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बधाई
जब
मैं बोलो जी के सम्पर्क में आई तब 'बोलोजी' अपने पैरों पर खड़े थे। एक
निश्छल मुस्कान लिये . किसी बच्चे सी। मैं ने अंगुली बढ़ाई तो कस के पकड़
ली। बस तभी से शुरू हुआ साथ सीखने–साथ चलने का सिलसिला। आज बोलोजी मुखर
है। जाने कितनी आवाजें‚ कितने विचार हमारे लेखकों के रूप में आ जुड़े। |
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