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कैसे रचूं
रंगोली सखी री मैं कैसे रचूं रंगोली यह रंग फाग याद दिलावें जब मैं पिया संग खेली होली सखी री मैं कैसे रचूं रंगोली आंख मूंदू तो पिया दिखत हैं आंख खोलूं तो मैं अकेली देखो भर आई अंखियां पिया मत खेलो यूं आंख मिचौली सखियां बुलावें पर मैं न जाऊं मन न बहले, विरह में तड़पूं जी चाहे यूं ही बैठी रहूं मैं अकेली खेत खलिहान आंगन चौपाल बाज़ार भरे हैं पर तुम बिन पिया कोई न मेरा हमजोली मन पूछे अंखियां ढूंढें इन्हें कैसे समझाऊं इन्हें क्या बतलाऊं मैं स्वयं हुई एक पहेली पिया छोड़ सौतन परदेस अब तो घर लौटो तुम बिन तन, मन प्यासा बाट जोहे तुम्हरी दुल्हन नवेली दिवाली स्तुति
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