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कभी संबंधो की लंबाई चौडाई नापने की कोशिश मत करना लेकिन उसकी गहराई समझने का प्रयत्न करना। अपने आप को पहचानो अपने अंदर बैठी हुई शक्ति की ज्योत को प्रकाशित करो। खुद पहले अपनी इज्ज़त करो अपने आप से प्यार करो और खुद की नज़रों में काबिल बनो। सैकडों क़रोडों जीव इस धरती पर आये ख़ाया-पीया और चले गये। क्या तुमने भी इस धरती पर खाने पीने और सोने के लिये ही जन्म लिया है? संबंध गाडी से उतर कर वसुधा ने इधर-उधर देखा। खुशी से उसका चेहरा खिल उठा था। शादी के सात साल बाद आज वह पहली बार अपने गाँव अपने मायके आयी थी। माँ और बाबूजी उससे मिलकर बेहद खुश हुए दिन भर वह उनसे बातें करती रही। शाम को वसुधा टहलने निकली। घर के पास ही एक झील थी। शादी से पहले वो घंटों इस झील के किनारे बैठी रहती थी। पश्चिम दिशा में सूरज अपनी लालिमा समेटे डूबने की तैयारी में था। हल्का सा अन्धेरा था। घने वृक्षों की ओट में ये झील बहुत सुंदर लग रही थी। लोग यहाँ बोटिंग करने आते थे। वसुधा वहीं किनारे के पास एक पेड क़े नीचे बैठ गयी और एकटक उस झील को देखती रही। इस झील पर गुजरें हुए वह भूले हुए लम्हें उसे फिर याद आने लगे। इस झील से उसका संबंध था। एक अटूट संबंध क्यों कि ये झील गवाह थी उसकी जिन्दगी के बदलते हुये मौसमों की ईस झील से उसके अस्तित्व का संबंध था। अनायास उसने पर्स खोला उसमें से एक खत निकाला उस खत की हालत अब बिलकुल फटने को थी। उस खत को उसने ध्यान से खोला और पढने लगी। तन्हाई में न जाने कितनी बार वह ये खत पढ चुकी थी। उस खत का एक-एक लफ्ज उसे ज़बानी तौर पर याद था लेकिन आज उसने फिर वह खत पढा और उसकी आँखे भर आयी। वसुधा अतीत की अंधेरी गुफा में उतरती चली गई। यह बात उसकी शादी के तीन माह पहले की थी। रात के करीब दस बजे वह इस झील के किनारे ईसी वृक्ष के नीचे बैठी थी। दिल उदास था और मन घबरा रहा था। झील पर सन्नाटा छाया हुआ था एक-दोे जोडे नज़र आ रहे थे और एक नौजवान बैठा कुछ लिख रहा था। झील पर पंख सी तैरती एक-दो कश्तियाँ नजर आ रही थी। उस रात वसुधा बहुत परेशान थी। वह अकेली रहना चाहती थी। उसे इन्तजार था झील से सब लोगों के चले जाने का। उसके दिल में तूफान उठा था। आसपास क्या हो रहा है उससे वह बेखबर थी। खयालों की भीड में वह उलझ कर रह गयी थी, '' बस आज की रात फ़िर मैं सब मुसीबतों से मुक्त हो जाऊंगी हमेशा-हमेशा का छुटकारा बस आज की रात मेरे सब दुखों का अन्त हो जायेगा। '' ''क्या आप मेरे साथ कश्ती की सैर कर सकती हैं? '' वसुधा चौंक गयी। उसकी विचार-धारा भंग हो गयी। एक अजनबी उसके सामने खडा था वही नौजवान जो पेड क़े नीचे बैठे कुछ लिख रहा था। हाँ ये वही नौजवान था। वसुधा हैरतजदा और प्रश्नसूचक नजरों से उसे ताकने लगी। ''जी?'' न जाने क्या कशिश थी उसकी आवाज़ में उसके अंदाज़ में कि वसुधा चाहकर भी इनकार न कर सकी। यंत्रवत चुपचाप वह कश्ती में एक तरफ बैठ गयी सामने वो अजनबी नौजवान बैठ गया। नाविक कश्ती खेने लगा। उस नौजवान ने अपने कुर्ते की जेब से बांसुरी निकाली और होठों से लगा ली। एक मधुर धुन बजाने लगा लेकिन उस धुन में एक मीठा सा दर्द था बांसुरी के साथ उसने एक लोक गीत छेड दिया। सारी दुनिया की रूसवाई उसकी आवाज में समा गयी। पूनम की चाँदनी रात में झील दर्पण हो गई। वसुधा पानी में अपना उदास अक्स देखती रही। आसपास के नजारों की तस्वीरें