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दो मेढक कुछ समय पहले की बात है दो मेढक थे। वे जंगल में तालाब के किनारे एक पेड क़े नीचे रहते थे। एक दिन उन दोनों ने सोचा ''हमने तो बाहर की दुनिया देखी ही नहीं ज़ंगल के बाहर भी तो कुछ होगा। चलो जरा इनसानों की दुनियां में घूम कर आते है।'' खाने पीने का थोडा सा सामान लेकर वे दोनो निकल पडे।फ़ुदकते-फुदकते वे जंगल की सीमा को पार करके शहर पहुंचे। वहां उन्होंने बहुत कुछ देखा- बडी बडी ऊंची इमारतें प्रदूषण फैलाते हुए वाहन रोटी कमाने की दौड में भागते हुए लोग ख़ेल कूद और पढाई में मस्त नन्हें नन्हें बच्चे शोर शोर और बहुत शोर। उन्हें अपने घर की याद आने लगी। वे बहुत थक भी गए थे। उनका दिल कर रहा था कि उन्हें पानी मिल जाये और वे एक गीली जगह पर थोडा आराम कर लें। खोजते-खोजते वे एक दूध वाले की दुकान में घुस गए। वहां एक बाल्टी रखी थी। उन्हें लगा कि इस बाल्टी में पानी होना चाहिये फिर क्या था झट से दोनों ने एक ऊंची छलांग लगाई और पहुंच गए उस बाल्टी के अन्दर। पर यह क्या? बालटी में तो पानी नहीं था वह तो मलाई से भरी हुई थी।बेचारे दोनो मेढक उस मलाई में डूबने लगे उनका दम घुटने लगा सांस फूलने लगी आखें पलट कर बाहर आने लगीं। एक मेढक ने सोचा'' मेरा तो अंतिम समय आ गया है हाय रे मेरी किस्मत! शहर आकर इन अनजान लोगों के बीच ही मरना था।'' उसने अपने ईश्वर को याद किया और मौत का इन्तजार करने लगा। परन्तु दूसरा मेढक हार मानने को तैयार नहीं था। वह कोशिश करने लगा कि किसी तरह उस मलाई भरी बाल्टी में से वह बाहर निकल आये। वह अपने पैर जोर से चलाने लगा।बहुत कोशिश करने पर भी वह बार्रबार फिसल जाता। फिर भी उसने अपना दिल छोटा नहीं किया हिम्मत का दामन नहीं छोडा वह लगातार कोशिश करता रहा और अपने पैर चलाता रहा। अरे यह क्या!
अचानक उसने देखा कि वह ऊपर उठने लगा।
उसके
लगातार ज़ोर से पैर चलाने से मलाई भी लगातार हिल रही थी और वह मक्खन बनने
लगी।
मेढक में
उम्मीद की लहर दौड ग़ई।
वह बहुत थक
चुका था पर फिर भी पैर
चलाता रहा।फिर
क्या था! मक्खन बनता गया और आखिर में उस मक्खन के ढेर पर सवार वह साहसी मेढक ऊपर
उठने लगा।
जब मक्खन
छाछ के ऊपर तैरने लगा तब उस साहसी मेढक ने बाल्टी से बाहर छलांग लगा दी।
अपनी
हिम्मत लगन मेहनत और जीने की उमंग के कारण वह बच गया परन्तु निराशावादी मेढक उसी
मलाई की बाल्टी में डूब कर मर गया। अधिक बुध्दि
या बल ही केवल काम नहीं आते हैं।
कहानी नीरा कपूर |
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