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भारत : प्लास्टिक - यह सचमुच विलक्षण हैनई दिल्ली, ;विमेन्स फीचर सर्विस - प्लास्टिक की थैलियों, जिनको राजधानी में कूडे के ढेर और कूडे के डिब्बों से बीनी गई हैं, को अब पेरिस, विश्व की फैशन राजधानी, भेजा जाएगा। अनिता व शलभ आहुजा, नई दिल्ली आधारित जैविक-वातावरण-मित्रवत एन जी ओ, कन्जर्व, के संस्थापक, जो इन थैलियों को फिर से परिष्कृत कर उन से प्रसाधनप्रिय बस्तुएं बनाकर सितम्बर माह के आरम्भ में फ्रांस की राजधानी में व्यापार मेले में प्रदर्शित किए गए। अपनी अनन्य रूप से विलक्षण थैलियों, बैल्टों, जूतों, अभ्यास-पुस्तिकाओं, जेवरात, फर्श-टाइल्स और अब आन्तरिक सजावट की सह-सामग्री जैसे लैम्प शेड, फ्लोर- कुशन्स, फूल सजावट पात्र के लिए विख्यात, ‘कन्जर्व’, एक एन जी ओ है जो चिथडे उठाने वालो को रोजगार पर रख कर दिल्ली में बेकार प्लास्टिक की थैलियों को एकत्रित करवाते हैं। इन एकत्रित प्लास्टिक थैलियों को फिर विभिन्न क्रमबध्द प्रक्रियाओं के माध्यम से दब्बाव देकर चादर में बदला जाता है और फिर उनसे बहु-रंगी वस्तुएं बनाई जाती हैं। कन्जर्व, जो अपनी निर्मित वस्तुओं को यूरोप व भारत के बाजारों में फुटकर में बेचता है, ने अपना हितकारी काम अति-दीन महिलाओं को लाभ पहुंचाने की आशा से और कूडा-कर्कट प्रबन्धन के शाखा-कार्यक्रम के रूप में, 1998 में आरम्भ किया, अनिता कहती हैं। घरेलू व रसोई के बेकार कचडे से कम्पोस्ट बनाने की योजना पर काम करते हुए, अनिता को आभास हुआ कि दिल्ली में प्रतिदिन बहुत मात्रा में प्लास्टिक की थैलियां घरों से शहर से बाहर फैंकी जाती हैं। प्लास्टिक की थैलियों के सतत बढते ढेर के भय ने उसको प्रयोग के लिए प्रेरित किया कि किस प्रकार बेकार प्लास्टिक की थैलियों को प्रयोग में लाया जा सकता है जिससे कि आसपास के वातावरण को प्रदूषण से बचाया जा सके। उसके दिमाग में बेकार प्लास्टिक की थैलियों को पूर्ण रूप से अनूठी बस्तुओं के रूप में परिवर्तित करने का विचार आया है। अनिता, कन्जर्व की सृजन प्रमुख सावधान करती है, ''हमारा देश यू एस ए व चीन के बाद तीसरा सबसे बडा प्लास्टिक का उपभोक्ता है। हमारे पास घरों से उत्पन्न इस कचडे को रखने के लिए प्रयाप्त भराव स्थल नहीं हैं। टॉक्सिक कचडा शहर में फैला है। एक बहुत विकट वातावरणीय अवरोध ठीक हमारी नाक के नीचे विकराल रूप ले रहा है और हमें इससे निपटने के उपाय ढूंढने की जरूरत है''। एक वर्ष व बहुत सारे विचारों के बाद, अनिता ने बेकार प्लास्टिक की थैलियों को पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में डालने का एक तरीका ढूंढ लिया। उसने इन थैलों को दब्बाव से चादर बनाने की सोची। उसके डिजाइनर मित्र के एकाएक आने से प्लास्टिक चादर से थैले बनाने के उसके विचार को उद्यम का रूप मिला। इन थैलों को व्यापार मेले में प्रदर्शित किया गया और कुछ ही मिनटों में यह सब बिक गए। कन्जर्व ने अपनी इकाई में फैशन सह-सामग्री बनाता है और प्लास्टिक के बने कपडों को दूसरे निर्माताओं को देता और वे इससे अपने उत्पाद बनाते हैं। यह संगठन