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कोई करे बरजोरी आई फगुआ रे सखि. सैयां
मिले तो खूब नहीं तो
यार धरे मोरी बै बड
मुंहजोरी
यह यौवनमा पकडूं
मैं तेरी पै अंग-अंग तपता है सखि री जैसे नदिया रेत. रतिया खाये काट-काट मोहे जैसे कोई प्रेत. राधा के संग श्याम खेलते जैसे होली आज. वैसे ही मेरे संग सजनमा खेले होली आज.
तपन बदन का चूस-चूस ले अंकित कर दे भाल. कब फिर अईहैं जानी न सखिया ये होली के रात. ढोल-मजीरा, ताल-झाल फिर मनमा के सौगात. यह संदेशा दे आओ उनको फगुआ का संदेश. परदेशी हर परदेशी से कहियो आ जाये देश. मदमाती यह हवा और यह फिजां हो रही मस्त. मेरे
तन के अन्दर-बाहर कोई लगा रहा गश्
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