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और अब हम विरोध के लिए सन्नद्ध हैं

आज फिर बहुत बुरा हुआ है
बाँचने को मिल चुके हैं गरुड़ पुराण
और अब हम विरोध के लिए सन्नद्ध हैं
अपने अपने मोर्चों से बाहर..
हम हैं जगाये गए कुम्भकरण !

हमारी जेबों में रख दिए गए हैं नक़्शे चश्मे दूरबीन इंचटेप और पैमाने
हमारी आँखों पर बाँध दी गयी हैं मनमाफिक रंगों वालीं पट्टियां
हमारे जहन में लहराने लगे हैं गढ़े हुए झंडे
जिनके इर्द गिर्द लिपटी हैं....
मृगतृष्णाओं की बहुरंगी झालरें !

बहुत सख्त बंद कर दिए गए हैं हमारे कान
ढांप दिए गए हैं तमाम रोशनदान..
हमें नहीं, देखना भी नही है उन मरुथली रास्तों की ओर
जिनके अंत में हो कोई छोटा मोटा नखलिस्तान
या वह भी न हो ..
हों, केवल मीलों फैले रेत के भवँर टीले
और प्रतीक्षा में हो आखिरी छोर पर, बस जन्मांत बेचैन प्यास !

ठंडी गहरी अँधेरे भरी माँदों से बाहर आ गए हैं हम
हमारे हाथ भर दिए गये हैं पथरीले शब्दों से..
जिन्हें दागना है तयशुदा निशानों पर...
हमें जमाना है आका की उखड़ती सांसों और अस्थिर पैरों को
धुंधलाई द्रष्टि भी नही डालनी दर्पणी असलियतों और टीसती जड़ों की ओर !

हमारे कन्धों पर कस दिए गए हैं तूणीर..
जिनमें लहुलुहान ठंसे हैं अम्बेडकर, गाँधी और भगत सिंह
यहाँ तक कि अल्लाह या श्री राम भी तुरुप के इक्के से
दबाएँ हैं कांख में ..
शह मात के आखिरी दौर के ब्रह्मास्त्र !

फैले हुए उस रक्त के बींचोंबीच
सज गये हैं युद्ध के मैदान
हम खींचते हैं पैने नुकीले तारों वाले बाड़े
बिछाते हैं नीतियों की चटाईयां कालीन !

हम में से कुछ की शक्ल किलों तक पहुँचने वाली सीढियों से
मिलतीं हैं

कुछ की भाड़े के सिपाहियों और चौकीदारों से
कुछ की पायदानों और कन्धों से..
यहाँ तक कि रुमालों और तौलियों से भी !

ओढ़ लेते हैं काले सफ़ेद मातमी लिबास
मुहं से झरते हैं अविरल झाग ..
जोर जोर से पढ़ते हैं हाथों में थमाए गए मर्सिये
जिनके सुर मिलते हैं ..
जंगी नारों और सलीबों की चीखों पर हँसते ठहाकों से
और टूटी हुई उम्मीदों के चटकने की आवाज से
या झुके सिरों पर मुस्कुराती विजेता द्रष्टि से !

खुली आँखों से रखते हैं दो मिनट के प्रायोजित मौन
चिल्ला चिल्ला कर गातें हैं रटे हुए शोकगीत..
ठीक उसी समय बदल जाती हैं
हमारी शक्लें ..
लाशों पर लड़ते हुए भयानक गिद्ध समूहों में..
नोच डालते है बची कुची उम्मीदें ..
तहस नहस कर डालते हैं पुनर्जीवन के चिन्ह
और फिर गर्वित सहलाते हैं अपनी खुरचें ..
जैसे लौटते हों गली के शेर..
नींद में ऊँघते..
अगले संकेतों की प्रतीक्षा में !!!

-वन्दना शर्मा
 

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