मुखपृष्ठ |
कहानी |
कविता |
कार्टून
|
कार्यशाला |
कैशोर्य |
चित्र-लेख | दृष्टिकोण
|
नृत्य |
निबन्ध |
देस-परदेस |
परिवार
|
फीचर |
बच्चों की
दुनिया |
भक्ति-काल धर्म |
रसोई |
लेखक |
व्यक्तित्व |
व्यंग्य |
विविधा |
संस्मरण |
साक्षात्कार
|
सृजन |
स्वास्थ्य
|
|
Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | Feedback | Contact | Share this Page! |
|
प्रेरक
प्रसंग 1 महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के काटलुक गांव में एक प्राईमरी स्कूल था. कक्षा चल रही थी.
अध्यापक ने बच्चों से एक प्रश्न किया यदि तुम्हें रास्ते में एक हीरा
मिल जाए तो तुम उसका क्या करोगे?
शिक्षक
का कहा सत्य हुआ और वह बालक बडा होकर सचमुच देशभक्त बना,
2 नेहरू जी यह बात सुन कर बोले, वाह, यह कैसे हो सकता है. यह तो मेरे लिये गौरव की बात है. मैं तो इसी अचकन को पहन कर संसद में जाउंगा और वहा/ सभी को दिखाउंगा कि ये धब्बे अपने देश में निकाले गए तेल के हैं.
-
अंतरा
जोशी
3 ज्योतिषी सुकरात का चेहरा देखकर कहने लगा, इसके नथुनों की बनावट बता रही है कि इस व्यक्ति में क्रोध की भावना प्रबल है. यह सुन कर सुकरात के शिष्य नाराज होने लगे परन्तु सुकरात ने उन्हें रोक कर ज्योतिष को अपनी बात कहने का पूरा मौका दिया. ''इसके माथे और सिर की आकृति के कारण यह निश्चित रूप से लालची होगा. इसकी ठोडी क़ी रचना कहती है कि यह बिलकुल सनकी है, इसके होंठों और दांतों की बनावट के अनुसार यह व्यक्ति सदैव देशद्रोह करने के लिये प्रेरित रहता है.
यह सब
सुन कर सुकरात ने ज्योतिषी को इनाम देकर भेज दिया,
इस पर सुकरात के शिष्य भौंचक्के रह गये.सुकरात ने उनकी
जिज्ञासा शांत करने के लिये कहा कि, सत्य
को दबाना ठीक नहीं. ज्योतिषी ने जो कुछ बताया वे सब दुर्गुण मुझमें हैं,
मैं उन्हें स्वीकारता हू/. पर उस ज्योतिषी से एक भूल
अवश्य हुई है, वह यह कि उसने मेरे विवेक
की शक्ति पर जरा भी गौर नहीं किया. मैं अपने विवेक से इन सब
दुर्गुणों पर अंकुश लगाये रखता हू/. यह बात ज्योतिषी बताना भूल गया.
4 अरस्तू और सिकन्दर इस बात पर एकमत न हो सके कि पहले कौन नाला पार करे. उस पर वह रास्ता अनजान था, नाले की गहराई से दोनों नावाकिफ थे. कुछ देर विचार करने के बाद सिकन्दर इस बात पर ठान बैठे कि नाला तो पहले वह स्वयं ही पार करेंगे. कुछ देर के वाद विवाद के बाद अरस्तू ने सिकन्दर की बात मान ली. पर बाद में वे इस बात पर नाराज हो गये कि तुमने मेरी अवज्ञा की तो क्यों की. इस पर सिकन्दर ने एक ही बात कही, मेरे मान्यवर गुरु जी, मेरे कर्तव्य ने ही मुझे ऐसा करने को प्रेरित किया. क्योंकि अरस्तू रहेगा तो हजारों सिकन्दर तैयार कर लेगा. पर सिकन्दर तो एक भी अरस्तू नहीं बना सकता. गुरु शिष्य के इस उत्तर पर मुस्कुरा कर निरुत्तर हो गये. -
सुधा रानी |
|
(c) HindiNest.com
1999-2021 All Rights Reserved. |