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पतझड़
मैंने नहीं देखा था पतझड़ नहीं बचा था एक भी पेड़ मेरे शहर में लग गई थी नज़र मेरे शहर के वृक्षों को मेरे ही शहर के बिल्डरों की । धराशाई वृक्षों के स्थान पर उग आए थे कॉम्पलेक्स गगनचुम्बी इमारतें, और बन गया था मेरा शहर एक ईंटों का जंगल जाना था कवियों से प्रतीकों से बिम्बों से पीले पत्ते डराते हैं मृत्यु का भय दिखाते हैं बुढ़ापा, बीमारी, मौत है पतझड़। पतझड़ के लिए आवश्यक है पेड़ों की हरियाली और पाया था यहां आकर यहां का हरा रंग अधिक हरा और गहरा होता है। इसीलिए होता है पतझड़ भी अधिक रंगीन जाना की पतझड़ नहीं है मृत्यु पतझड़ का है अपना संसार अपने हैं उसके रंग पतझड़ देता है संदेश आनेवाली है नई पीढ़ी नया परिवेश पत्ते जैसे खेलते हैं होली या फिर बनाते हैं रंगोली बूरे, नारंगी,कत्थई और उनाबी पत्ते,सजाते हैं वातावरण तोड़ते हैं एकरसता,हरे रंग की। यहां के पेड़ भी, बिन पत्ते नहीं शर्माते। रहते हैं खड़े सीना ताने, जैसे चल रहा हो उनका भी एक फ़ैशन शो हो रही है प्रतीक्षा, नये परिधानों की नये आसमानों की |
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