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अहिंसा के अग्रदूत
महात्मा गांधी

आज दो अक्टूबर का दिन है‚ अहिंसा के अग्रदूत गांधी जी की जन्मतिथि। पिछले कई दिनों से जो लगातार हम हिंसा के जिस भयावह दौर से गुज़र रहे हैं‚ ऐसे में आज वे हमारे बीच होते तो क्या सोचते? जिनका पूरा जीवन रंग और जातिभेद की विषमता को कम करने के दुष्कर प्रयासों में बीता हो हिन्दु–मुस्लिम एकता के प्रति जिनका समस्त जीवन समर्पित हो गया हो‚ वे क्या इसी आग में जलते विश्व को देख क्या आज यूं खामोश रहते? उस पतले–दुबले कर्मठ संत ने क्या अपने विचारों और संकल्पों से फिर से दुनिया को अंहिसा की राह अवश्य दिखाई होती। उन्होंने अपने सादे लिबास में हिंसा से जलती दुनिया का दौरा किया होता और संभव होता तो वे आमरण अनशन पर बैठे होते। पर क्या उनके प्रयास सफल होते? उनके आमरण अनशन पर बैठने से आज के इस्लामिक आतंकवादियों पर असर होता
!

शायद नहीं‚ आज जो घृणा और धार्मिक कट्टरवाद का मोटा पर्दा उनकी आँखों पर पड़ा है वह तब न था‚ तब शायद कहीं एक मानवतावादी नरम भावना हिन्दुओं तथा मुसलमानों में थी कि एक महान व्यक्ति के आमरण अनशन का उन पर असर होता था। आज गाँधी होते और इस परिस्थिति में आमरण अनशन के जरिये लोगों की आत्माओं को जगाने का प्रयास करते तो असफल रहते। कट्टर धार्मिक मसलों से उपजी हिंसा ने उनके संकल्पों को असफल कर दिया होता। पर यह सत्य है कि वह अहिंसा का अग्रदूत अपनी दुबली–पतली काया और सादे लिबास और जीवन शैली के साथ इस जलती दुनिया को देख चुप न बैठा होता और अपनी ज़िद में अंहिसा की राह पर वह बार बार शहीद हुआ होता।

गांधी जी बहुलवादी भारतीय समाज को एक करना चाहते थे और तब वे अपने इस प्रयास में एक हद तक सफल भी रहे। लेकिन आज…

कल ही की तो बात है जब कश्मीर विधानसभा पर आत्मघाती हमला हुआ और 30 निर्दोष लोग मर गये कई घायल हुए। हिंसा का यह दौर न जाने किस कगार पर जाकर खत्म होगा। आज हमें फिर एक गांधी की आवश्यकता है। कहाँ हैं उनके अनुयायी? क्या अहिंसा की वह अमर ज्योति बुझ गई? तो उसे फिर क्यों नहीं जलाते? लेकर निकल क्यों नहीं पड़ते फिर से गांधी के दिये उसी प्रण और व्रत के साथ? हमें गांधी को अपने दिलों में जीवित रखना है‚ उनके विचारों‚ मूल्यों‚ संकल्पों और प्रणों की समस्त संसार को आवश्यकता है।
विश्वभर में बहुत से आहत मन है जो हिंसा से त्रस्त हैं‚ सब एक हो अहिंसा की राह पर निकलें तो फिर एक कारवां बन जाएगा‚ उतना ही बड़ा‚ उतना ही सशक्त
!

– मनीषा कुलश्रेष्ठ

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"घृणा सदैव मारती है‚ परन्तु प्रेम कभी नहीं मरता‚ यही इन दोनों के बीच का अन्तर है। जो प्रेम से प्राप्त होता है वह हमेशा हमेशा के लिये रहता है और जो घृणा से प्राप्त होता है वह वास्तविकता में एक बोझ साबित होता है‚ क्योंकि वह घृणा को बढ़ाता है।"

 

 

 

"दृढ़ निश्चय आत्माओं का एक छोटा समूह ‚ जो कि अपने अभियान के प्रति कभी न बुझने वाले दृढ़ विश्वास से प्रेरित हो‚ इतिहास का रुख बदल सकता है।"

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