मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

 

गर्म तवे पर जल की बूँद सी ये औरतें ....
 

यहाँ गड़ी हुई है नसीबन की ढाई साला बदनसीब मादा लाश 
यहाँ झाड़ियों में क्षत विक्षत शोध छात्रा सुब्बालक्ष्मी 
ट्रेन से धकियाई,फटे कपड़ों, टूटे पैरों वाली यह है मरियम
और वह बेनाम पगली बढे पेट वाली पड़ी है 
घोषित हो चुकीं हैं छूत के रोग सी
गर्म तवे पर जल की बूँद सी ये औरते ....
 
उलटे हो चुके हैं,सधे सीधे पाँव 
इनकी बात करना शर्म की है बात 
मुँह छुपातें हैं शब्द
घुटनों तक उतर आते हैं चेहरे 
खा जाती हैं इनकी शिनाख्तें  
नदी नाले नहरें ......
 
इन पर यूँ खुलेआम नही बोला जाता 
इनके जिक्र अहिल्या हो जातें हैं 
इनके लिए कोई राम नही आता 
बच्चों की किताबों और भगवान् जी के आलों से दूर 
रख दिए जाते हैं वे अखबार जिनमे इनकी ख़बरें हों ...
चोर द्रष्टि से पलटने पड़ते हैं पन्ने, बदलने पड़ते हैं चैनल 
छोटी या बड़ी जैसी भी हों इनके खत्म हो जाने के लिए औरत होना काफी था 
और खत्म कर डालने के लिए बहुत, पंजों का मर्दाना होना .....
 
जिनकी लाशों से आँखें भी आँख चुरातीं हों 
उनके जाने से कहीं कुछ भी तो नही बदला...
वे कभी थीं ही नही इस कोशिश में निषेध हो गये उनके नाम 
रिक्त स्थान पाट दिए गये तुरत फुरत 
जैसे ढांप दीं जातीं हैं लाइलाज बीमारियाँ 
जैसे छुपाई जातीं हैं फटीं उधड़ी सीवनें 
जैसे फाड़ दिए जातें गलत नाम वाले चैक...
यातनाशिविरों के आस पास से गुजरते रहे राजमहिषियों और राजपुत्रों के लश्कर 
भौंकते रहे डॉग स्क्वायड मादा रक्त की ताज़ा गंध पर 
लाल नीली बत्तियों के पहियों तले दम तोडती रहीं संवेदनाएं 
हाँफती रहीं तेज़ रफ़्तार तृष्णा और कुंठाएँ..
 
और उधर भरे पेट ऊँघती सभाओं में अलसाते रहे क्रान्ति और कानून के पर्चे 
रंगीन कांचों में ढलते रहे मगरमच्छी आंसू ....
इंग्लिश गानों पर थिरकती रहीं सोनाबाथ जंघाएँ
पूरी गरिमा से करते रहे शिकारी रंगीन लटों के विमोचन 
कागज भिगोती रहीं,वाटरप्रूफ मेकअप अंजीं महत्वाकांक्षाएं
सियारों के अपाहिज समूह, बराबर लाँघते रहे यश के समुद्र
बहुत बुरी बातों की तरह याद रह जाएँ शायद इन औरतों की हत्याएं
उधार की आग से नही सुलगीं गीली लकडियाँ 
धू धू कर जलतीं रहीं निष्पाप पुआलें !!!!

-वन्दना शर्मा
 

वन्दना शर्मा की अन्य कविताएँ

तुम्हारे प्रेम में हूँ...ये कुछ सबूत मुझको मिले हैं

धत्त्त ....

और अब हम विरोध के लिए सन्नद्ध हैं

हे सत्तासीन स्त्रियों

मैं इसे यूँ सुनूँगी

 

 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com