बचायें बचपन


 

 

 

 

 

आओ आगे बढ़ें, आगे बढ़ बचपन को थामें,
दें उसको बचपन का आंगन,फैला कर बाहें।

रोको-रोको उसे रोको, काल के क्रूर थपेङों से,
बचा लो गर बचा सको, बचपन को हथोङों से।

बहक ना जाये फूल से कोमल नन्हें-नन्हें कदम,
रखना होगा ख्याल बचपन का हर पल हर दम।

बचाना होगा आज को तभी बचा पायेंगे हम कल,
कागज की कश्ती,बारिश का पानी ही इसका हल।

लौटा दें गर हसीं-भोली-मृदु मुस्कान बचपन की,
होगा मासूम बचपन के लिए यह एक स्वर्णिम पल।
 

रोहिनी कुमार भादानी

 




 

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