टांगों वाला रेवड धीमा होकर बगलें झांकता हुआ निकलता रहा| शहर अस्त - व्यस्त हो गया| आज रेवड बगैर टैम्पो ही भागा सिटीबसों और ट्रेनों से| टैक्सी - टैम्पो नहीं मिले कान ऊंचे कर पूरा दिन रेवड बुदबुदाता रहा _ 'आम आदमी परेशान है|'
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भुगतता तो आम आदमी ही है|''
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सभी एक जैसे हैं|''
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इस देश का तो राम रखवाला है|''
उन तीनों के 'रहते' राम रखवाला कैसे हो सकता है| सो एक्स के चम्पू ने रेवड क़ो घूरा| रेवड सरपट भाग लिया| 
आज शहर बन्द रहेगा| रेवड ने अखबार में पढा| दो टांगो वाले जिनावर बालकनी से गपियाने लगे| आज सब कुछ बन्द था| न गाडी न घोडा| न पेट्रोल पंप खुलेंगे न सरकारी इमारतें| सरकारी इमारतें तो खैर वैसे ही कर्मचारियों - अफसरों को उडीक़ती रहती हैं सो आज ताले खोलकर चौकीदार सो जाऐगा| हेलमेट के विरोध में जुलूस व सभा होगी कलेक्ट्री के सामने| वाई हेलमेट विरोधियों के शरीर में उतर गया| फिर कलेक्ट्री का रास्ता दोनों तरफ से बन्द| फिर जुलूस शहर में होता हुआ कलेक्ट्री पहुंचा और आम सभा में बदला|
'' नहीं सहेंगे|नहीं सहेंगे|'', ''अत्याचार नहीं सहेंगे|'' फिर पी का पुतला जला| हर वक्ता वाई से इशारा पाते ही 'भौं - भौं','भौं - भौं' करता सामने बैठे श्रोता तुरंत पूंछ हिलाकर कूं - कूं करते हैं| 
दो टांगों वाला रेवड धीमा होकर बगलें झांकता हुआ निकलता रहा| शहर अस्त - व्यस्त हो गया| आज रेवड बगैर टैम्पो ही भागा सिटीबसों और ट्रेनों से| टैक्सी - टैम्पो नहीं मिले कान ऊंचे कर पूरा दिन रेवड बुदबुदाता रहा _ 'आम आदमी परेशान है|'
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भुगतता तो आम आदमी ही है|''
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सभी एक जैसे हैं|''
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इस देश का तो राम रखवाला है|''
उन तीनों के 'रहते' राम तक बात कैसे पहुंची|अबकी वाई के चम्पू ने रेवड क़ो घूरा| रेवड सरपट भाग लिया| 
जेलों में चम्पू सुविधाएं मांगने लगे| मिलने वाले हवलदारों ने तम्बाकू - बीडी क़ा प्रबंध तो किया ही| एक्स, वाई, जेड़ का सभी थानों में आकर थानेदारों को समझाने आये कि चम्पुओं को हाथ - पांव - मुंह - दांत कुछ नहीं लगाए वरना एस पी तो आते जाते रहते हैं| थानेदारों की मूंछों के बाल भविष्य की चिंता के मारे खडे हो गए|
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लगता है, सा'ब जाऐंगे|'' हवलदार पी के सिंह बडबडाया|
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चोप्प यार, ये रहेंगे| ईमानदारी इनके अन्दर तक है और पहुंच के बाहर तक|'' हेड हवलदार बिना पी के सिंह रिरियाया|
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लगी दस की|''
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क्या दस की, पचास की लगा| देगा तो तू वैसे ही नहीं| सामने वाले ठेले से ले लेंगे|''
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सो तो आप जानते ही हैं गरीबी का आलम|''
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तो लगा पचास की|''
