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कथा कहन
: मूल्यांकन
कथा कहन कहानी प्रतियोगिता परिणाम
हमें आप सब से यह खबर साझा करते हुए
प्रसन्नता हो रही है कि 'हिंदी नेस्ट कथा-कहन' कार्यशाला के अंतर्गत आयोजित
कहानी प्रतियोगिता के बहुत सार्थक परिणाम मिले हैं। ‘कथा-कहन’ कार्यशाला से
कथा लेखन में नये लेखकों की आमद हुई है। जिनकी उम्दा कहानियां आपने
हिंदीनेस्ट में पढ़ी हैं। इन कहानियों के लिए हमने ‘कथा-कहन’ के दौरान अपने
प्रतिभागियों के लिए श्रेष्ठ-कहानी पर ‘दस हज़ार रुपए’ के पुरस्कार की घोषणा
की थी। परिणाम हमारे सामने हैं।
हमारे निर्णायक मण्डल ने हिन्दीनेस्ट कथा-कहन पुरस्कार के लिए 'गहना' कहानी
को चुना है, जिसे लिखा है सरिता निर्झरा ने। सरिता को हिंदीनेस्ट परिवार की
ओर से हार्दिक शुभकामनाएं।
-मनीषा कुलश्रॆष्ठ
संपादक
हिंदीनेस्ट.कॉम
हिंदीनेस्ट कथा-कहन के प्रतिभागियों की
कहानियाँ : एक मूल्यांकन
‘गहना’ कहानी बंगाल के किसी बदनाम मोहल्ले
में एक देहजीवा युवती के अकेलेपन की उकताहट और उसमें एक असम्भव सम्बन्ध की
तलाश का जीवंत दस्तावेज है। कहानी में तवायफों का जीवन, उसका परिवेश, उनकी
भाषा, उनकी विवशताओं और अंजान प्रेम की चाह में डूबी स्त्री का कलात्मक
चित्रण अनायास ही बांग्ला साहित्य के स्वर्ण काल के याद दिला देता जीवन के
अगणित रंगों, भावनाओं की अशेष छटाओं और विचारों की दमक से कौंधती इन
कहानियों में 'तुम्हारा रणवीर' है जो कैशोर्य की दबी स्मृतियों को अवचेतन
में जीते युवक की भावनात्मक उलझनों को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बाँचती है।
डॉ उषा दशोरा ने इस कहानी को जिस वैचारिक परिपक्वता से बुना है, कमाल है।
हिंदी की उभरती आलोचक डॉ सुनीता की कहानी मुस्लिम परिवेश की स्त्री और उसके
संघर्षों को रखती कहानी 'अतिए&आशी एन्ड संस', जिसमें एक स्त्री के प्रेम,
पारिवारिक दमन, उसके संघर्ष और विद्रोही कदम का मार्मिक चित्रण है। कहानी
में उर्दू भाषा प्रयोग के साथ मुस्लिम जीवन और परिवेश द्वारा कहानी को पाठक
को सीधे पात्रों के पास खड़ा कर देती है।
निरुपमा सिन्हा रचित 'नीली स्याही का सच' एक अकेले बुजुर्ग के एकांतिक
विचलन में दोहरे व्यक्तित्व को जीने की मनोवैज्ञानिक गुत्थी में लिपटी रोचक
कहानी है। निरूपमा जी ने जिस तरह पोस्टमैन का चरित्र गूँथा है, बहुत
महत्वपूर्ण है। कहानी का अंत पाठक को व्यथित मन से उन्हीं पंक्तियों के बीच
खड़ा कर देता है।
ममता सिंह की कहानी 'एक जमीन अपनी' एक टीनेजर बेटी के विपरीत लिंग के प्रति
आकर्षण, उम्र सुलभ विचलन और अकेली पालक मां के साथ संबंधों को बड़ी सहजता
से और प्रवाह से व्यक्त करती कहानी है। ममता सिंह की कहानी में कसावट और
