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सूरज निकले आधी रात
जहां जागते रहते बच्चे‚
खेल खेलते सारी रात,
नहीं डूबता है जब सूरज‚ निकला रहता आधी रात।

विश्व के उत्तरोत्तर में बसे नार्वे के उत्तर में
उत्तरी ध्रुवीव रेखा पर सूरज चमके आधी रात।

पांच महीने सर्दी बाद‚ जून जुलाई का मधुमास
लोग मनाते खुशियां साथ,   सूरज निकले आधी रात।

मन्द मन्द मुस्काता सूरज, सन्ध्या से मिल रहे प्रभात,
दूर दूर से आ सैलानी‚ देखें सूरज आधी रात।

– डॉ सुरेशचन्द्र शुक्ल
 

स्वतन्त्र?  स्वच्छंद !
मेरे घनिष्ठ मित्र का
अस्पताल से फोन आया
तो मैं चिन्तातुर होकर
सीधे अस्पताल धाया।
अस्पताल जाकर देखा
तो बहुत बड़ा बवाल था।
मैं ने पूछा – '' मित्र‚ तुझे
किसकी लगी है बद्दुआ।
किसने किया बुरा हाल‚
ये कब‚ कहाँ‚ कैसे हुआ?''
वह सिसकी भर बोला –
'' स्वतन्त्र दिन पास आया।
तो मेरे तन–बदन में
राष्ट्रप्रेम पचपचाया।
बीच सड़क पर थूक रहे
एक सज्जन को रोका।
ध्वनिप्रदूषण में लगे
दूसरे 'श्रीमान' को टोका
कालाबाज़ारी कर रहे
तीसरे व्यक्ति को डाँटा।
चौथे भ्रष्टाचारी को
मार दिया मैं ने चाँटा।
आज चारों ने मिलकर‚
मुझे चौक में पकड़ लिया।
अपनी बलिष्ठ भुजाओं में
पूरी तरह जकड़ लिया।
और बोले – '' सुनो बच्चू‚
अब‚ हम सब 'स्वतन्त्र' हैं।
हमारे 'स्व' का है 'तंत्र'
ये 'तंत्रषडयन्त्र' है।
'स्वतन्त्र' का अर्थ है कि
हम मुक्त हैं‚'स्वच्छंद' हैं।
हम कर सकते मनचाहे
सब लंद–फंद–द्वंद हैं।
यह 'स्व' 'छंद' वृत्ति ही
फूलन को जनम देती है।
फिर फूलन का‚ फूलन से
वह बदला भी लेती है।
इसलिये बच्चू‚ चुपचाप
तुम 'स्वतन्त्रदिन' मनाना।
'स्वच्छंद' के 'स्व' 'छंद' में
तुम कभी टाँग न अड़ाना।

– मधुप पांडेय
( साभार नवभारत टाईम्स‚ रविवारीय 12 अगस्त 2001)

 

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