झील में प्रतिबिम्बित हो रही थीं। चाँद की रोशनी से पूरी झील झिलमिल कर रही थी। बांसुरी की धुन सुनकर वसुधा के मन में चल रहा तूफान थम गया। दिल में उठनेवाले सैकडों हताश सवाल शांत होने लगे। वसुधा आँखे मूंद कर बांसुरी सुनती रही। ''सुनिये क़िनारा आ गया'' कश्ती ठहर गयी। वसुधा को लगा जैसे एक सुंदर सपना टूट गया। उसका दिल चाहता था कि बस समय वहीं ठहर जाये क़श्ती चलती रहे और वह यूं ही बांसुरी बजाता रहे और वो सुनती रहे। उसने धीरे से आँखें खोलीं और नौजवान की तरफ देखा और वीनीत स्वरों में कहा ''यदि आप को एतराज़ न हो तो क्या हम फिर से एक बार सैर कर सकते है?'' जवाब के तौर पर उसने एक हलकी सी मुस्कुराहट दी उसने नाविक को इशारा किया क़श्ती फिर चल पडी। ज्यों-ज्यों रात बढती चली जा रही थी चाँद की रोशनी प्रखर होती जा रही थी। ''क्या आप फिर से बांसुरी बजा सकते है?'' वसुधा ने बडी सहमी हुई आवाज में प्रश्न किया। बिना कोई जवाब दिये उसने बांसुरी को फिर से होठों से लगा लिया। इस बार उसने जो धुन बजाई उसमें दर्द नहीं था ख़ुशी का संदेश था। वसुधा के अंग अंग में खुशी की लहर दौड ग़ई। कितनी अजीब बात थी पल दो पल पहले वह दर्द की अथाह गहराईयों में थी और इस धुन ने उसे उठा कर उत्साह केआसमान पर बिठा दिया था। बांसुरी की धुन ने उसके रूह को झिंझोड कर रख दिया। ''लो तुम्हारी कश्ती फिर से किनारे लग गई। '' एक खत वसुधा के हाथों में थमा कर वह अनजान व्यक्ति रात के अंधेरे में खो गया। वसुधा विस्मय और आशंका से कुछ देर उस दिशा में देखती रही जहाँ वह गायब हो गया था। फिर काँपते हुए हाथों से उसने वह खत खोला और पढते-पढते रो पडी। उस खत में लिखा हुआ एक-एक शब्द हकीकत बयान कर रहा था। वह अनजान व्यक्ति उसके दिलो-दिमाग में चल रही सारी बातों को जानता था ज़ैसे किसी के मन को पढ सकता हो। एक-एक शब्द में सच्चाई की प्रतिध्वनी सुनाई पड रही थी। खत पढते-पढते वह फूट फूट कर रोने लगी। वह जिस दुख से बेहाल थी वह आँखों की राह बह चला। उस खत में लिखा था- ''वसुधा'' ''तुमने अपने आप को इतना कमज़ोर और लाचार क्यों समझा? और आत्महत्या भी सिर्फ इसलिये करना चाहती हो क़ि एक लडक़ा तुम्हें देखने आया और उसने तुमसे शादी करने से इन्कार कर दिया? क्यों कि वह समझता है कि तुम सुंदर नही हो? बस ईसलिये तुम दुखी हो गई और आत्महत्या करने की बात ठान ली है? '' ''सुंदरता की परिभाषा
क्या है? मनुष्य देह से नहीं अपने व्यक्तित्व से सुंदर
होता है। उसका
इन्कार तुम्हारी हार कैसे हो सकती है?
'' कभी संबंधो की लंबाई
चौडाई नापने की कोशिश मत करना लेकिन उसकी गहराई समझने का प्रयत्न करना।
अपने आप को पहचानो अपने
अंदर बैठी हुई शक्ति की ज्योत को प्रकाशित करो।
खुद पहले अपनी इज्ज़त करो
अपने आप से प्यार करो और
खुद की नज़रों में काबिल
बनो। सैकडो
क़रोडों
जीव इस धरती पर आये
ख़ाया-पीया और चले गये। क्या
तुमने भी इस धरती पर खाने पीने और सोने के लिये ही जन्म लिया है? वसुधा अतीत से लौट आयी। यदि उस दिन वह नौजवान वह अजनबी न मिलता तो? एक ऐसा व्यक्ति जिससे उसका कोई संबंध नहीं था और पल दो पल में उसने जिन्दगी के मायने बदल दिये। आज उसकी जिन्दगी सफल है आज उसके दामन में खुशियाँ ही खुशियाँ हैं। वसुधा देर तक झील के किनारे बैठी रही और संबंधों के विषय में सेचती रही। संबंध याने क्या? |
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