सहजता उनके लेखन को विशेष बनाती है।
'ठप्पा' सोनू यशराज की जन्मजात कमजोरी के साथ ताकत से जीती उस स्त्री की
कहानी है जो अपनी बन्द दीवार में खिड़की खोलना जानती है। भाषा की रवानगी और
शब्दों का सही चयन और सही स्थान पर उपयोग कहानी को खूबसूरत बनाता है।
कालिंद नन्दिनी शर्मा की कहानी 'खिड़कियां' एक शिक्षिक आधुनिक युवक के
माध्यम से मुक्तिकामी मनुष्य की ईमानदार अभिव्यक्ति है जो जीवन में प्रेम
सहित किसी को वर्गबद्ध नहीं करना चाहता। प्रेम की पारम्परिक धारणा को
तोड़ता-अस्वीकार करता है।
मुक्त मानव की अभिव्यक्ति का बेबाक तेवर लिए यह कहानी एक अलग स्वाद रचती
है।
ग़ज़ाल ज़ैग़म की कहानी 'अल अतश-अल अतश' ग़मे आशिक़ी और ग़मे रोजगार के बीच पिसती
विवश ज़िन्दगियों और दूरियों के सूखे दरिया में प्यास से घुट कर मरते प्रेम
की दिलकश कहानी है जिसे लेखिका ने अपनी खूबसूरत बयानी से एक ग़ज़ल की तरह बना
दिया है।
डॉ वीणा चूण्डावत की 'खुद को तलाशती लड़की' पहले प्रेम को खो कर मनोविचलन की
गलियों में भटकती युवती के विभ्रमों और फेंटेंसियों में भटक कर टूट जाने की
मृत्युगन्धी मार्मिक कहानी है। अप्राप्य प्रेम की पीड़ा कहानी में मद्धम
कातर स्वर में गूंजती रहती है।
'ज़िंदगी: कभी धूप, कभी छाँव' संगीता सेठी ने भारतीय लड़की के जीवन को लेकर
रची है जो समाज की बंदिशें तोड़ कर एक हाई टेक वैश्विक दुनिया का सपना देखती
है, विदेश में रहते हुए कड़ी मेहनत से बहुत सम्मानित जगह भी बना लेती है।
महामारी के कारण अपने देश के प्रति अपने कर्तव्य का बोध उसे अपनी जड़ों में
लौटने की याद दिलाता है। सहज वर्णनात्मकता इस कथा की विशेषता है।
'पीड़ के चतुर पत्र' किरण राजपुरोहित निताला की मारवाड़ की मिट्टी की सोंधी
महक, मारवाड़ी बोली के देशज शब्दों और मीठे मुहावरे से गमकती अधूरे प्रेम की
एक उदास कहानी है, स्थानीय परिवेश के सुंदर अंकन कहानी को आंचलिक सौंदर्य
से भर देते हैं।
अनु शर्मा की कहानी 'रोशनी' वर्ग और अर्थ गत विषमता और उसके कुचक्रों में
घुट कर जीती युवती की दारुण संघर्ष कथा है। कहानी के अंत में नायक का पत्र
कहानी के उदास अंधेरे को दूर करके जीवन में प्रेम और अच्छी की किरण की तरह
आता है।
प्रज्ञा पांडेय की लंबी कहानी 'चाहतों के अंजाने द्वीप' छोटे शहर से आकर
बड़े शहर के होस्टल में रहती दो हमनाम युवतियों की कहानी है जो एक ही पुरूष
के पत्रों से प्रेम कर बैठती हैं। लेखिका ने तत्कालीन परिवेश, हॉस्टलर्स,
महाविद्यालय के छात्र जीवन, फैशन, युवाओं के सपनों और आत्मनिर्भरता का रोचक
वर्णन किया है।
कार्यशाला की युवतम प्रतिभागी
आस्था सेठी ने 'रूह रँगे केनवास में' चित्रकला की दुनिया के बीच संबंधों और
