मुखपृष्ठ
|
कहानी |
कविता |
कार्टून
|
कार्यशाला |
कैशोर्य |
चित्र-लेख | दृष्टिकोण
|
नृत्य |
निबन्ध |
देस-परदेस |
परिवार
|
फीचर |
बच्चों की
दुनिया |
भक्ति-काल धर्म |
रसोई |
लेखक |
व्यक्तित्व |
व्यंग्य |
विविधा |
संस्मरण |
डायरी
|
साक्षात्कार |
सृजन |
स्वास्थ्य
|
|
Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | Feedback | Contact | Share this Page! |
|
|
बेघर आंखें-2
दरवाजा एक युवती ने खोला था।
भरे शरीर वाली केरल
की सुन्दरता।
बडी बडी
आंखें,
खिला रंग।
अवश्य ही नायर की
बेटी होगी।
'' हैलो अंकल,
आइए, आइए अंकलअन्दर आ जाइए।''
घर के अन्दर घुसते ही एक अजीब सी गंध नथुनों में घुस गई।
अंकल शब्द सुन कर
थोडा सा झटका लगा।
मैं अपने
व्यक्तित्व को संभाल कर रखता
हूँ।
किन्तु अंकल! नायर
भी घर में ही था।
यह लडक़ी पहले तो नायर के
साथ कभी दिखाई नहीं दी।
शायद उसकी बेटी होगी।
'' जानकी।
हमारा भाई का छोकरी।''
नायर ने शायद मेरी नजरों की भाषा पढ ली थी।
'' अबी
छुट्टी मनाने को ईदर आई है। फ्लैट भाडे पर देते समय
चन्द्रकान्त से मैं ने शर्त रखी थी कि एक बेडरूम में हमारा सामान रहेगा,
और उसमें ताला लगा रहेगा।
एक बेडरूम और एक
लिविंगरूम ही भाडे पर देंगे।
हुआ भी यही।अपने
कमरे तक जाते जाते मैं पैसेज में रुक कर बाथरूम का मुआयना करने लगा सीलन और
पीलेपन की ऊबकाई वाली महक आ रही थी टॉयलेट फ्लश जैसे सदियों से साफ नहीं की
गई थी।
वाशबेसिन भी गंदा।
बाथरूम की टाईलों पर भी गंद जमा थी।
जानकी मेरे पीछे
चली आई थी।
पीछे से छू कर बोली, ''
अंकल, कबी बी आने का होये,
तो आ जाया करो।
उदर लन्दन में बहुत
ठण्डी होती क्या?'' अपना बेडरूम खोला तो सात
महीने की सीलन और घुटन ने मेरा स्वागत किया।
मैं ने तुरन्त ही
सभी खिडक़ियां खोल दीं,
परदे हटा दिये।
सूरज की रोशनी ने
कमरे में प्रवेश किया तो जैसे कमरे में रखी वस्तुओं को नये जीवन का आभास
हुआ।
मुड क़र देखा तो जानकी अब भी शरारती आंखों से देख कर मुस्कुरा रही थी।
आगे बढ क़र,
मुझसे लगभग सट कर खडी हो गई।,
'' अंकल, अंदर सबी ठीक है न?
'' यह कैसी परीक्षा ले रही है जानकी और क्यों?