उपभोक्ताओं तक व्यापार प्रदर्शनियों और दिल्ली में अपनी दुकानों के माध्यम से पहुंचती। कन्जर्व के उत्पाद की फुटकर बिक्री यूरोप के उच्च-फैशन बाजारों जैसे लंदन, पेरिस व मेड्रिड में होती है। कच्चे माल की उपलब्धि चिथडे उठाने वालों से होती है जो आजीविका के लिए कई मन कूडा एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजते हैं। एक बार उपलब्ध हो जाने पर, इन थैलियों को धोया, सुखाया जाता है और रंग, बुनावट व घनत्व के अनुसार कन्जर्व द्वारा प्रशिक्षित चिथडे उठाने वालों से विलगित किया जाता है। इसके बाद इन थैलियों को बांछित रंग नमूने के अनुसार सिला जाता है। अब सामान को गर्म-दबाव द्वारा चादर में बदला जाता है। इन चादरों को अब कुशल कारीगरों को सौंपा जाता है जो इससे अनन्य कन्जर्व उत्पाद तैयार करते हैं। प्लास्टिक की चादर और बहुत से नमूने बनाने के लिए प्रारम्भ में रंगों का प्रयोग नहीं किया जाता। घर से फैंके गए प्लास्टिक थैली के मूल रंग से रंग तैयार किए जाते हैं। ''यह एक विकास योजना है और यह वातावरण, सामाजिक व वित्तीय घटकों का ध्यान रखती है जो उद्यमियों, जो इस प्रकार के मान को बनाए रखते हैं, को प्रभावित करती है'', अनिता कहती है, वह आगे बताती है कि उनकी संस्था चिथडे उठाने वालो के कौशल बढाने को प्रोत्साहित करती है ताकि उनकी तरक्की एक शिल्पी के रूप में हो सके। ''इन काम करने वालों में अधिकांश ने वच्चों के रूप में कभी खिलोनो से भी नहीं खेले ; उनको प्रारम्भ से सिखाना पडेगा। हम उन्हें कैंची से काम करना, थैली काटना व उनकी तह लगाना सिखाते हैं, सब मिला कर उनको उत्पाद की गुणवत्ता बनाए रखने पर जोर दिया जाता है,'' शलभ आहुजा, जो व्यवसाय से इंजीनियर और कंजर्व के तकनीकी पहलुओं को देखते हैं, कहते हैं। युगल ने अपने 300 कर्मचारियों के वच्चों के लिए एक गैर-संस्थागत विद्यालय भी खोला है। यह विद्यालय मदनपुर खादर, नई दिल्ली में जहां कर्मचारी रहते हैं के बस्ती के नजदीक किराए के मकान से चलता है। अभी तक करीब 200 वच्चे 5 से 13 वर्ष के इस विद्यालय, जिसमें आठ अध्यापक हैं, में पढते हैं। युगल अपने कर्मचारियो के लिए दस बैंक अकाउंट प्रति माह खोलना चाहता है। यह कहना आसान है लेकिन करना कठिन क्यों कि ऐसे कर्मचारी समाज से बाहर रहते हैं, अनियमित गन्दी बस्तियो में, और उनके पास कोई पता का प्रमाण, जो बैंक को चाहिए, भी नहीं है। युगल अगले दो सालों में 7,000 कर्मचारियो की नियुक्ति सारे भारत में करना चाहता है। इस एन जी ओ की उपलब्धियों ने देश में इसी प्रकार की संस्थाओं का ध्यान अपनी ओर खींचा है। कंजर्व को पत्र व ई-मेल विदेषों, मुख्य रूप से, अफ्रिका व मध्य एशिया की संस्थाओं से गैर-जैविकस्वत:विनाषशील प्लास्टिक से निपटने के उनके द्वारा विकसित अनूठे तरीके के बारे में सूचना के आदान-प्रदान की प्रार्थना के साथ प्राप्त होते हैं। आहुजा दम्पति ने प्लास्टिक से फैलने वाले प्रदूशण से निपटने का हल निकाल लिया है इस प्रकार उन्होंने स्वच्छ वातावरण पर अपना सशक्त वक्तव्य दिया है।
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