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नृत्य
भी मानवीय अभिव्यक्तियों का एक रसमय साधन है।
भारतीय
नृत्य उतने ही विविध हैं जितनी हमारी संस्कृति।
शास्त्रीय नृत्य तो हैं ही लोक नृत्यों की तो कोई गणना ही नहीं।
जिस
तरह भारत में कोस-कोस पर पानी और वाणी बदलती है वैसे ही नृत्य शैलियाँ
भी
विविध हैं।
कथक के विकास मे...
डॉ भगवान दास माणिक
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