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ला-जवाब
तुम कहते हो प्रेम पूजा है
मगर नास्तिक भी तो प्रेम करते है
तुम कहते हो प्रेम कविता है
मगर अ-कवि भी तो प्रेम करते है
तुम कहते हो प्रेम नशा है
मगर नॉन- आल्कोहॉलिक भी प्रेम करते है
तुम कहते हो प्रेम बंधन है
मगर आज़ाद पंछी भी प्रेम करते है
तुम कहते हो प्रेम अ दैहिक है , पवित्र है
मगर मैने कामसूत्रों में भी प्रेम पाया है
तुम कहते हो प्रेम इज़हार है
मगर गूंगे भी तो प्रेम करते है
तुम कहते हो प्रेम खुशी है
मगर आंसू तो प्रेम मे ही ज्यादा निकालते है
तुम कहते हो प्रेम कृष्णा की बांसुरी है
मगर राधा की खामोशी उस बांसुरी से भी गहरी है
खीझकर तुम कहते हो , प्रेम एक बड़ा क्वेस्चन मार्क है

मैं हँसता हूँ , कहता हूँ प्रेम अकेला …. दुनिया के
हर क्वेस्चन का जवाब है ......प्रेम इसलिये ला-जवाब है !!.

-गौतम कुमार सागर

जनवरी 2015
 

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