मुखपृष्ठ कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |   संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन डायरी | स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

 

विश्व में सबसे अधिक फिल्में बनाने वाले देश में
बाल फिल्मों की कमी

बाल फिल्में बच्चों को स्वस्थ मनोरंजन देने तथा ज्ञानवर्धन के लिये होती हैं। किन्तु जहाँ भारत साल में सबसे ज्यादा फिल्मों के निर्माण के लिये प्रसिद्ध है और हर साल अलग अलग भाषाओं में लगभग 1000 फिल्में यहाँ बनती हैं वहीं बच्चों के लिये आठ दस अच्छी बाल फिल्मों के लिये हमारे बच्चे तरस गये हैं।

मुख्यधारा के फिल्मकार तो आजकल बच्चों की फिल्में बनाने में ज़रा भी रुचि नहीं रखते। जबकि साठ और सत्तर के दशक में ऐसा नहीं था‚ तब मुख्यधारा के फिल्मकार बाल फिल्में बनाते थे‚ और वे हिट भी हुआ करती थीं‚ जैसे 'बूटपॉलिश'‚ 'नन्हा फरिश्ता'‚ 'रानी और लाल परी'‚ 'दो कलियाँ' आदि। 'अंजली' की सफलता को भी नकारा नहीं जा सकता। आजकल जो गिनी चुनी बाल फिल्में बनती भी हैं तो वितरक उनके प्रदर्शन का जोखिम उठाना नहीं चाहते। यही कारण है कि बनी बनाई भी कुछ अच्छी बाल फिल्में हमारे बच्चों तक पहुंच ही न सकीं। बाल फिल्म को बहुत अधिक उपदेशात्मक न होकर मनोरंजक और संगीतमय होना चाहिये तभी बच्चे फिल्म पसन्द करेंगे।

चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी भी बाल फिल्मों के विकास के आन्दोलन में अपना कुछ खास योगदान नहीं दे सकी। हालांकि भारत में हर दूसरे साल बाल फिल्मों का अंतर्राष्टीय समारोह भी आयोजित होता है किन्तु वह महज हैदराबाद के बच्चों तक ही सीमित होकर रह जाता है। भारत से बाहर जो रुचिकर बाल फिल्में बनती हैं उनसे हमारे देश के अधिकतर बच्चे वंचित रह जाते हैं। इस बार भी यह फिल्म समारोह 14 नवम्बर को हुआ। और देश के बाकि बच्चे बहुत सारी अच्छी बाल फिल्मों से वंचित रह गये।

बाल फिल्मों के अतीत पर नज़र डालें तो पहले बनीं कुछ बाल फिल्मों ने अपनी सफलता के झण्डे गाड़े हैं। 1956 में बनी चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी की पहली फिल्म 'जलदीप' को वेनिस के अंतराष्ट्रीय फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म का अवार्ड मिला था। 'गूपी गायन बाघा बायन' सत्यजीत रे की एक उम्दा बाल फिल्म थी। यह एक अच्छी हिट बांग्ला फिल्म साबित हुई। अनुकपूर द्वारा निर्मित 'अभय' को 1994 में सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी के सहयोग से निर्मित फिल्म 'आज का रॉबिनहुड' को भी बच्चों ने खूब पसन्द किया था।

बाल फिल्में ज्यादातर हिट होती हैं फिर भी मुख्यधारा के फिल्मकार और इन फिल्मों के निर्माण से क्यों दूर भागते हैं ? वे क्यों कतराते हैं कम बजट की साधारण सी फिल्मों से? व्यवसायिक फिल्मों में उलझे वितरक अच्छी खासी बनी बाल फिल्म के प्रदर्शन में ज़रा दिलचस्पी नहीं लेते यही वजह है कि हमारे देश के बच्चे ऐसी कई उम्दा फिल्मों को देखने से वंचित रह जाते हैं।
संतोष सिवान की 'हैल्लो' और 'मल्ली' तथा ए। के। बीर की 'नंदन' ने अच्छी लोकप्रियता तो हासिल कर ली पर इन फिल्मों का पूरे देश में प्रदर्शन एक समस्या बन गया। वीरेन्द्र सैनी की 'कभी पास कभी फेल' भी देश के कई शहरों में अब तक प्रदर्शित न हो सकी।'मुझसे दोस्ती करोगे' चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी द्वारा निर्मित एक अच्छी फिल्म साबित हुई। पर वितरकों की कम रुचि का यह भी शिकार हुई।

पता नहीं कमी कहाँ है? जब बच्चों में रुचि कायम है और अच्छे फिल्मकारों की कमी नहीं और अच्छी बाल फिल्में व्यवसाय भी कर ही लेती हैं तब भी…
दरअसल बाल फिल्म को बहुत अधिक उपदेशात्मक न होकर मनोरंजक और संगीतमय होना चाहिये तभी बच्चे फिल्म पसन्द करेंगे। और माता पिता भी चाहते हैं कि बाल फिल्म ऐसी हो कि जिसे बच्चे और बड़े दोनों देख सकें ताकि उन्हें सिनेमा हॉल में बच्चों के साथ बोर न होना पड़े। कुछ समय पहले प्रदर्शित सुभाष घई की फिल्म 'राहुल' को बच्चों और बड़ों दोनों ने पसन्द किया। वीरेन्द्र सैनी की बाल फिल्म 'कभी पास कभी फेल' भी बेहतर बाल फिल्म है। यह फिल्म भी ऐसी थी कि जिसे बच्चों बड़ों दोनों ने पसन्द किया। स्पिलबर्ग की 'जुरासिक पार्क' भी ऐसी ही एक विश्वस्तर पर अत्यधिक सफल फिल्म रही।

वे बाल फिल्में सशक्त और सफल साबित होती हैं जिनमें अच्छी प्रवाहमय कहानी हो पात्र दिलचस्प हों‚ संगीत अगर हो तो मोहक और सरल हो‚ धुनें बच्चे पकड़ सकें। सन्देश और उपदेश अपने आप ही कहानी के माध्यम से उभरे थोपा हुआ न लगे। सबसे ज़रूरी है कि इन फिल्मों को देश के लगभग सभी शहरों के दर्शकों तक पहुंचाने के सफल प्रयास हों। तभी अच्छी बाल फिल्में हमारे बालदर्शकों तक पहुंच सकेंगी और वे अच्छे स्वस्थ मनोरंजन और घटिया स्तरहीन मनोरंजन में फर्क जान सकेंगे।

– मनीषा कुलश्रेष्ठ


 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com