मुखपृष्ठ
|
कहानी |
कविता |
कार्टून
|
कार्यशाला |
कैशोर्य |
चित्र-लेख | दृष्टिकोण
|
नृत्य |
निबन्ध |
देस-परदेस |
परिवार
|
फीचर |
बच्चों की
दुनिया |
भक्ति-काल धर्म |
रसोई |
लेखक |
व्यक्तित्व |
व्यंग्य |
विविधा |
संस्मरण |
डायरी
|
साक्षात्कार |
सृजन |
स्वास्थ्य
|
|
Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | Feedback | Contact | Share this Page! |
|
|
परामर्श का प्रसाद जगत में खोया पार्थ कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य का द्वन्द्व इन्द्रियों की शिथिलता रण से पलायन खोकर आत्म-स्मृति- पायी विषाद स्थिति। देखकर अपने मित्र की दशा यह हीन चौसठ कलाओं में प्रवीण भगवान श्रीकृष्ण - अर्जुन को कराने सत्य का ज्ञान उसका मोह हरने देते है आत्म-तत्व पर व्याख्यान। सत्,रज,तम का मेल है जीवन माया का खेल है जीवन कुछ न करके भी कुछ करना है जीवन ईश नाम को रटना है जीवन स्व को जान कर्त्तव्यों का कर भान तू तो निमित्त-मात्र है, करने वाला कोई और है। नि:शब्द है जहाँ सारा, फिर भी सुनाई पड़ता शोर है। जिसने जोड़े तार उस परमात्मा से, वह स्वयं भी वही हो जाता है। श्रद्धा है अनुपम शक्ति, जो जैसी श्रद्धा रखता है, वह वैसा बन जाता है। सुनकर भगवान की वाणी जाग उठा सैनानी ............ और कहा करिष्ये वचनं तव
|
|
(c) HindiNest.com
1999-2021 All Rights Reserved. |