मुखपृष्ठ
|
कहानी |
कविता |
कार्टून
|
कार्यशाला |
कैशोर्य |
चित्र-लेख | दृष्टिकोण
|
नृत्य |
निबन्ध |
देस-परदेस |
परिवार
|
फीचर |
बच्चों की
दुनिया |
भक्ति-काल धर्म |
रसोई |
लेखक |
व्यक्तित्व |
व्यंग्य |
विविधा |
संस्मरण |
डायरी
|
साक्षात्कार |
सृजन |
स्वास्थ्य
|
|
Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | Feedback | Contact | Share this Page! |
|
आसन्न त्रासदी समाज
शास्त्र
का
छात्र
रहा
हूं,
मैं
मानव-विज्ञान
का
ज्ञाता
हूं, महिला
पर
आधिपत्य
हेतु
लड़ना,
पुरुष
का
मूल
स्वभाव
रहा
है, विडम्बना
यह
कैसी
है,
जिसके
लिये
पुरुष
जान
लडाता
है, पहले
कन्या
के
जन्म
के
उपरांत,
उनकी
हत्या
की
जाती
थी, मानव
की
ज्ञान-पिपासा
ने,
उसका
तृतीय
नेत्र
जब
से
खोला
है, तब
से
भारत
देश
की
हर
कन्या,
मॉ
के
गर्भ
में
असुरक्षित
है, जीवन-रक्षा
हेतु
वचनबध्द
चिकित्सक,
अपने
को
बेचता
रहता
है, आज
प्रत्येक
जनगणना
में,
पुरुष
से
नारी
का
अनुपात
घट
रहा
है, मानव
प्रवृत्ति
है,
कि
जब
किसी
वस्तु
का
टोटा
पड़ने
लगता
है, टोटा
पड़ने
पर
शक्तिशाली
पुरुषों
में
नारी
संचय
का
अभियान
चलेगा, शेष
कुंआरे
बचे
हुए
पुरुष,
जाति,
धर्म,
देश
जैसे
युध्दों
को
भूल
जायेंगे, अत:
ऐ
पुरुषो!
बंद
आंखें
खोलो,
स्वयं
पर
आसन्न
त्रासदी को
पहचानो, |
|
(c) HindiNest.com
1999-2021 All Rights Reserved. |