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एक फौजी की डायरी-4

आई लव यू फ्लाय-ब्वाय  

तारीख: 27 जनवरी 2012

जगह: जम्मु-नगरौटा में कहीं एक सैन्य हेलिपैड

दोपहर के चार बजने जा रहे हैं। दिन भर की जद्दो-जहद के बाद कुहासा चीरते हुये आखिरकार सूर्यदेव मुस्कुराते हैं। चुस्त स्मार्ट युनिफार्म में आर्मी एवियेशन के दो पायलट, एक मेजर  और एक कैप्टेन, वापस लौटने की तैयारी में हैं कश्मीर के अंदरुनी इलाके में कहीं अवस्थित अपने एवियेशन-बेस में, अपने हेलीकाप्टर को लेकर। करीब सवा घंटे की यात्रा होगी। परसों ही तो आये हैं दोनों यहाँ इस एडवांस लाइट हेलीकाप्टर "ध्रुव" को लेकर पीरपंजाल की बर्फीली श्रृंखला को लांघते हुये, छब्बीस जनवरी को लेकर मिले अनगिनत धमकियों के बर-खिलाफ अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करने के लिये। हेलीकाप्टर के पंखे धीरे-धीरे अपनी गति पकड़ रहे हैं। मेजर  एक और सरसरी निरिक्षण करके आ बैठता है काकपिट में और कैप्टेन को अपने सिर की हल्की जुंबिश से इशारा देता  है। फुल थ्रौटल। धूल की आँधी-सी उठती है। पंखों के घूमने की गति ज्यों ही 314 चक्कर प्रति मिनट पर पहुँचती है, वो बड़ा-सा पाँच टन वजनी हेलीकाप्टर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण को धता बताता हुआ हवा में उठता है। कुछ नीचे मंडराते हुये आवारा बादलों की टोली मेजर के माथे पर पहले से ही मौजूद चंद टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं में एक-दो रेखाओं का इजाफा और कर डालती हैं। बादलों की आवारगी से खिलवाड़ करते हेलीकाप्टर के पंखे तब तक हेलीकाप्टर को एक सुरक्षित ऊँचाई पर ले आते हैं। सामने दूर क्षितिज पे नजर आती हैं पीरपंजाल की उजली-उजली चोटियाँ, जो श्‍नैः-श्‍नैः नजदीक आ रही हैं। बस इन चोटियों को पार करने की दरकार है। फिर आगे वैली-फ्लोर की उड़ान तो बच्चों का खेल है। उधर पीरपंजाल के ऊपर लटके बादलों का एक हुजूम मानो किसी षड़यंत्र में शामिल हो मुस्कुराता है उस हेलीकाप्टर को आता देखकर। कैप्टेन  तनिक बेफिक्र-सा है। इधर की उसकी पहली उड़ान है शायद। किंतु मेजर  के माथे पे एकदम से बढ़ आयीं उन टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं के दरम्यान यत्र-तत्र पसीने की चंद बूंदें कुछ और ही किस्सा बयान कर रही हैं। हेलीकाप्टर की रफ़्तार बहुत कम है कोहरे और बादलों की वजह से। आदेशानुसार साढ़े पाँच बजे शाम से पहले बेस पर पहुँचना जरुरी है। इस कपकंपाती सर्दी में दिन को भी भागने की जल्दी मची रहती है और रात तो जैसे कमर कसे बैठी ही रहती है छः बजते-बजते धमक पड़ने को। कहने को है ये बस एडवांस हेलीकाप्टर। रात्री-उड़ान क्षमता तो इसकी सिफ़र ही है

तारीख: 27 जनवरी 2012

स्थान: पीरपंजाल के नीचे कहीं कश्मीर वादी का एक जंगल

सुबह के साढ़े नौ बज रहे हैं। पीरपंजाल के इस पार वादी में जंगल का एक टुकड़ा गोलियों के धमाके से गूंज उठता है अचानक ही। पिछली रात ही बगल वाली एक सैन्य टुकड़ी को जंगल में छिपे चार आतंकवादियों की पक्की खबर मिलती है और सूर्यदेव का पहला दर्शन मुठभेड़ का बिगुल बजाता है। दो आतंकवादी मारे जा चुके हैं और दो को खदेड़ा जा रहा है। सात घंटे से ऊपर हो चुके हैं। पीछा कर रही सैन्य-टुकड़ी जंगल के बहुत भीतर पहुँच चुकी है और शेष बचे दो में से एक आतंकवादी मारा जा चुका है। दूसरे का कहीं कोई निशान नहीं मिल रहा है। एक साथी घायल है। लांस नायक। पेट में गोली लगी है। प्राथमिक उपचार ने खून बहना तो रोक दिया है, किंतु उसका तुरत हास्पिटल पहुंचना जरुरी है। सबसे नजदीकी सड़क चार घंटे दूर है। हेलीकाप्टर बेस को संदेशा दिया जा चुका है

