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कौन तुम
कौन तुम अरुणिम उषा
सी मनगगन पर छा गयी हो!
लोक धूमिल रंग दिया अनुराग से,
मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
दे दिया संसार सोने का सहज
जो मिला करता बडे ही भाग से,
कौन तुम मधुमाससी अमराइयां
महका गयी हो!
वीथियां सूने हृदय की घूम कर,
नवकिरनसी डाल बाहें झूम कर,
स्वप्नछलना से प्रवंचित
प्राण की
चेतना मेरी जगायी चूम कर,
कौन तुम नभअप्सरासी इस तरह
बहका गयी हो!
रिक्त उन्मन उर
सरोवर भर दिया,
भावनासंवेदना को
स्वर दिया,
कामनाओं के चमकते
नव शिखर
प्यार मेरा
सत्य शिव सुन्दर किया,
कौन तुम अवदात
री! इतनी अधिक जो भा गयी हो!
-महेन्द्र
भटनागर |
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