मानव स्वभाव के विभिन्न शेड्स और दो युवतियों के प्यारे से रिश्ते को
खूबसूरती से रचा है। अपनी पहली कहानी से ही वे लेखिका के तौर पर आश्वस्त
करती हैं।
'गई यशो' उर्वशी साबु की मार्मिक कहानी है। उर्वशी जी ने घर छोड़कर बाहर
पढ़ने जाती पुत्री और उसकी की मां की करुण मानसिक दशा, दुख और बेटी के जाने
की संतुष्टि एक साथ मार्मिक ढंग से चित्रित की है। मां किस तरह से अपने
बच्चे के साथ उसकी प्रिय छोटी से छोटी चीज बांध देना चाहती है, और अपने
कैरियर की खातिर बाहर जाती बेटी भी अपने संयुक्त परिवार से दूर जाते हुए
विचलित है।
विनीता बाड़मेरा की कहानी 'ऑल इज़ वेल' दो स्त्रियों के बीच के उस खूबसूरत
रिश्ते को बेहद प्यार से बयान करती हैं जो संबंधों से परे है। जिनमें
बुआ-भतीजी का रिश्ता होते हुए भी संबंधों के ऊपर दोस्ताना है। कहते हैं जब
दो स्त्रियां दोस्त हो तो वह एक मजबूत साझेदारी का पल बनाती हैं, और एक
दूसरे के साथ खड़ी रहती हैं। उसी साझेदारी को लेकर यह प्यारी कहानी रची गई
है।
'प्यार के फूल' शिल्पी माथुर की कहानी है जिसमें दो मज़बूत स्त्रियों
(मां-बेटी) की आपसी साझेदारी सम्बन्ध, समझ, स्नेह और सहारे को बहुत खूबसूरत
काव्यात्मक तरीके से अंकित किया है।
'रेत के धोरों सी वह' संतोष चौधरी की लिखी एक दमदार कहानी है जो चार अलग
वर्ग, समाज की चार स्त्रियों की गाथा कहती है । अंत में एक साथ बैठी चारों
एक दूसरे के दुखों संघर्षों की पूरक मुस्कान सी लगती हैं। मारवाड़ी शब्दों
की दक्ष कढ़ाई ने इस कहानी में जैसे बेल-बूटे उकेर दिए हैं।
कंचन अपराजिता की कहानी
'लांछन' भी बिछड़ी हुई सखियों के पुनर्मिलन के संवादों के बीच एक स्त्री के
पितृसत्तात्मक व्यवस्था में स्त्री जीवन की करूण दशा और अपना आजाद स्पेस
पाने के लिए उसके संघर्षों-प्रयासों का मार्मिक चित्रण है।
इस प्रतियोगिता के एकमात्र पुरूष प्रतियोगी अवशेष चौहान की कहानी 'यहाँ और
अब' एक कहानी हिंदी कहानी में अब तक प्रचलित विषय समलैंगिकता पर लिखी बेहद
संवेदनशील कहानी है। पुरुष होते हुए भी इस कहानी में लेखक ने स्त्री के
मर्म को पकड़ने का प्रयास किया है। समलैंगिक स्त्री की जैविक विभिन्नता और
उससे जुड़ी आवश्यकता को उन्होंने समझा और उस पर लिखा ये महत्वपूर्ण बात है।
और लेखक बधाई के पात्र हैं।
इन सारी कहानियों को पढ़कर एक बात तो स्पष्ट होती है कि समस्त प्रतियोगियों
ने जहां आम इंसान के समसामयिक जीवन के सरोकारों, कष्टों, संघर्षों और
विमर्श को पकड़ा और रोचक शैली तरह से व्यक्त किया वो मायने रखता है।
आयोजक समिति की ओर से सभी लेखकों को बधाई और शुभकामनाएं। खूब रचिए आप के
साथ हमें भी गौरवान्वित कीजिए।
-लक्ष्मी
शर्मा
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