तारीख: 27 जनवरी 2012

स्थान: पीरपंजाल के ठीक ऊपर

शाम के पाँच बजने जा रहे हैं। मेजर ने कंट्रोल पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया है। कुछ क्षणों पहले तक बेफिक्र नजर आनेवाला कैप्टेन  उत्तेजित लग रहा है। कुहरे और षड़यंत्रकारी बादलों के हुजूम से जूझता हुआ हेलीकाप्टर पीरपंजाल की चोटियों के ठीक ऊपर है। मेजर  को बेस  से संदेशा मिलता है रेडियो  पर उसके ठीक नीचे चल रहे मुठभेड़ के बारे में और मुठभेड़ के दौरान हुए घायल जवान के बारे में। बेस अब भी आधे घंटे दूर है और अँधेरा भी। मेजर  के मन की उधेडबुन अपने चरम पर है। कायदे से वो उड़ता रह सकता है अपने बेस की तरफ। उसपर कोई दवाब नहीं है। रूल के मुताबिक उसे साढ़े पाँच बजते-बजते लैंड कर जाना चाहिये बेस  में मँहगे हेलीकाप्टर और दो प्रशिक्षित पायलट की सुरक्षा के लिहाज से। उसे याद आती है अपनी पुरानी इन्फैन्ट्री यूनिट, जिसमें वो पायलेट बनने से पहले ऐसे ही कितने मुठभेड़ों का हिस्सा था और याद आते हैं उसके अपने पुराने कामरेड। हेलीकाप्टर का रुख मुड़ता है पीरपंजाल के नीचे जंगल की तरफ। कैप्टेन  के विरोधस्वरुप बुदबुदाते होठों को नजरंदाज करता हुआ मेजर बाँये हाथ को अपने पेशानी पे फिराता हुआ उन तमाम टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं को स्लेट पर खिंची चौक की लकीरों के माफिक मिटा डालता है

तारीख: 27 जनवरी 2012

स्थान: पीरपंजाल के नीचे कहीं कश्मीर वादी के एक जंगल का सघन इलाका

शाम के सवा पाँच बजने जा रहे हैं। जंगल के इस भीतरी इलाके में शाम तनिक पहले उतर आयी है। झिंगुरों के शोर के बीच रह-रह कर एक कराहने की आवाज आ रही है। उस घायल लांस नायक  के इर्द-गिर्द साथी सैनिकों की चिंतित निगाहें बार-बार आसमान की ओर उठ पड़ती हैं। घिर आते अंधेरे के साथ दर्द से कराहते नायक की आवाज भी मद्धिम पड़ती जा रही है। झिंगुरों के शोर के मध्य तभी एक और शोर उठता है आसमान से आता हुआ। पेड़ों के ऊपर अचानक से बन आये हेलीकाप्टर के उन बड़े घूमते पंखों की सिलहट उम्मीद खो चुके लांस नायक के लिये संजीवनी लेकर आती है। सतह से कुछ ऊपर ही हवा में थमा हुआ हेलीकाप्टर पूरे जंगल को थर्रा रहा है। घायल लांस नायक और उसका एक कामरेड हेलीकाप्टर में चिंतित बैठे मेजर  और कैप्टेन  का साथ देने आ जाते हैं। पेड़ों को हिलाता-डुलाता हेलीकाप्टर अँधेरे में अपनी राह ढ़ूंढ़ता हुआ चल पड़ता है अपने बेस की ओर। घड़ी तयशुदा समय-रेखा से पंद्रह मिनट ऊपर की चेतावनी दे रही है।

तारीख: 28 जनवरी 2012

स्थान: कश्मीर वादी की एक सैनिक छावनी

सुबह के सात बज रहे हैं। घायल लांस नायक  काबिल चिकित्सकों की देख-रेख में पिछले बारह घंटों से आई.सी.यू.  में सुरक्षित साँसें ले रहा है। मेजर अपने बिस्तर पर गहरी नींद में है। मोबाइल बजता है उसका। कुनमुनाता हुआ, झुंझलाता हुआ उठाता है वो मोबाइल...

मेजर:- "हाँ, बोल!"

मैं:- "कैसा है तू?"

मेजर:- "थैंक्स बोलने के लिये फोन किया है तूने?"

मैं:- "नहीं...!"

मेजर:- "फिर?"

मैं:- "आइ लव यू, फ्लाय-ब्वाय!”

मेजर:- "चल-चल...!"

...और मोबाइल के दोनों ओर से समवेत ठहाकों की आवाज गूंज उठती है।

पुनश्‍चः

भारतीय थल-सेना को एवियेशन शाखा  पर गर्व है। कश्मीर और उत्तर-पूर्व राज्यों में जाने कितने सैनिकों का जान बचायी हैं और बचा रहे हैं नित दिन, आर्मी एवियेशन के ये जाबांज पायलेट - कई-कई बार अपने रिस्क पर, कितनी ही बार तयशुदा नियम-कायदे को तोड़ते हुये...मिसाल बनाते हुए। कोई नहीं जानता इनके बहादुरी के किस्से।

 

-गौतम राजरिशी


 

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