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यादें भूली बिसरी वो कैसी यादें थी यादें क्या थी खुद से मुलाकातें थी। मनकी गहराई में डूब देखता रहा सीप में मोती से मंहगी क्या बातें थी। कानो में गूंजती आवाज सुनता गया दिल में बसी जादूभरी नगमातें थी। शीतल लहरें गालों से छूता चला होठों पे किनकी नाजुक सौगातें थी। पलकों के पीछे पलपल झांकता रहा ख्वाबों से सजी कितनी बारातें थी। जिन से हरदम “सौदागर” शिकस्त रहा नियति की वे अजिबो–गरीब करामातें थी। |
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