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समर्पण

जिस क्षण से देखा उजियारा
टूट गए सब तिमिर जाल
तार तार अभिलाषा टूटी
विस्मृत घन तिमिर अंधकार।
निर्गुण बने सगुण वे उस क्षण
शब्दों के बने सुगंधित हार।
सुमन हार अर्पित चरणों पर
सहज सुहर्षित मन का द्वार।
जिस क्षण से देखा उजियारा
टूट गये रे तिमिर जाल।

– लावण्या शाह
 

 

कुछ बन जाओ
मेरे मृण्मय अंतर दीप में तुम बन जाओ आलोक शिखा
घन गर्जन करते मेघ में छिप बन जाओ विद्युत छाटा।
मेरे कंपित हृदय कुंज में बह बन जाओ रूधिर प्रवाह
निर्वासित पथिक के पथ में अचल बन जाओ गृहदीप शिखा
सूने सागर की थाती पर थिर बन जाओ मधुचन्द्रकला
गंगा के लहराते जल पर थिर बन जाओ कोई गीत नया।
उडुगण की चंचल पांती में सर बन जाओ उड़ती छोटी बया
कुसुमित उपवन में जग के खिल बन जाओ एक पुष्प नया।
मां के आंचल में सिमटे शिश–संग तुम बनजाओ मौन सखा
नीले नभ के आकर्षण में लहराकर बन जाओ मलयानील हवा।
पर्वतकी स्वपनिल आंखों में इठला बनजाओ घन आकाशघटा
बागबाग में कुंजकुंज में खिलखिल बन जाओ पुष्प छटा।
धरती के दृग से झरते झरनों में झर बन जाओ संगीत नया
कुछ बन जाओ कुछ बन जाओ इस जीवन से है तिमिर सटा।

– लावण्या शाह

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