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अबे थोडी रेवडी अौर दे और थोडी बांध|'' पी के सिंह और बिना पी के सिंह ने रेवडी वाले को देखा|रेवडी गई| एक दूसरे को बांटने लगे|
नुक्कड
ं पर जनसभाएं शुरु| मोहल्लों में संघर्ष समितियां बनीं| चम्पुओं की दीन मुद्राओं वाले फोटो अखबार में छापे जाने लगे| शीर्षक होता _ ''पुलिसिया कहर, नीरीह पर जुल्म|'' '' रक्षक बना भक्षक|'' वगैरह वगैरह| 
शहर में हैण्डपंप, पानी की कमी, बिजली की कटौती, डैड टेलीफोन्स, पेट्रोल के बढे दाम मंहगाई आदि टुच्ची और व्यर्थ की समस्याएं गौण हो गईं और कानून में बढती अराजकता मुख्य हो गई| प्रभात फेरियां निकाली जाने लगीं| मुख्यालयों तक मैराथन होने लगी| एक्स, वाई, जेड़ ने सयुंक्त मोर्चा का गठन कर लिया| ' नागरिक अधिकार संगठन'| रेवड क़ो भागने से रोक दिया गया| अलग अलग सभाओं में बांट दिया गया| हाथों में तख्तियां दी गईं| चंपुओं ने पोजिशन ले ली| रेवड नीरीह आंखों से सब कुछ ताकता रहा| चंपुओं ने रेवड हांका सो रेवड दौड पडा| एक्स, वाई, जेड़ उन्हें 'शाबास लगे रहो' कहते रहे| चंपू संघर्ष करते रहे| कलेक्ट्री के सामने वाला विशाल मैदान रेवड से ठसाठस भर गया| पूरे मैदान में बैं - बैं और मिमियाने की आवाज रही थीं|
पुलिस ने पूरा मैदान घेर लिया| विशेष जाब्ता लगा| कलेक्ट्री के दरवाजे जड दिए गए|
''हाय हाय  भौं भौं''''हाय हाय  भौं भौं'' आकाश में उडने लगे| रह रह कर चम्पू भौंकारे मारते रेवड ख़दबदाता| | एक्स, वाई, जेड़ ने एक अस्थायी मंच पर कुण्डली मारी| फिर फन ऊंचा किया और फुंफकारा _
''
फुंऽऽ''
वाई ने भी एक्स की तरफ स्नेह से देखते हुए फन ऊंचा कर फुंफकारा _
'' फुंऽऽ''
जेड ने तुरन्त उसका अनुसरण किया_
''
फुंऽऽ''
रेवड घबरा गया| रेवड उठ खडा हुआ| चम्पुओं ने भौंकार मारी|
'
एक दो, एक दो यह दरवाजा तोड दो|'
_
पथराव
_
लाठीचार्ज
_
गोलीबारी
अगले दिन अखबारों के पहले पेज को खून से छापा गया, '' तीन, दो टंाग वाले जिनावर गोली खाकर शहीद हुए|'' जनरल डायर से पी की तुलना की गयी| एक्स, वाई, जेड के कॉलम बयान छपे| शहर अशान्त हो गया| नौ बजे तक पूरा शहर चुपचाप पडा रहा मगर दस बजे बजते बेचैनी बाहर| रेवड भागने की बजाय उत्सुकता से फुदकने लगा _
''
अब क्या होगा?''
चम्पू बोले,''यह अत्याचार है|''
रेवड ने दोहराया|
चम्पू बोले,''पी खूनी है|''
रेवड ने दोहराया|
चम्पू बोले,'' जब तक पी नहीं हटेगा शहर में जन र्कफ्यू रहेगा|'' 
रेवडदास दौडक़र अपने दडबों में घुस गया| तीन दिन बीत गए मगर चौथे दिन का सूरज सुख शांति का संदेश लाया| पी का तबादला हो गया| पी चला गया| दो टांगों वाला रेवड फ़िर सरपट भागने लगा| एक्स वाई जेड अपनी अपनी छाबडियों में जा बैठे| एक साथ फुंफकारे ' मर गया साला|'
चम्पुओं ने जयकारा लगाया|
शहर में आनन - फानन में अमन - शान्ति फैल कर सो गयी सूरज फिर रेवड क़े साथ सुबह ऑफिस जाने लगा| शहर फिर चल पडा|
 
'
चलो अच्छा हुआ पुलिसवाला मर गया वरना सब कुछ ठीक नहीं था|' सूरज ने अपना टिफिन खोलते हुए किसी सरकारी दफ्तर में कहा| चम्पू फिर 'भौंकारे _ जै हो !'' शहर फिर चलने लगा| रेवड फ़िर भागने लगा|

डॉ. अरविंद सिंह
अप्रेल 1, 2007

 

 

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