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।। फ़िर अतीत की खुली डायरी ।।
फ़िर अतीत की खुली डायरी और तुम्हारी बात हुई लेटा रहा क्षितिज पर सूरज, सारे दिन बरसात हुई एक नेपकिन जिसपे कॉफी के दो मग की जड़ी निशानी माफ़ीनामा लिखा तुम्हारा, मेरी थी जब कारस्तानी मोरपंख जो खींचा-खाँची में आधा सा टूट गया था पहली बार तुम्हारा चुम्बन, जब मैं सच में रूठ गया था कँपकपायी पलकों की छतरी, फिर बूंदों से मात हुई पसर गया थोड़ा सा सूरज, सिर्फ़ तुम्हारी बात हुई सुन पुकार सीमाओं की, सब छोड़ मेरा वो चल देना "देखूँगी मैं राह", तुम्हारा धैर्य बंधा संबल देना छली विरोधी, रायफल, गोली, मौत सामने जब आती तुम संग जीने की अभिलाषा, विजय पताका लहराती लौटा, तब तक ब्याह चुकीं तुम, विधना! कैसी घात हुई! लिपटा लाल रंग में सूरज, स्याह मेघ से मात हुई कोई तो मजबूरी होगी, मुझे विदित तुम मौन रहोगी इधर-उधर की पटर-पटर पर, दुख अपना चुपचाप सहोगी गीत मेरे तुम न गाओगी, तो मैं क्या कुछ लिख पाऊँगा? जीवन में अतीत के पन्नों पर मैं बिखर-बिखर जाऊँगा चार दिनों की सुना ज़िंदगी, मेरी तो बस रात हुई सूरज उगा नहीं बरसों से, धूसर सी शुरुआत हुई
-शार्दुला नौगजा, सिंगापुर (शार्दुला अनेक प्रतिभाओं की धनी हैं, गीतकार के रूप में इन्होंने हिंदी गीत विधा को नये छंद और नये रूप दिये हैं, इंजीनियरिंग प्रोफेशनल के तौर पर शार्दुला सिंगापुर में भले रहती हैं, मगर इनका हिंदी प्रेम अनोखा है वे आए दिन हिंदी कविता के बहुत से कार्यक्रम अपने स्तर पर करवाती रहती हैं)
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