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राजा भरत अतिप्राचीन काल में महान ॠषि विश्वामित्र एक बीहड ज़ंगल में तपस्या कर रहे थे। कठोर साधना करना और योगाभ्यास के द्वारा आत्मज्ञान या ईश्वर प्राप्ति करना यह उन दिनों एक उच्च लक्ष्य माना जाता था। तप साधन और योगाभ्यास के द्वारा अनेक सिध्दियां भी प्राप्त होती थी । इस के लिये आश्रम निर्माण होते थे और ॠषि-मुनी इन स्थानों के गुरू रूप अधिपति रहते। ऐसे ही एक महान ॠषि थे विश्वामित्र। इन ॠषि मुनियों का पृथ्वी पर बहुत मान सम्मान होता वे पूजे भी जाते लेकिन स्वर्ग के राजा इन्द्र इन तपस्वी ॠषियों से बहुत घबराता था।उसे हमेशा डर लगा रहता कहीं सर्व सिध्द शक्तिमान ॠषि उनका स्वर्गासन न छीन ले। इस वक्त भी विश्वामित्र के कठोर तप से इन्द्रराज परेशान हो उठे। किस तरह विश्वामित्र का तपोभंग किया जाय इस सोच में उसने अनेक देवमित्रों की सलाह ली। धन या मान जैसे साधारण प्रलोभन से बात बनना संभव नहीं था। अंत में यह तय हुआ कि काम के प्रभाव से शायद ॠषि के तप में बाधा आये। इस कार्य के लिये स्वर्ग की अप्सरा से अधिक उपयुक्त और कौन रहता? सो विश्वामित्र की तपसाधना में खलल डालने के लिये अति रूपवान और सर्वगुण संपन्न अप्सरा मेनका का चयन हुआ। मेनका स्वर्ग से धरती पर उतर आयी और सुन्दर हावभाव, गीत और नृत्य से उसने तपस्वी को रिझा ही लिया। उनकी समाधि भंग हुई और वे रूपसुंदरी की ओर आकृष्ट हो गये। मेनका ने उचित समय पर एक सुन्दर कन्या को जन्म दिया। अब मेनका का धरती पर रहने का कोई प्रयोजन नहीं बचा था। दोनो में सुलह हुई और मेनका स्वर्ग वापस लौट गई जब कि ॠषि दूसरे जंगल में जप-साधन करने चल पडे। नवजात बालिका को, जो भविष्य में शकुंतला कहलाई माता-पिता ने कण्व ॠषि के आश्रम में रात के अंधेरे में छोड दिया। कण्व ॠषि का पिता समान प्यार पाकर शकुंतला ने यौवनावस्था में प्रवेश किया। सुशील, अल्हड और सुन्दर शकुंतला अब शादी के लायक हो गयी थी। एक दिन उस प्रदेश का राजा दुष्यंत शिकार के लिये शकुंतला के वन में आया। दोनो की ऑंखें चार हुई और उनमें प्रेम हो गया। कण्व ॠषि से छिपा कर राजा और शकुंतला ने गंधर्व विवाह कर लिया। एक रात रूक कर दुष्यंत राजा अपनी राजधानी को लौट गया। उसने जाते वक्त शकुंतला से वादा किया कि बहुत जल्द वह उसे ब्याह कर ले जायेगा और अपनी पटरानी बनायेगा। जाते समय राजा ने शकुंतला को अपनी मुद्रिका अंगूठी दे कर कहा कि इसे संभाल कर रखना इसे देखते ही मैं तुम्हे पहचान लूंगा। बस कुछ ही दिन हुए कि राजकाज की उलझन में राजा शकुंतला के बारे में सब कुछ भूल गया। महीने बीत गये लेकिन शकुंतला को लेने न राजा आया न ही कोई समाचार। ॠषि कण्व और शकुंतला परेशान हो गये। शकुंतला के गर्भ में दुष्यंत का बीज पल रहा था। समस्या गंभीर हो चली थी। अब क्या करना यह प्रश्नचिन्ह सबके मन को सता रहा था। एक सुझाव आया कि शकुंतला को राजा के पास भेज देना चाहिये क्योंकि राजा दुष्यंत ने शकुंतला से विवाह किया है और राजा ने दी हुई मुद्रिका अंगुठी उसका प्रमाण है। इस सुझाव को उचित मानते हुए कण्व ॠषि ने शकुंतला को एक नाव में बैठाकर राजा के पास भेज दिया। कर्म की