ममता का समंदर
ममता का समंदर मां के अंदर
खुली बाहों सा आकाश
स्मित चांदनी लिया सा मुखड़ा
छलकती हंसी जैसे प्रभाश
बिछी रेत पर मेरा चलना
था अनुभव भावी जीवन का
नन्हें निर्मल बचपन के कदम
थे जिन पर तेरे सदा नयन
मेरा जीवन तेरी धड़कन
हर पल मुझे कुछ सिखलाना
कभी छोड़ कर अंगुली मेरी
स्वतंत्र दिशा मुझे दिखलाना
तेरे कारण जीवन पथ पर
चला र्निभीक अभय सध कर
और जब जब पाई मैनें गति
मां तब तब तेरी हंसी खिली
आज भी जब सोचा करता हूं
उस सगर तट के वो दिन
बचपन के खेलों में तूने
जहां सीख अनेंकों दी हर दिन
सक्षम सबल अभय अटल
बना उन्हीं खेलों से था
संजो वही संस्कार भावना
बना हर संघर्ष का भी योद्धा
रेणु आहूजा
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