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अलबम
जिसे हम बूढ़ी माँ कहकर बुलाते हैं एक अलबम है
और लगातार फटती जा रही है एलबम जिसे वह यूँ ही किसी को नहीं दिखाती रखती है सन्दूक में सँभालकर
वह निर्जन औरत खुलती है खुलता है उसका भयावह सूनापन
सन्दूक में बन्द एलबम में धड़कता है
टोकती नहीं स्कूल जाते समय बच्चों को लौटते वक़्त उन्हें पास बुलाती है बूढ़ी बेरिया
बेरों की भाषा में खट्टी-मीठी बातें
अभिभूत माँ-सी बेरिया रख ही नहीं पाती याद
कब कितने पत्थर उछाले
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