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सेतू

एक सेतु है
हम दोनों के बीच
जिसे पार करते हैं
सहज
जब इस पार का छोर
होता है मेरी पकड़ में
और दूसरा
तुम उस पार
सहेज लेती हो
– अंकुश मौनी

 

प्रकृति का
सबसे अनूठा छल

एक अकथ चाह
मुझे तुम से
जोड़ती है
नित्य‚
पर रोज़ टूटता हूं।
जानती हो क्यों ?
मैं जैसे ही
तुम्हारे नयनों में
गहराइयां देखता हूं
वैसे ही
मै "अभी‚ अभी"
की वासना में ग्रस्त
उस वर्तमान को
भोगने को आतुर
हो जाता हूं
जो
प्रकृति का
सबसे अनूठा छल है।
– अंकुश मौनी

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