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एक फौजी की डायरी-3 एक पसरे हुये पत्थर की सलेटी-सलेटी छींकें
कल रात देर तक...बहुत देर तक छींकता रहा था वो सलेटी-सा पसरा हुआ पत्थर|
हाँ,
वही पत्थर...वो बड़ा-सा और जो दूर से ही एकदम अलग सा नजर आता है उतरती ढ़लान
पर,
जिसके ठीक बाद चीड़ और देवदारों की श्रुंखला शुरू हो जाती है और जिसके तनिक
और आगे जाने के बाद आती है वो
-गौतम राजरिशी
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