कहीं यह नायर की चाल तो नहीं? ''
यार शुक्ला जी,
आप भी कमाल के आदमी
हैं। कैसे लोगों को फ्लैट भाडे पर दे दिया। सोसायटी तो आपके खिलाफ
रिजोल्यूशन पास करने वाली थी वो मैं ने किसी तरह रोक लिया आपके साथ पुरानी
दोस्ती है।'' सूरी साहब की स्पष्टवादिता
बहुत पसन्द आई।
उनसे हाथ मिलाया और वापिस
लन्दन चला आया।
अबकी बार न तो चन्द्रकान्त
की पत्नी ने मेरे नाम कोइ सन्देश भेजा और न ही चन्द्रकान्त रात को अपनी
मारुति वैन में मुझे एयरपोर्ट तक विदा करने आया।
आलोक आज भी आशा
लगाये बैठा था कि मैं घर का उत्तरदायित्व उस पर छोड क़र जाऊंगा।
किन्तु वह इस काम
का जिम्मा स्वयं आगे बढ कर नहीं उठाना चाहता था।
मैं तो भाडे क़ा
जिम्मा सूरी साहब के सिर लगा कर लन्दन वापस चला गया।
किन्तु अब परेशानी
शुरु हुई पुरुषोत्तम नायर के लिये।
सूरी साहब बिना
झिझक हर पहली किराया वसूलने पहुंच जाते नायर के पास।
वह उनसे बचता फिरता,
बहाने खोजता, किन्तु सूरी
साहब ने जिस बात की ठान ली सो ठान ली।
पहले दो तीन महीने
तो एकाध सप्ताह के विलम्ब से पैसे आते भी रहे।
उसके बाद तो सूरी
साहब जैसा दबंग व्यक्ति भी परेशानी महसूस करने लगा।
उनका माथ ठनका जब
वे किराये के सिलसिले में घर पहुंचे और वहां उन्होंने लिविंग रूम में छ:
बाई छ: फुट का एक नया ढांचा खडा देखा।
सूरी साहब हक्के
बक्के रह गये सोच रहे थे कि क्या जवाब देंगे शुक्ला को।
भला एक विवादित
ढांचा घर के अन्दर कैसे? वह मुझे अपने घर ले गया।
उसके घर रहने का एक
निजी लाभ यह भी था कि सुबह छ: बजे उठ कर भी नायर के घर पर धावा बोला जा
सकता था।
हनी ने सुबह सुबह उठ कर
चाय बना दी थी।
प्रकाश तो रात वाले कुर्ते
पजामे में ही साथ हो लिया।
पहले हम सूरी साहब
के घर पहुंचे।
कोई औपचारिकता नहीं बस साथ
हो लिये।
मैं अपने धडक़ते दिल को
नियंत्रण में रखने का प्रयास कर रहा था।
चौथे माले के अपने
आठवें फ्लैट में दस्तक दी।
दरवाजा जानकी ने ही
खोला।
आज वह मुझे देख कर अदा से
मुस्कुराई नहीं।
फिर भी चेहरे पर
असफल हंसी लाते हुए बोली, ''
अंकल, नायर तो इद्दर नहीं है।
शादी बनाने को
केरला में गया है।दो
दिन के बाद आने वाला है।'' ''शुक्ला
जी,
नाल जनानी होणी जरूरी होन्दी
है। ओथे जे असी सारे जेन्ट्स ही होवांगे,
ते किसे वी तरह दा
ब्लेम लग सकदा है।''
वहीं से हनी को भी फोन कर
दिया था। वह भी साथ हो ली थी। कारपेन्टर आया। पन्द्रह बीस मिनट में मंदिर
का अस्तित्व समाप्त हो चुका था। मन में कहीं अपराधबोध भी था कि मंदिर टूट
गया। कैसे कभी मस्जिद टूटती है तो कभी मंदिर। होते दोनों ही विवादित हैं।
किन्तु सचमुच आश्चर्यचकित करने वाली यह बात थी कि जानकी या फिर नायर के
ड्रायवर ने इस मुहिम में कोई भी समस्या नहीं खडी क़ी। '' अपुन तो आपकी रेसपेक्ट करता है, नहीं तो स्साले को टपका डालेगा एक दिन। बोल देना उसको।'' यह सुन कर मन में एक नीच विचार कुलबुलाया। अगर इमरान नायर को टपका दे तो अपना काम बन जायेगा फिर इमरान के तो अण्डरवर्ल्ड के साथ सम्बन्ध भी हैं। क्या इमरान सचमुच ऐसा कर सकता है? यह मध्यवर्गीय विचार जितनी तेजी से दिमाग में आया उससे भी अधिक द्रुतगति से बाहर भी हो गया। चौथे माले से उतरा तो धोबी, एसटीडी वाला, केबल वाला, दूध वाला सभी को मुझसे एक ही शिकायत थी कि कैसे आदमी को फ्लैट किराये पर दे गया। सभी के पैसे नायर पर बकाया थे। '' ऐ सेठ, उसको निकालने से पहले हमारे पैसे डिपाजिट में से जरूर काट लेना।'' डिपॉजिट माय फुट! – आगे पढें |
|
(c) HindiNest.com
1999-2021 All Rights Reserved. |