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क्या नाकामयाब ही होना था
शिखर वार्ता को?

जब कश्मीर को ही मुख्य मुद्दा होना था तो असफल होना तय था‚ इस वार्ता का। इस बात की असफलता तब ही और तय हो गई थी जब पहले ही दिन अपने मेजबान की इच्छा के विरुद्ध पाकिस्तानी उच्चायुक्त के निवास पर मुर्शरफ ने हुर्रियत के नेताओं से मिलकर लम्बी मीटींग की थी। स्पष्ट था कि वे कश्मीरियों को जताना चाहते थे कि वे कश्मीर के लिये ही आए हैं और वार्ता का मुख्य मुद्दा वही है।

तो फिर औचित्य क्या था इस वार्ता का? मुशरर्फ तो पाकिस्तान में अपने नए नए राष्ट्रपति पद को पाकिस्तानी जम्हूरियत का जामा पहनाना चाहते थे। आए वे राष्ट्रपति की हैसियत से थे बाद में कड़ियल रुख अपना कर फौजी की भूमिका निभाने लगे‚ कि कश्मीर नहीं तो कुछ नहीं। सम्पादकों से वार्ता के दौरान उन्होंने हद कर दी जब कहा कि कारगिल युद्ध पर उन्हें कोई पछतावा नहीं। वाजपेयी जी ने उनके कड़ियल रुख का जवाब उनके समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर नहीं करके दिया। जिसमें लिखा था कि भारत–पाक के सम्बंध सामान्य बनाने की प्रक्रिया कश्मीर समस्या के हल पर निर्भर करती है। इस अतिवादी रुख पर वाजपेयी जी अटल बने रहे। और इस तरह वार्ता असफल रही। एक बहुत बड़ा शोरोगुल धीरे–धीरे थम गया। हल कुछ नहीं निकला।

महत्वपूर्ण वक्तव्य –
"मैं हताश हूँ मगर भारत के साथ वार्ता की उम्मीद रखता हूँ।" – जनरल मुशर्रफ

"भारत आपसी रिश्ते को कश्मीर मसले का बंधक बनाने के खिलाफ है। माफ कीजिये। आगरा शिखर वार्ता में जो पेशकश की गई वह एकमुश्त समझौते के तहत थी‚ जिसे या तो पूरी तरह माना जाता या एकदम नहीं।" – जसवंत सिंह

"शिखर वार्ता से यह तो साबित हो गया कि राजनीतिक तो समझौता करने में कामयाब हो जाते हैं लेकिन जनरलों के लिये घोषणापत्र जारी करवा लेना भी मुश्किल हो जाता है।" – बेनज़ीर भुट्टो

"नफरत के सौदागरों से रिश्ते सुधारने की उम्मीद करना बेमानी है। उनकी आँखों में ताब नहीं कि प्रेम के प्रतीक ताज की खूबसूरती महसूस कर सकें।" – चंद्रशेखर

कारगिल के सूत्रधार से पाकिस्तान के तानाशाह और पाकिस्तान के तानाशाह से राष्ट्रपति बने मुशर्रफ समझौते का मसौदा साथ ले कोई नया इतिहास रचने आए थे और लौटे तो खाली हाथ। कुल मिला कर यह एक राजनैतिक दिखावेबाजी थी‚ जिसे भारत तो खूब समझ रहा था‚ लेकिन पाकिस्तान एक बार फिर भुलावे में रहा।

आज फूलन देवी की दिल्ली में तीन अज्ञात नकाबपोशों ने खुलेआम गोली मारकर हत्या कर दी। एक संर्घषमय जीवन का संघर्षमय अंत हुआ। और भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर लगे लाखों प्रश्नचिन्हों में एक प्रश्नचिन्ह और लग गया।
 

– मनीषा कुलश्रेष्ठ

इसी संदर्भ में –
लोकतन्त्र और संविधान
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