गति कुछ अजीब होती है। नदिया पार करते समय अनायास ही शकुंतला के हाथ से अंगूठी पानी में गिर गई और एक मछली ने उसे निगल लिया। शकुंतला इस स्थिति से अनजान थी। जब वह राजदरबार पहुंची तो राजा दुष्यंत को उसके बारे में कुछ याद भी न था। शकुंतला ने अनेक प्रसंग याद दिलाये लेकिन कोई लाभ न हुआ। तब शकुंतला ने राजा को उसने दी हुई अंगूठी की याद दिलायी और अपने उंगली से उसे निकालना चाहा। उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उस ने देखा कि अंगूठी तो खो गई है। बेचारी शकुंतला। अपने ही पति के घर से निकाल दी गई। उसके गर्भ में राजा दुष्यंत का बेटा पल रहा था। शकुंतला ने उस बालक को जन्म देने की ठान ली और वह घने जंगल में चल दी। समयानुसार उसने एक अतिसुंदर और स्वस्थ बालक को जन्म दिया। शकुंतला ने उसका नाम रखा भारत। जंगल में उन दोनो के अलावा कोई और इन्सान नहीं थे। फल दूध और कंदमूल से पेट भरता था। गाय हिरन शेर उनके दोस्तमित्र थे। भारत तो शेर की सवारी भी करता। डर का उसे नाम तक मालूम न था। धीरे धीरे वह बालक निरोगी ताकतवर बनता गया। उधर राजा दुष्यंत के दरबार में एक दिन एक अजीब घटना घटी। एक मछुए के जाल में एक बडी सी मछली फॅसी। उसने उस मछली को जब काटा तो मछली के पेट में से राजा की अंगूठी मिली जो शकुंतला के हाथ से गिर गई थी। मछुआ बिना विलंब के राजदरबार पहुॅचा और उसने राजा को राजमुद्रिका दी। अपनी अंगूठी देखते ही राजा दुष्यंत को शकुंतला का स्मरण हुआ। उसे सब कुछ याद आने लगा। दरबारियों से उसे मालूम हुआ कि बेचारी शकुंतला उसकी पत्नी गर्भवती थी और उस अवस्था में वह जंगल की ओर चल पडी थी। राजा ने शकुंतला की तलाश का आदेश दिया और सारा शासन शकुंतला की खोज में व्यस्त हो गया। अन्त में खबर आई कि एक सन्नारी अपने शिशु के साथ दूर के जंगल में रहती है। बस राजा तो खुशी से न समाया और बिना विलम्ब उसने अपनी भार्या को स्वयं लाने का निर्णय लिया। जब राजा दुष्यंत शकुंतला की झोपडी क़े पास पहुंचे तो उन्होने एक नन्हे बालक को शेर के पीठ पर सवार पाया। इस अनोखे दृष्य को देखकर राज तो स्तंभित हो गया। बहुत देर तक पिता अपने लाडले की करतूत देखता रहा। उसका दिल प्रेम से भर आया और उसने बालक भारत को गोद में उठा लिया। इस अचानक घटना से बालक कुछ चौक सा गया और वह ''मॉ मॉ'' चिल्ला उठा। ''मॉ'' की पुकार सुनकर शकुंतला घर के बाहर आई तो वह भारत को उसके पिता राजा दुष्यंत की गोद में देखकर आनंद से स्तंभित हो गयी। यह एक भावपूर्ण मिलन था। गलतफहमियॉ दूर हुई और राजा दुष्यंत अपनी पत्नी शकुंतला और पुत्र भारत के साथ राजधानी लौट आये। राजा दुष्यंत ने अपने बेटे को विविध क्षेत्रो में अप्रतिम शिक्षा दी। शकुंतला महारानी ने उसे प्यार के साथ अच्छे संस्कार दिये। राजा दुष्यंत के पश्चात भारत ने राज्य की बागडोर संभाली और राज को एक देश में परिवर्तित कर दिया। अब राजा भारत चक्रवर्ती सम्राट बन गया। दया करूणा शूरवीरता तथा बंधुभाव का अनोखा संगम उसकी राजसत्ता की प्रमुख विशेषता थी। उस असाधारण सम्राट के नाम से यह देश भारतवर्ष के नाम से जाना जाने लगा। _
डॉ सी एस शाह |
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