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जागो फिर एक
बार विचारों का विप्लव आया एक बार‚ मस्तिष्क पर किया प्रहार‚ ज्ञानेन्द्रिया वश से जाती रही‚ और आत्मा को आत्मसात न कर सका मेरा मूढ मन‚ इसलिए बुरा न देखो न सुनो न कहो का हो रहा विपरीत। जीवन आज देने लगा है विरोधाभास‚ मेरे जीवन से सच्चाई की अन्तिम सांस‚ जाती हुई कह रही जागो फिर एक बार।
-गौतम साहा |
काव्य हंता -गौतम
साहा |
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