माँ होने का अहसास



 

 

 

 

 

 

कहते है अजनमें बच्चे की याद नहीं आती
पर मेरे अदंर तो हूक की तरह उठती है अकसर
कहते हैं,
जिसकी आँख -नाक नहीं बनी वह याद कैसे रहेगा ?
कयूँ नहीं रहेगा
उसकी मांसलता याद है मुझे
मेरा अंश।
जिसनें मुझे अहसास कराया कि मैं स्त्री हूं
उसकी न बन सकने वाली माँ ।
आंखों में आज भी एक सपना तैरता है
एक सपना
उसे बाँहों में भरनें का
एक सपना
एक जीव को नितांत अपना कहनें का
भले ही उसका स्पंदन न महसूस किया हो मैंनें
पर कुछ ह्फ्ते ही सही संजोया तो था
अपनें भीतर कहीं
उसनें न रह्ते हुऐ भी मुझे प्रमाण दिया
मेरी सम्पूर्णता का
मेरे उपजाऊ होने का
वषौं बाद भी वह याद है मुझे
आज भी वह दौङा चला आता है अपनी बाँहें पसारे मेरी स्मृतियों में
आज भी उसे खोने की पीड़ा रिसती है मेरे
भीतर कहीं।
काश यही पीड़ा होती उसे भी जिसका वह अंश था।

 

कायनात काजी
 

 

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