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स्त्री शक्ति

माँ भगवती के न जाने कितने रूपों को भारत में पूजा जाता है‚ हर रूप के पीछे एक कथा–किवदंती। देवी भगवती को स्वयं शक्ति स्वरूपा मां के रूप में पूजा जाता है। कुमारी बालाएं देवी का स्वरूप होती हैं। सुहागिन स्त्रियां पार्वती का। हम भारतीय शक्ति की प्रतीक माँ दुर्गा और दुष्टदमनी माँ काली को बहुत श्रद्धा से पूजते आए हैं।
किन्तु यह सोच कर अत्यन्त दु:ख होता है कि स्त्रीशक्ति के दैविक स्वरूप को तो हम सदियों से पूजते आए हैं‚ लेकिन हम अपने वास्तविक जीवन में उस शक्ति को पहचानने में कहीं चूक कर गये हैं जो हर स्त्री के भीतर छिपी है। किसी में पूर्ण जाग्रत तो किसी में अर्धसुप्त!
 
अगर हम इस शक्ति को ज़रा सा भी समझ पाते हैं और इसे अपनी जीवनदायिनी शक्ति के रूप में स्वीकार कर पाते हैं तो इसमें हमारे परिवार‚ समाज‚ देश और संसार का ही भला निहित है। अपने भीतर कहीं इस छिपी शक्ति को उजागर कर स्त्री समुदाय मिल–जुल कर युद्धों तथा घृणाओं को हटा सम्पूर्ण संसार के भविष्य को एक सुन्दर आकार दे पाने में अच्छी तरह सक्षम है।

स्त्री अपनी प्रकृति से स्वयं शांत व शांतिप्रिय होती है। अपने जीवन संसार को खुशहाल करना उसका एकमात्र ध्येय होता है‚ स्त्री हिंसा तथा रक्तपात के सदैव विरूद्ध ही रही है। स्त्री प्रधान होता अगर हमारा विश्व तो वह पुरूष को बता देती कि युद्धों से समस्याएं हल नहीं होती। वह युद्धों को रोकने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अवश्य निभा सकती है। संसार में शांति की स्थापना कर सकती है क्योंकि – युद्ध होते हैं तो वे सर्वप्रथम स्त्री के बनाए सुन्दर संसार पर आघात करते हैं। युद्धों में कोई भी हताहत हो‚ हृदय टूटता है मां का‚ पत्नी का‚ बहन या बेटी का!

पुरूष की वास्तविक शक्ति दरअसल स्त्री की आन्तरिक शक्ति में ही छिपी है। एक स्नेहिल स्त्री पुरुष की दिशाएं बदल सकती है। तभी तो कहा है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री होती है। पर यह जो पीछे होने की और छिपे होने की विडम्बना ही स्त्री शक्ति को विश्वस्तर पर एकत्रित होने से रोकती है। यह अर्धसुप्त शक्ति जो कि अपार है और मात्र जगाए और एकत्रित किये जाने की प्रतीक्षा में है। इस स्त्री शक्ति को एकत्र कर घृणा को हटा कर प्रेम और शांति में बदला जा सकता है। स्त्री पुरूष की वह शक्ति है जो पुरुष को सकारात्मक तथा पूर्ण बनाती है‚ और यह जो दो विपरीत शक्तियों का मिलन एक संतुलित शक्ति को जन्म देता है। पूजनीय‚ वंदनीय अर्धनारीश्वर के पीछे छिपे दर्शन को अगर हम आज न समझे तो कब समझेंगे जबकि संसार अनेकों समस्याओं से जूझ रहा है।

भारत में वर्तमान में लिंग भेद को समाप्त करने की मान्यता बढ़ी है जिसने हमारे देश की राजनैतिक ही नहीं वरन उत्पादक क्षमता को भी बढ़ाया आज हमारे देश में कितनी ही महिला मंत्री‚ सांसद‚ उच्च अधिकारी‚ उद्यमी हैं जो हमारे देश के विकास में पुरुष के कंधे से कंधा मिलाये भागीदार बनी है। स्त्री की एक प्रमुख विशेषता है जो पुरुष में कम मिलती है‚ वह एक ही समय पर कामकाजी महिला और घर का कमाऊ सदस्य होने के साथ साथ माँ‚ पत्नी‚ बहू होने की भूमिका नटिनी की तरह कसी रस्सी पर चल कर बखूबी निभा जाती है।

स्त्री शांति और शक्ति दोनों का प्रतीक है। हालांकि दोनों शब्द अलग अलग प्रतीत होते हैं पर व्याख्या की जाये तो यहाँ शक्ति का अर्थ बदला‚ विनाश या हिंसा नहीं यह शक्ति है सृजन की‚ प्रकृति स्वरूपा बन पोषण देने की‚ आश्रय देने की। स्त्री समाज की आत्मशक्ति है‚ कहीं देहरी के भीतर धधकती आग है‚ जिसमें तप कर समाज का भविष्य सुनहरा होता है।

यह हमें कभी नहीं भूलना चाहिये कि शक्ति ही है जो शिव को लास्य या ताण्डव के लिये उत्प्रेरित करती आई है। शक्ति के कारण ही शिव की हर गति है। भारत में वेदों में भी सदैव यह कहा गया है कि जहाँ नारी पूजनीय है वहीं देव बसते हैं‚ पर हम हर युग में यह बात भूलें हैं और उसके कारण हमें युद्धों की विभिषिकाएं झेलनी पड़ी हैं। जब सीता का अपमान हुआ तब भी‚ जब द्रोपदी का चीरहरण हुआ तब भी।

अत: यह सत्य है कि हम शक्तिस्वरूपा माँ भगवती की सही अर्थों में तभी पूजा कर सकेंगे जब हम स्त्री में सोयी शक्ति में प्राणप्रतिष्ठा कर उसकी पूजा करें। अब शक्ति को एकत्र कर उसे संसार की शांति तथा रचनात्मकता में प््रायोग करने का सही समय आ गया है।
 

– मनीषा कुलश्रेष्ठ

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